ध्वजारोहण, शहीदों को श्रद्धांजलि और बाइक रैली के साथ मजदूरों ने बोकारो प्रबंधन पर बरसाए सवाल; कहा – नहीं चाहिए बोरो से चलने वाला फरमान, रांची बने नया नियंत्रण केंद्र
रिपोर्ट: शैलेश सिंह
मजदूर दिवस के मौके पर झारखंड मजदूर संघर्ष संघ की मेघाहातुबुरु इकाई ने शक्ति और एकजुटता का जोरदार प्रदर्शन किया। कार्यक्रम की शुरुआत यूनियन कार्यालय में ध्वजारोहण से हुई, जहां दर्जनों श्रमिकों ने एक स्वर में मजदूरों के अधिकारों की रक्षा का संकल्प लिया। शहीद मजदूरों को श्रद्धांजलि देकर उन्हें याद किया गया, लेकिन इसके बाद शुरू हुआ श्रमिकों का ग़ुस्से का विस्फोट—जो साफ तौर पर बोकारो प्रबंधन और सेल की नीति पर भारी पड़ा।
बाइक रैली बनी आंदोलन की दस्तक
ध्वजारोहण के बाद मजदूरों ने एकजुट होकर भव्य मोटरसाईकल रैली निकाली, जिसमें ‘शोषण बंद करो’, ‘सम्मानजनक वेतन दो’, और ‘झारखंड के श्रमिकों के साथ अन्याय नहीं चलेगा’ जैसे नारों से पूरा इलाका गूंज उठा। यह रैली केवल प्रतीक नहीं, बल्कि चेतावनी थी उन अफसरों के लिए, जो बोकारो से बैठकर झारखंड की खदानों के भविष्य से खेल रहे हैं।
‘बोकारो प्रबंधन झारखंड के श्रमिकों को बना रहा बंधुआ’ — अफताब आलम
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यूनियन के महासचिव अफताब आलम ने आर-पार की चेतावनी दे दी। उन्होंने कहा, “जब तक सेल की खदानें आरएमडी के अधीन थीं, तब तक हालात ठीक थे। लेकिन जैसे ही आरएमडी को भंग कर बोकारो को नियंत्रण सौंपा गया, शोषण की श्रृंखला शुरू हो गई। बोकारो के अधिकारी न तो खदानों की हालत समझते हैं, न ही श्रमिकों की समस्याएं सुनते हैं।”
उन्होंने तीखे लहजे में कहा, “बोकारो से जो फरमान जारी होता है, वह यहां जमीनी हकीकत से कोसों दूर होता है। यह एक तरह का औपनिवेशिक रवैया है, जिसमें झारखंड के मेहनतकश मजदूरों को सिर्फ आदेश मानने की मशीन समझा जा रहा है।”
‘रांची बने नियंत्रण केंद्र, बोकारो-कोलकत्ता नहीं चाहिए’
अफताब आलम ने स्पष्ट कहा कि अब समय आ गया है कि सेल की झारखंड स्थित सभी खदानों को फिर से आरएमडी के अधीन लाया जाए, और उसका मुख्यालय कोलकाता नहीं बल्कि रांची में स्थापित किया जाए। “हम कोलकाता से चलने वाला कोई दूरदर्शी नियंत्रण नहीं चाहते। हमें झारखंड की जमीन से जुड़ा नेतृत्व चाहिए, जो हमारी पीड़ा समझ सके,” उन्होंने कहा।
आंदोलन की आहट, संघर्ष को तैयार मजदूर
कार्यक्रम में मजदूरों के बीच भारी असंतोष और आक्रोश देखने को मिला। कई श्रमिकों ने कहा कि अगर उनकी मांगों को जल्द नहीं सुना गया, तो वे बड़े आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरने को तैयार हैं।
झारखंड मजदूर संघर्ष संघ की इस पहल ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अब झारखंड का श्रमिक वर्ग चुप नहीं बैठेगा। वो शोषण के हर स्वरूप को उजागर करेगा और अपनी लड़ाई को निर्णायक मोड़ तक ले जाएगा।
क्या सेल प्रबंधन जागेगा, या फिर आएगा एक और भूचाल?
अब देखना यह है कि सेल और बोकारो प्रबंधन इस चेतावनी को कितनी गंभीरता से लेते हैं। अगर यह आवाज अनसुनी की गई, तो आने वाले दिनों में झारखंड की खदानों से मजदूरों की गूंज पूरे देश में सुनाई दे सकती है।