मुख्यमंत्री से लेकर पीएमओ तक ग्रामीणों ने भेजा ज्ञापन, उच्चस्तरीय जांच की मांग
जगन्नाथपुर , पश्चिमी सिंहभूम — जगन्नाथपुर प्रखंड अंतर्गत जैतगढ़ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थापित फार्मासिस्ट काशिफ रजा पर ग्रामीणों ने गंभीर भ्रष्टाचार, सेवा में अनियमितता और फर्जी तरीके से बहाली का आरोप लगाया है। इसके खिलाफ ग्रामीणों ने संयुक्त रूप से पीएमओ, मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री समेत कई उच्च अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को हस्ताक्षरयुक्त शिकायत पत्र भेजते हुए उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
सेवा के समय निजी दुकानदारी, बायोमैट्रिक उपस्थिति का दुरुपयोग
ग्रामीणों का आरोप है कि फार्मासिस्ट काशिफ रजा जैतगढ़ पीएचसी में अपनी ड्यूटी के नाम पर सिर्फ औपचारिक हाजिरी लगाते हैं और फिर पूरे दिन अपनी दो निजी दवा दुकानों में बैठते हैं। उनका कहना है कि यदि उनकी दुकानों में लगे सीसीटीवी कैमरों का डेटा जब्त कर जांच की जाए तो खुद उनके वीडियो ही यह सिद्ध कर देंगे कि वे सेवा समय में अस्पताल की जगह दुकान में बैठते हैं।
ओपीडी रजिस्टर में फर्जीवाड़ा, दवा घोटाले की आशंका
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि काशिफ रजा ओपीडी रजिस्टर में हेराफेरी करते हैं। उन्होंने दावा किया कि रजिस्टर में अधिकतर मरीजों के नाम फर्जी होते हैं, जो कभी अस्पताल आए ही नहीं। यदि वर्षों पुराने ओपीडी रजिस्टर की जांच की जाए तो बड़े दवा घोटाले का खुलासा हो सकता है।
सरकारी सेवा शर्तों का खुला उल्लंघन
शिकायत में कहा गया है कि काशिफ रजा सरकारी कर्मी होने के बावजूद सेवा समय में निजी दवा दुकान चला रहे हैं, जो सेवा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। ग्रामीणों ने यह सवाल उठाया है कि क्या एक सरकारी कर्मचारी को अपनी ड्यूटी के समय निजी क्लिनिक चलाने की अनुमति दी जा सकती है?
पत्रकारिता की आड़ में विभागीय भय का माहौल
काशिफ रजा पर यह भी आरोप लगाया गया है कि वे पहले पत्रकारिता से भी जुड़े थे और अब भी परोक्ष रूप से पत्रकारिता का इस्तेमाल कर विभागीय अधिकारियों को डराने-धमकाने का काम करते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि सीएचसी जगन्नाथपुर के कर्मी उनकी पत्रकारिता से भयभीत रहते हैं और उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाते।
भाई को भी गुपचुप तरीके से दिलवाया पदस्थापन
एक अन्य बड़े आरोप के तहत ग्रामीणों ने खुलासा किया है कि काशिफ रजा ने अपने भाई डॉ. शरीफ रजा को भी गुपचुप तरीके से जैतगढ़ पीएचसी में पदस्थापित करा दिया है, जबकि वह लंबे समय से ओडिशा के एक निजी अस्पताल में कार्यरत हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह स्पष्ट रूप से भाई-भतीजावाद का मामला है।
फर्जी बहाली और प्रतिनियोजन का भी आरोप
काशिफ रजा की प्रारंभिक बहाली भी ग्रामीणों के अनुसार संदेहास्पद रही है। उनका कहना है कि 2005 में एससी/एसटी कोटे के तहत उनकी अनुबंध पर बहाली हुई थी, लेकिन बाद में सांठगांठ कर अपने गृह प्रखंड जैतगढ़ में प्रतिनियोजित हो गए। जब 2016 में स्थायी नियुक्ति मिली, तब भी चाईबासा सदर अस्पताल के बजाय जैतगढ़ वापस आ गए। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि एक बार वह आपराधिक मुकदमे में जेल जा चुके हैं और निलंबित भी हो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद सेवा में बहाल रहना विभागीय लापरवाही को दर्शाता है।
जेल और निलंबन के बावजूद सेवा में बहाल, विभागीय सांठगांठ का आरोप
ग्रामीणों ने जानकारी दी कि क्योंझर (ओडिशा) के चम्पुआ थाना क्षेत्र में टाटा स्टील के अधीन कार्यरत एक पुलिसकर्मी के अपहरण मामले में काशिफ रजा जेल भी जा चुके हैं। जेल जाने के बाद उन्हें विभाग द्वारा निलंबित किया गया था, लेकिन बेल पर बाहर आने के बाद उन्होंने पुनः जैतगढ़ पीएचसी में सेवा देनी शुरू कर दी। ग्रामीणों ने इसे विभागीय सांठगांठ और अनुशासनहीनता का उदाहरण बताया है।
ग्रामीणों की स्पष्ट मांग : उच्चस्तरीय जांच और सेवा से बर्खास्तगी
ग्रामीणों की ओर से स्पष्ट तौर पर यह मांग की गई है कि काशिफ रजा के विरुद्ध उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन कर पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जाए और दोष सिद्ध होने पर उन्हें सेवा से बर्खास्त किया जाए।
शिकायत की प्रतिलिपि कई उच्चाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को भेजी गई
इस गंभीर प्रकरण को लेकर ग्रामीणों ने अपनी शिकायत की प्रतिलिपि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, झारखंड के मुख्यमंत्री, राज्य स्वास्थ्य मंत्री, अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री, विधानसभा नेता प्रतिपक्ष, सड़क परिवहन मंत्री, स्वास्थ्य सचिव, चाईबासा के सिविल सर्जन, विधायक सरयू राय, जगन्नाथपुर के स्थानीय विधायक और सांसद समेत कुल 20 से अधिक वरिष्ठ पदाधिकारियों को भेजी है।
क्या कहती है स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी?
इस पूरे मामले में अब तक स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। सवाल यह भी है कि क्या विभागीय अधिकारियों को इस अनियमितता की जानकारी नहीं थी, या जानबूझकर अनदेखी की जा रही है?
निष्कर्ष : ग्रामीणों की लड़ाई अब व्यवस्था बनाम भ्रष्टाचार
जैतगढ़ पीएचसी का यह मामला केवल एक कर्मचारी का नहीं, बल्कि संपूर्ण ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की साख और पारदर्शिता का भी सवाल है। ग्रामीणों की यह मांग अब एक स्थानीय शिकायत नहीं, बल्कि राज्यव्यापी मुद्दा बनती जा रही है। देखना यह होगा कि क्या सरकार इस पर त्वरित संज्ञान लेती है या यह भी अन्य मामलों की तरह लंबी जांच और फाइलों में दफन होकर रह जाएगा।