सरायकेला-खरसावां जिले के 15 सदस्यीय दल ने गोवा फेस्टिवल में प्रस्तुत किए अद्भुत नृत्य नाट्य
तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम में छऊ की दमदार प्रस्तुति
सरायकेला-खरसावां जिले के ग्राम मारंगहातु के 15 सदस्यीय दल ने गोवा फेस्टिवल में अपनी अद्वितीय छऊ कला से सबका मन मोह लिया। 9 से 11 मई तक आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में इस दल ने पारंपरिक नृत्य नाट्य ‘माया बंधन’, ‘शिकारी’ और ‘कृष्ण जन्म’ की बेहतरीन प्रस्तुतियाँ दीं, जिसने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।
बंगला डॉट कॉम संस्था के सहयोग से हुआ आयोजन
इस दल को गोवा फेस्टिवल में भाग लेने का अवसर बंगला डॉट कॉम संस्था द्वारा प्रदान किया गया। संस्था ने पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की और कलाकारों को गोवा तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाई। गोवा में आयोजित यह महोत्सव पारंपरिक लोक कलाओं और विविध सांस्कृतिक परंपराओं को मंच देने का एक प्रमुख मंच बनता जा रहा है।
छऊ उस्ताद नंद लाल कुम्हार के नेतृत्व में कलाकारों की शानदार प्रस्तुति
इस सांस्कृतिक यात्रा का नेतृत्व ग्राम मारंगहातु के वरिष्ठ छऊ कलाकार श्री नंद लाल कुम्हार ने किया। उनके मार्गदर्शन में कलाकारों ने न केवल अपनी परंपरा को जीवंत किया, बल्कि गोवा जैसे पर्यटन केंद्र में झारखंड की सांस्कृतिक विरासत की छाप भी छोड़ी।
प्रतिभागी कलाकारों की सूची
इस छऊ दल में निम्नलिखित कलाकार शामिल थे:
प्यारे लाल कुम्हार
दशरथ कुम्हार
लुकेश कुम्हार
अरुण कुम्हार
मांगता मुंडा
गोपीनाथ मुंडा
मंगल कुम्हार
मिलन कुम्हार
विवेक कुम्हार
सुनील सोय
राहुल सोय
रघुनाथ गोप
ठाकुर मछुआ
इन सभी कलाकारों ने अपने समर्पण और मेहनत से छऊ कला को अंतरराज्यीय मंच पर पहुंचाया।
कला, परंपरा और नवाचार का अद्भुत संगम
गोवा फेस्टिवल में मारंगहातु के इस दल ने परंपरागत छऊ को आधुनिक मंच पर लाकर दर्शाया कि यह कला सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य का भी हिस्सा है। ‘माया बंधन’ में पारिवारिक संबंधों की जटिलता, ‘शिकारी’ में प्रकृति और मानवीय संघर्ष तथा ‘कृष्ण जन्म’ में भक्ति और आस्था को नृत्य के माध्यम से जीवंत किया गया।
14 मई को दल की घर वापसी
तीन दिवसीय सफल प्रस्तुति के बाद यह दल 14 मई को गोवा से ग्राम मारंगहातु लौट आया। गांव में कलाकारों का जोरदार स्वागत किया गया। स्थानीय लोगों और ग्राम पंचायत ने इस उपलब्धि पर गर्व व्यक्त करते हुए उनके प्रयासों की सराहना की।
छऊ कला को मिला नया आयाम
ग्राम मारंगहातु के इन कलाकारों की प्रस्तुति इस बात का प्रमाण है कि परंपरागत लोक कलाएं अभी भी जीवंत हैं और उन्हें यदि सही मंच और अवसर मिले तो वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त कर सकती हैं। इस आयोजन ने न केवल कलाकारों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी छऊ सीखने और निभाने की प्रेरणा दी है।