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स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर नारायण आईटीआई चांडिल में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन

संस्थापक डॉ. जटाशंकर पांडे ने कहा: “विवेकानंद का जीवन आज के युवाओं के लिए एक आदर्श”

चांडिल।
नारायण आईटीआई, लुपुंगडीह, चांडिल परिसर में शुक्रवार को राष्ट्रऋषि स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि श्रद्धा व सम्मान के साथ मनाई गई। इस अवसर पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। कार्यक्रम में संस्थान के संस्थापक डॉ. जटाशंकर पांडे, शिक्षकगण, विद्यार्थी और समाज के विभिन्न क्षेत्रों से आए गणमान्य नागरिकों की गरिमामयी उपस्थिति रही।

“वेदांत के महान प्रवक्ता थे स्वामी विवेकानंद” – डॉ. पांडे

डॉ. जटाशंकर पांडे ने अपने संबोधन में कहा कि स्वामी विवेकानंद केवल एक आध्यात्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि वे भारत की चेतना के वाहक थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था, और उन्होंने 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में सनातन धर्म का अद्वितीय प्रतिनिधित्व किया। “मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों” से शुरू हुआ उनका भाषण आज भी विश्व इतिहास में अद्वितीय और प्रेरक उदाहरण माना जाता है।

मानव सेवा को ही ईश्वर सेवा मानने की दी शिक्षा

डॉ. पांडे ने विवेकानंद के सामाजिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से सीखा कि प्रत्येक जीव में परमात्मा का वास है। इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने सेवा को ही ईश्वर की सेवा माना। वे कहते थे कि “गरीबों, दलितों और वंचितों की सेवा ही सच्ची पूजा है।” यही विचार आगे चलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना का आधार बना।

युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत

डॉ. पांडे ने कहा कि विवेकानंद युवाओं को देश की सबसे बड़ी शक्ति मानते थे। वे चाहते थे कि भारत का युवा शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बने और समाज को एक नई दिशा दे। उनका मानना था कि समता पर आधारित समाज की रचना ही भारत को फिर से विश्वगुरु बना सकती है।

विश्व मंच पर भारत की गरिमा को किया उजागर

विवेकानंद ने केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप और जापान जैसे देशों में भी भारतीय दर्शन और अध्यात्म का प्रचार-प्रसार किया। तीन वर्षों तक अमेरिका में रहकर उन्होंने हिंदू धर्म, वेदांत और भारतीय चिंतन पर हजारों व्याख्यान दिए। अमेरिका में उन्हें ‘साइक्लॉनिक हिन्दू’ की उपाधि दी गई, जो उनकी ओजस्विता और बौद्धिक क्षमता को दर्शाती है।

देश-विदेश में स्थापित की रामकृष्ण मिशन की शाखाएं

विवेकानंद का दृढ़ विश्वास था कि “अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा।” उन्होंने अमेरिका समेत कई देशों में रामकृष्ण मिशन की शाखाएं स्थापित कीं और भारतीय संस्कृति की लौ को दुनिया भर में प्रज्वलित किया।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में उपस्थित रहे श्रद्धांजलि देने वाले

इस अवसर पर श्रद्धांजलि सभा में नारायण आईटीआई के विद्यार्थियों के साथ-साथ शिक्षक और समाज के अनेक प्रबुद्ध नागरिकों ने भाग लिया। प्रमुख रूप से उपस्थित लोगों में एडवोकेट निखिल कुमार, प्रकाश महतो, देवाशीष मंडल, पवन कुमार महतो, शशि भूषण महतो, संजीत महतो, अजय मंडल, कृष्णा महतो, मोहन सिंह सरदार सहित कई अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे। सभी ने स्वामी विवेकानंद के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उनके विचारों और आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लिया।

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