पांच दिनों से अंधेरे में डूबे सारंडा के गांव, बिजली नहीं, पानी नहीं, जिम्मेदारों पर भड़के लोग
रिपोर्ट : शैलेश सिंह ।
छोटानागरा पंचायत के अंतर्गत आने वाले दर्जनों गांव बीते पांच दिनों से बिजली संकट की चपेट में हैं। पूरे क्षेत्र में बिजली आपूर्ति ठप पड़ी हुई है, जिससे ग्रामीणों का जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है। सबसे गंभीर संकट पेयजल को लेकर उत्पन्न हुआ है। पंचायत क्षेत्र में संचालित बाईहातु आसन्न जलापूर्ति योजना बिजली के अभाव में ठप है, जिससे करीब दस गांवों में शुद्ध पेयजल की भारी किल्लत हो गई है।

नदी-नालों का गंदा पानी पीने को मजबूर ग्रामीण बिजली बंद होने के कारण हैंडपंप और जल योजना की मोटरें बंद पड़ी हैं। ग्रामीण अब नदी, नाले और अन्य असुरक्षित स्रोतों से पानी पीने को मजबूर हैं। इससे डायरिया, हैजा, त्वचा रोग जैसी बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ गया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह समस्या सिर्फ बिजली की लापरवाही का नतीजा है।
बिजली नहीं, उमस से बेहाल जनता – रात में जानवरों का खतरा
बारिश के इस उमस भरे मौसम में बिजली नहीं होने से ग्रामीण पसीने-पसीने हो रहे हैं। छोटे बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। रात में अंधेरा रहने से लोगों में जंगली जानवरों और विषैले कीड़ों का भय बना रहता है। जंगल से सटे क्षेत्र होने के कारण जान का खतरा बना हुआ है।
गांवों में फूटा आक्रोश – मुख्य सड़क जाम की चेतावनी
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द बिजली आपूर्ति बहाल नहीं हुई तो ग्रामीण छोटानागरा चौक के पास मुख्य सड़क को जाम करेंगे। सारंडा पीढ़ के मानकी लागुड़ा़ देवगम और सुशेन गोप ने कहा,

“शुद्ध पेयजल इस मौसम में सबसे जरूरी आवश्यकता है। सरकार और बिजली विभाग की यह लापरवाही अब बर्दाश्त के बाहर है।”

लाइन मैन प्रभात और धीरज पर लापरवाही का गंभीर आरोप
ग्रामीणों ने बिजली विभाग के लाईन मैन प्रभात और धीरज पर सीधा आरोप लगाया है। उनका कहना है कि दोनों कभी फोन नहीं उठाते, और बाद में मोबाइल स्विच ऑफ कर देते हैं।
“अगर बिजली का तार गिरा हो, किसी को करंट लग जाए, या कोई आपात स्थिति हो तो? इन दोनों की गैरजिम्मेदारी से किसी की जान जा सकती है। ये जनविरोधी कर्मचारी हैं। बिजली विभाग इन दोनों को अविलंब हटाकर नए लाईनमैन की नियुक्ति करे,” ग्रामीणों ने यह मांग खुलेआम रखी है।
बिजली विभाग बना मूकदर्शक, कोई अधिकारी नहीं दे रहा जवाब
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि विभाग के उच्च अधिकारी भी मामले में उदासीन बने हुए हैं। न कोई मुआयना, न कोई बहाली का प्रयास – सिर्फ घोर लापरवाही।
क्या करेंगे उपायुक्त और सांसद?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस संकट से निजात दिलाने के लिए जिला प्रशासन, विद्युत विभाग और जनप्रतिनिधि क्या कदम उठाएंगे? क्या ग्रामीणों को तब तक नदी का गंदा पानी पीना पड़ेगा, जब तक कोई बड़ा आंदोलन न हो?
ग्रामीणों ने ठाना – अब आरपार की लड़ाई होगी
छोटानागरा के सभी प्रभावित गांवों में जनजागरूकता अभियान शुरू हो चुका है। महिलाओं और युवाओं ने मोर्चा संभाल लिया है। यदि अगले 24 घंटे में बिजली आपूर्ति चालू नहीं की गई, तो सड़क जाम, प्रदर्शन और पंचायत स्तर पर आंदोलन की रूपरेखा तय कर दी गई है।
आखिरी सवाल: क्या ग्रामीणों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं?
जहां एक ओर सरकार ग्रामीण विकास, जलापूर्ति और स्वास्थ्य की बात कर रही है, वहीं सारंडा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में पीने के पानी तक का अभाव होना दुर्भाग्यपूर्ण है। बिजली विभाग और प्रशासन की इस असंवेदनशीलता ने यह साबित कर दिया है कि ग्रामीण आज भी उपेक्षा के अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।
अगर प्रशासन और विभाग नहीं जागे, तो ग्रामीणों का सब्र टूटेगा – और तब जिम्मेदार कौन होगा? यह सवाल अब सिर्फ छोटानागरा नहीं, पूरे सारंडा के गांवों की गूंज बन चुका है।