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“जेठ की तपिश पर सावन की दस्तक: सारंडा में राहत की फुहार”

 

किरीबुरु-मेघाहातुबुरु क्षेत्र में दोपहर बाद की वर्षा और ओलावृष्टि ने गर्मी से कराहते जनजीवन को दी सुकून की सौगात, हवाओं ने छेड़ा मौसम का रूमानी तराना।

सारंडा की धरती पर जब सावन की फुहारें गिरीं

रिपोर्ट: शैलेश सिंह
सारंडा के हरे-भरे जंगलों और लौह नगरी किरीबुरु-मेघाहातुबुरु की तपती गलियों में जब दोपहर बाद वर्षा की पहली बूंदें गिरीं, तो मानो प्रकृति ने खुद अपने हाथों से राहत का पैगाम भेजा। बीते कई दिनों से सूरज का तेवर इतना तीखा था कि मानो आकाश से आग बरस रही हो। पेड़-पौधे मुरझा चुके थे, पशु-पक्षी तक प्यास से बेहाल थे और आम जनजीवन गर्मी की गिरफ्त में छटपटा रहा था।

सारंडा जंगल की तस्वीर

ठंडी हवाओं ने दिल को छू लिया

लेकिन आज की दोपहर जैसे ही काले बादल उमड़े और बूंदों की रिमझिम शुरू हुई, मौसम ने ऐसी करवट ली कि लोग घरों से बाहर निकल आए। हल्की ओलावृष्टि और तेज बयार ने मानो आसमान से चांदी के फूल बरसाए हों। सड़कों पर दौड़ते बच्चे, छतों से झांकती आंखें, पेड़ों के नीचे भीगते बुज़ुर्ग – सबकी आंखों में सुकून की चमक थी।

वर्षा का नजारा

मानो किसी ने गर्मी के सफे पर ठंडी नज़्म लिख दी हो

लोगों ने कहा, “आज की बारिश ने तन ही नहीं, मन को भी भिगो दिया।” जेठ की दुपहरियों में जब पसीना तक सूख जाता है, तब ऐसी रिमझिम बूंदें किसी कविता की तरह उतरती हैं दिल पर। गर्म हवा के थपेड़ों में जब साँस लेना दूभर हो गया था, तब इस बारिश ने मानो घुटन को धुला दिया। ऐसा प्रतीत हुआ मानो किसी कवि की कल्पना में जन्मी बूँदें इस शहर की धूल को धोने उतर आई हों।

गर्मी की घुटन में ‘मधुबनी’ सी बयार

किसी ने महसूस किया जैसे सावन समय से पहले लौट आया हो। कहीं चाय की दुकानों पर कपों की टनटनाहट सुनाई देने लगी, तो कहीं बरामदों में बैठकर लोग बूंदों की रागिनी सुनने लगे। खेतों की मिट्टी से उठती सोंधी खुशबू ने जैसे हृदय को भी नम कर दिया। और हवाओं ने जो राग छेड़ा, वह किसी बांसुरी की धुन से कम न था।

प्रकृति की ये मोहब्बत भरी पाती

सारंडा में इस समय की बारिश सिर्फ मौसम का बदलाव नहीं, बल्कि एक भावनात्मक राहत भी बन गई। यह बरसात कहीं थके-मांदे दिलों के लिए गीत बन गई, कहीं तपते चेहरों पर मुस्कान की चादर। इस बारिश ने एक बार फिर ये जताया कि प्रकृति जब चाहे, किसी शायर से बढ़कर कलम चला सकती है।

लोगों की जुबान पर दुआएं

लोगों ने न सिर्फ इस बारिश का स्वागत किया, बल्कि मन ही मन प्रकृति को धन्यवाद भी दिया। बुजुर्गों ने कहा, “ये बारिश नहीं, ऊपर वाले की मेहर है।” किसान मुस्कराए, बच्चे झूमे और घरों की छतें एकबार फिर गीतों से गूंज उठीं। यह क्षण था, जब गर्मी की कठोरता पर सावन की नरमी भारी पड़ी।

अंत में…

कभी-कभी मौसम भी शायरी करता है, और आज सारंडा ने उस शायरी को जी लिया। इस बारिश ने बता दिया कि तपिश कितनी भी तीखी हो, राहत की बूंदें देर-सबेर जरूर आती हैं – जैसे किसी सूनी दुपहरी में कोई पुराना प्रेम गीत गुनगुना दे।

आज की शाम, बस यूं ही नहीं भीगी… वह दिलों तक उतर गई।

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