सेल प्रबंधन, पुलिस-प्रशासन, विधायक, जीप अध्यक्ष और आंदोलनकारी संयुक्त मोर्चा के बीच 4 घंटे की मैराथन वार्ता के बाद बनी सहमति, शव हटने के बाद गुआ खदान में पुनः प्रारंभ हुआ उत्पादन
रिपोर्ट: शैलेश सिंह / संदीप गुप्ता
गुआ (पश्चिमी सिंहभूम)। गुरुवार को गुआ खदान परिसर में नाबालिग ठेका मजदूर कानुराम चाम्पिया की मौत के बाद उत्पन्न हालात आखिरकार रात 09.30 बजे प्रबंधन और आंदोलनकारी मजदूरों के बीच समझौते के साथ नियंत्रित हुए। लगभग 12 घंटे के विरोध प्रदर्शन और खनन कार्य ठप रहने के बाद आंदोलनकारी संयुक्त मोर्चा और सेल प्रबंधन के बीच लगभग 4 घंटे लंबी वार्ता सफल रही।

वार्ता के मुख्य नतीजे के तौर पर:
- मृतक के एक आश्रित को हाई स्किल्ड सप्लाई मजदूर की नौकरी
- और 30 लाख रुपये मुआवजा राशि देने पर प्रबंधन ने सहमति दी
इसके बाद आंदोलन समाप्त हुआ और रात लगभग 10 बजे, तृतीय पाली से गुआ खदान में पुनः उत्पादन शुरू होगा।

कैसे बिगड़े हालात?
गुरुवार की सुबह करीब 9:30 बजे गुआ खदान के जीरो प्वाइंट क्षेत्र में निर्माणाधीन भवन में कार्यरत नाबालिग मजदूर कानुराम चाम्पिया (उम्र 17 वर्ष से कम) की कार्यस्थल पर गिरने से मौके पर ही मौत हो गई। मृतक ठाकुरा गांव निवासी था और बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम पर लगाया गया था।
इस मौत के बाद गुआ अस्पताल में शव के साथ आक्रोशित मजदूरों व ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया। उसके बाद शव को उठाकर वे सीजीएम कार्यालय (जनरल ऑफिस) के गेट पर ले गए और वहीं धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया।
आंदोलन हुआ उग्र, प्रबंधन रहा मौन
प्रदर्शनकारियों ने:
- मृतक के आश्रित को सेल में स्थायी नौकरी
- और 50 लाख रुपये मुआवजा की मांग रखी।
दो घंटे तक कोई जवाब न मिलने पर प्रदर्शन उग्र हुआ। आंदोलनकारियों ने सीआईएसएफ जवानों से धक्का-मुक्की कर गेट का ताला तोड़ा और शव के साथ मुख्य द्वार तक पहुंचे।
पुलिस और प्रशासन की सक्रियता
गुआ थाना प्रभारी व इंस्पेक्टर बम बम कुमार के नेतृत्व में पुलिस बल मौके पर पहुंचा और स्थिति को नियंत्रण में लिया। इसके बाद खदान में ड्यूटी पर जा रहे कर्मचारियों की बसें रोक दी गईं, जिससे उत्पादन पूरी तरह ठप हो गया।

जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने निभाई मध्यस्थ की भूमिका
घटनास्थल पर पहुंचे जगन्नाथपुर विधायक सोनाराम सिंकु, जिला परिषद अध्यक्ष लक्ष्मी सोरेन, एसडीओ छोटन उराँव, एसडीपीओ अजय केरकेट्टा, जिप सदस्य देवकी कुमारी, मजदूर नेता रामा पांडेय, पंचायत के मुखिया, संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारी और अन्य जनप्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से संयुक्त मोर्चा और प्रबंधन के बीच संवाद की पहल की।
निर्णायक वार्ता और समाधान
शाम 5:15 बजे विधायक, जिला परिषद अध्यक्ष एवं पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा का प्रतिनिधिमंडल सीजीएम कमल भास्कर, सीजीएम (एचआर) धीरेन्द्र मिश्रा और अन्य अधिकारियों से मिलने पहुंचा।
करीब 4 घंटे चली इस वार्ता में लगातार प्रयासों के बाद प्रबंधन ने इन प्रमुख मांगों को स्वीकार किया:
- मृतक के परिवार के एक सदस्य को हाई स्किल्ड सप्लाई मजदूर के पद पर नौकरी
- 30 लाख रुपये मुआवजा राशि, जिसमें 7.5 – 7.5 लाख के चार चेक मृतक के पिता को दिये गये
- मृतक का अंतिम संस्कार हेतु अलग से 15 हजार रूपये नकद एवं पोस्टमार्टम हेतु वाहन आदि की व्यवस्था किया गया
इसके बाद:
- आंदोलन समाप्त किया गया
- शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की प्रक्रिया प्रारम्भ
- गुआ खदान में रात्रि 10 बजे से उत्पादन बहाल होगा।
बाल श्रम कानून की खुली अवहेलना
मृतक कानुराम चाम्पिया की उम्र आधार कार्ड के अनुसार 1 जनवरी 2009 थी, यानी उसकी आयु 17 वर्ष से कम थी। यह स्पष्ट रूप से बाल श्रम कानून का उल्लंघन है। प्रश्न यह उठता है कि बिना उम्र सत्यापन के, बिना सुरक्षा उपकरण के एक नाबालिग को कार्य पर कैसे लगाया गया?

ठेकेदार और अधिकारियों पर मामला दर्ज करने की उठी मांग
मजदूर नेता सह जिला परिषद सदस्य जौन मिरन मुंडा देर शाम आंदोलन स्थल पर अपने समर्थकों साथ पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस मामले में ठेकेदार, खान प्रबंधक, सेल के सुरक्षा अधिकारी और कार्य निगरानी में लगे अधिकारी पर भारतीय दंड संहिता की सुसंगत धाराओं में आपराधिक मामला दर्ज किया जाए। उन्होने मृतक के आश्रित को स्थायी नौकरी के अलावे गुआ खदान का एक दिन का लाभ का पैसा बतौर मुआवजा के रुप में देने की मांग की। जौन मिरन मुंडा ने मृतक के पिता को अपने पास बैठाकर प्रबंधन के समझौता पत्र पर इससे कम पर हस्ताक्षर नहीं करने का निर्देश दिया। हालांकि स्थानीय आंदोलनकारियों ने सवाल उठाया की जौन मिरन मुंडा सुबह से कहाँ थे ! जब सारे लोग आंदोलन को मुकाम पर पहुंचाया तो वह देर शाम गंदी राजनीतिक करने पहुंचे हैं। बाद में एसडीपीओ ने भी जौन मिरन मुंडा को समझाया तथा पुलिस ने मृतक के पिता को वार्ता टेबल पर ले गई। जौन मिरन हाय तौबा मचाते रहे।
सवाल प्रशासन पर भी
घटना ने जिला प्रशासन, श्रम विभाग और सेल प्रबंधन की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान चलाने वाली सरकार की नाक के नीचे सरकारी उपक्रम में ही बाल श्रमिक की मौत – यह केवल एक त्रासदी नहीं, बल्कि श्रम अधिकारों का घोर उल्लंघन है।
निष्कर्ष:
गुआ खदान की यह घटना बाल श्रम, ठेका मजदूरी और खदान सुरक्षा मानकों की विफलता का आईना है। हालांकि आंदोलन के दबाव में नौकरी और मुआवजे की सहमति बनी, लेकिन जब तक दोषियों पर कानूनी कार्रवाई नहीं होती, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।
अब देखने की बात यह है कि प्रशासन और सरकार इस गंभीर उल्लंघन को किस स्तर तक लेकर जाती है — केवल मुआवजा देकर भूल जाएगी या दोषियों को सजा दिलाकर एक नजीर पेश करेगी?