नेत्र उत्सव पर उमड़े श्रद्धालु, हरिभंजा समेत कई मंदिरों में भंडारा और विशेष पूजा-अर्चना
खरसावां।
गुरुवार को खरसावां, हरिभंजा, सीनी सहित क्षेत्र के विभिन्न जगन्नाथ मंदिरों में श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ प्रभु जगन्नाथ का नेत्र उत्सव संपन्न हुआ। वैदिक मंत्रोच्चारण, शंखध्वनि, उलध्वनी (हुलहुली) और जय जगन्नाथ के जयघोष के बीच भक्तों को चतुर्था मूर्ति – प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र, देवी सुभद्रा और सुदर्शन – के नव यौवन रूप में दर्शन प्राप्त हुए।
हरिभंजा मंदिर में विशेष आयोजन
हरिभंजा स्थित जगन्नाथ मंदिर में इस पावन अवसर पर भव्य भंडारा का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने कतारबद्ध होकर प्रसाद ग्रहण किया। मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से भरा रहा और पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। नेत्र उत्सव के दौरान भगवान की मूर्तियों का विशेष श्रृंगार किया गया था।
15 दिनों के एकांतवास के बाद दिव्य दर्शन
जगन्नाथ मंदिरों में आंसर गृह (एकांतवास) में 15 दिनों तक विश्राम के उपरांत गुरुवार को चतुर्था मूर्ति बाहर निकलकर भक्तों को नव यौवन वेश में दर्शन दिए। इसे प्रभु का नया कलेवर माना जाता है, जिसमें वे बीमारी से उबरने के बाद स्वस्थ होकर पहली बार दर्शन देते हैं।
खरसावां मंदिर में पूजन और यजमानों की उपस्थिति
खरसावां मंदिर में पुरोहित पंडित प्रदीप कुमार दाश एवं भरत त्रिपाठी ने वैदिक विधि से पूजा-अर्चना कराई। यजमान के रूप में जमींदार विद्या विनोद सिंहदेव, राजेश सिंहदेव और पृथ्वीराज सिंहदेव की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। उन्होंने प्रभु के चरणों में विशेष अर्पण करते हुए समाज के कल्याण की कामना की।
रथयात्रा का प्रथम पड़ाव
नेत्र उत्सव को रथयात्रा का प्रथम एवं महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है। यह उत्सव दर्शाता है कि प्रभु अब यात्रा हेतु पूर्णतः स्वस्थ हैं और अगले दिन से रथयात्रा महोत्सव की शुरुआत होगी। शुक्रवार से खरसावां जिले के सभी जगन्नाथ मंदिरों के कपाट भी श्रद्धालुओं के लिए विधिवत रूप से खोल दिए गए।
श्रद्धा, परंपरा और उत्साह का संगम
इस पावन अवसर पर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना हुई, मूर्तियों का दिव्य श्रृंगार किया गया और भक्तों के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए गए। नेत्र उत्सव के माध्यम से एक बार फिर यह स्पष्ट हुआ कि खरसावां और आसपास के क्षेत्रों में ओड़िया परंपरा और श्रद्धा आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी सदियों पहले थी।
भक्तों की भारी भीड़, भावविभोर वातावरण और पारंपरिक अनुष्ठानों ने यह सिद्ध कर दिया कि प्रभु जगन्नाथ के नेत्र उत्सव में केवल आंखों के दर्शन नहीं होते, बल्कि यह आस्था की आंखें खोलने वाला पर्व होता है।