समाज और विकास विरोधी गतिविधियों में लिप्त भाकपा (माओवादी) का बड़ा नेटवर्क ध्वस्त
रिपोर्ट: शैलेश सिंह, किरीबुरु
झारखंड के सारंडा और कोल्हान के जंगल एक बार फिर नक्सल विरोधी कार्रवाई के गवाह बने। प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के शीर्ष नेता मिशिर बेसरा और उसके गुर्गों द्वारा चलाए जा रहे समाज-विरोधी और विकास-विरोधी नेटवर्क को सुरक्षाबलों ने बड़ी सफलता के साथ ध्वस्त किया है। जंगलों में छिपकर बैठा यह गिरोह न केवल मासूम ग्रामीणों को डराकर उन्हें मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल करता है, बल्कि क्षेत्र के विकास कार्यों में बाधा पहुंचाकर दशकों से पिछड़ेपन को पालता आ रहा है।
गुप्त सूचना पर शुरू हुआ बड़ा संयुक्त अभियान
झारखंड पुलिस को गुप्त सूत्रों से यह सूचना मिली थी कि मिशिर बेसरा, अनमोल, अजय महतो, चंदन लोहरा, अमित हांसदा समेत कई शीर्ष नक्सली नेता अपने दस्ते के साथ सारंडा के जंगलों में घूम रहे हैं। इस इनपुट के बाद 4 मार्च 2025 को चाईबासा पुलिस, झारखंड जगुआर और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम ने जाराईकेला थाना क्षेत्र के सीमावर्ती जंगलों में विशेष तलाशी अभियान शुरू किया।
यह अभियान केवल सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने का प्रयास नहीं था, बल्कि नक्सलियों द्वारा वर्षों से तैयार किए जा रहे समाज विरोधी नेटवर्क को जड़ से उखाड़ने का निर्णायक कदम था।
5 शक्तिशाली IED बरामद, 11 बंकर और 6 मोर्चे ध्वस्त
13-14 अप्रैल को जाराईकेला के बाबुडेरा वन क्षेत्र में तलाशी अभियान के दौरान सुरक्षाबलों को नक्सलियों द्वारा लगाए गए कुल 5 शक्तिशाली IED (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) मिले जिन्हें समय रहते निष्क्रिय कर बड़ी दुर्घटना टाल दी गई। ये विस्फोटक सुरक्षाबलों के रास्तों में बाधा डालने और जानलेवा हमलों की मंशा से लगाए गए थे।
इसके अलावा सुरक्षाबलों ने जंगलों में बने 11 नक्सली बंकर और 6 युद्ध मोर्चों को भी ध्वस्त किया, जिनमें से कुछ का इस्तेमाल मिशिर बेसरा और उसकी टीम के अस्थायी निवास के रूप में हो रहा था। ये बंकर केवल छिपने की जगह नहीं थे, बल्कि वहां से समाज को डरा-धमकाकर नियंत्रित करने की योजनाएं बन रही थीं।
बंकरों के माप:
25 फीट x 35 फीट
20 फीट x 25 फीट
15 फीट x 20 फीट
15 अप्रैल को टोंटो थाना क्षेत्र में फिर मिली सफलता
सुरक्षाबलों का यह अभियान यहीं नहीं रुका। 15 अप्रैल को टोंटो थाना क्षेत्र के वनग्राम लुईया और बकराबेरा के जंगलों में फिर तलाशी अभियान चलाया गया, जिसमें 2 और IED बरामद हुए। लगातार दो दिनों की इस कार्रवाई में नक्सलियों की तैयारियों और उनकी नीयत को पूरी तरह उजागर कर दिया गया।
बंकरों से बरामद विस्फोटक और दैनिक उपयोग की सामग्रियां
सुरक्षाबलों ने इन बंकरों से जो सामग्री बरामद की, वह इस बात का सबूत है कि ये नक्सली समाज में अस्थिरता और दहशत फैलाने के मंसूबे लेकर चल रहे थे।
जब्त की गई प्रमुख सामग्री में शामिल हैं:
15 KG का 1 IED
10 KG के 2 IED
05-05 KG के 2 IED
04-04 KG के 2 IED
प्रिंटर
बैटरी – 02
कारतूस
लेथ मशीन – 01
पाइप – 18
तार – 15 मीटर
अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं
ये सामग्री यह दर्शाती है कि नक्सली संगठन जंगलों में रहकर पूरी एक समानांतर व्यवस्था चला रहा था, जिसमें हथियार निर्माण, दस्तावेजी प्रोपेगैंडा और तकनीकी उपयोग की सभी सुविधाएं मौजूद थीं।
विकास का दुश्मन: नक्सल विचारधारा
जहां एक ओर सरकारें सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, और संचार के माध्यम से जंगलों को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर नक्सली संगठन इन विकास योजनाओं में बाधा बनते हैं। ग्रामीणों को डराकर, ठेकेदारों से वसूली कर, स्कूलों को बंद करवा कर और सड़क परियोजनाओं पर हमला करके ये लोग झारखंड को जानबूझकर पिछड़ेपन में धकेल रहे हैं।
इनकी विचारधारा न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया का विरोध करती है, बल्कि समाज के सबसे गरीब तबकों को भी अपने हथियारबंद संघर्ष में जबरन झोंक देती है। यही कारण है कि इनकी गतिविधियों को केवल ‘अपराध’ नहीं, बल्कि “विकास विरोधी युद्ध” माना जा रहा है।
संयुक्त अभियान बलों की सराहनीय भूमिका
इस पूरे अभियान में निम्नलिखित बलों की सक्रिय भूमिका रही:
चाईबासा जिला पुलिस
झारखंड जगुआर
कोबरा बटालियन 203 और 209
सीआरपीएफ की 26, 60, 134, 174, 193, और 197 बटालियन
सभी बलों ने सुनियोजित रणनीति के तहत क्षेत्र को चारों ओर से घेर कर तलाशी की, जिससे नक्सलियों के बच निकलने के प्रयास नाकाम हुए।
सरकार का संकल्प: नक्सल मुक्त झारखंड
झारखंड पुलिस और केंद्रीय बलों के नेतृत्व में चलाए जा रहे ये अभियान अब केवल जवाबी कार्रवाई नहीं रह गए हैं, बल्कि यह एक निर्णायक संघर्ष बन चुका है। सरकार का स्पष्ट संदेश है कि राज्य को नक्सलवाद के अंधकार से मुक्त किया जाएगा और हर ग्रामीण तक विकास की रौशनी पहुंचाई जाएगी।
ग्रामीण जनता का सहयोग भी इन अभियानों की सफलता में निर्णायक सिद्ध हो रहा है, जो अब खुलकर नक्सलियों के खिलाफ आवाज उठा रही है।
निष्कर्ष:
भाकपा (माओवादी) का यह गिरोह अब झारखंड के पिछड़ेपन और दहशत के प्रतीक के रूप में जाना जा रहा है। मगर यह भी स्पष्ट है कि सुरक्षाबलों के ठोस कदमों, सरकार की इच्छाशक्ति और आम जनता के सहयोग से यह अंधेरा अब छंटने को है।