WDC-PMKSY 2.0 योजना के तहत ग्रामीण जीवनशैली में बदलाव की कहानी
रिपोर्ट: सरायकेला-खरसावां
सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड में चल रही प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (WDC-PMKSY 2.0) के अंतर्गत “सरायकेला-WDC-2/2021-22” परियोजना अब ग्रामीण जीवनशैली में क्रांतिकारी बदलाव का माध्यम बन रही है। 34 गांवों में फैली यह परियोजना 5725.33 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर कर रही है, जिसका लक्ष्य जल संरक्षण, खेती की उत्पादकता बढ़ाना और ग्रामीण आजीविका को सशक्त करना है।
परियोजना का स्वरूप और उद्देश्य
परियोजना नाम: सरायकेला-WDC-2/2021-22
ब्लॉक: राजनगर
कुल गांव: 34
कुल क्षेत्रफल: 5725.33 हेक्टेयर
शुद्ध परियोजना क्षेत्र: 4883.55 हेक्टेयर
प्रस्तावित लागत: ₹1074.38 लाख
वन क्षेत्र: 267.35 हेक्टेयर
बारानी (Rainfed) क्षेत्र: 3190.86 हेक्टेयर
कुल परिवार: 3079
जनसंख्या: 16,400 (ST – 10,118 | SC – 216)
इस परियोजना की भौगोलिक स्थिति 22°28’57.434″N से 22°33’46.263″N अक्षांश और 85°54’12.615″E से 86°1’21.114″E देशांतर के बीच फैली है। यह क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी पठारी क्षेत्र के अंतर्गत आता है जहाँ काली, अब्रैसिव और कुछ मात्रा में जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।
प्रमुख फसलें और जलवायु अनुकूलता
यह क्षेत्र मुख्यतः धान, ज्वार, बाजरा, मक्का और गेहूं की खेती के लिए अनुकूल है। बारानी खेती पर निर्भर यह इलाका वर्षा आधारित है, इसलिए जल प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है।
उपलब्ध संसाधनों का विकास
परियोजना के तहत कई जल-संरक्षण संरचनाएँ जैसे तालाब, स्टोन चेक डैम, ट्रेंचेज, बंसी क्रॉसिंग आदि निर्मित किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए:
टैंक निर्माण (TCB): लगभग 460 इकाइयाँ
स्ट्रक्चरल इंटरवेंशन्स: लगभग 24 स्थानों पर
क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: समुदायों को जल संरक्षण, खेती, पशुपालन व वृक्षारोपण में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
सामुदायिक भागीदारी और लाभ
योजना के कार्यान्वयन में ग्राम वासियों की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया गया है। स्थानीय SHG (Self Help Groups), युवा समितियाँ और महिला मंडलों की भूमिका योजना की सफलता में महत्वपूर्ण रही है। इनकी भागीदारी से पारंपरिक जलस्रोतों का पुनरुद्धार और कृषि प्रणाली में नवाचार हुआ है।
असर: बदली ग्रामीणों की सोच
परियोजना से जुड़े किसानों का कहना है कि आज वे बेहतर जल प्रबंधन, अधिक उपज और कम लागत वाली तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। वर्षा जल संचयन से भूजल स्तर में वृद्धि हुई है, जिससे रबी फसलें भी अब संभव हो रही हैं। कुछ किसानों ने मछली पालन और सब्जी की खेती शुरू कर वैकल्पिक आय के स्रोत भी विकसित किए हैं।
अवरोध और चुनौतियाँ
हालांकि कुछ गांवों में प्रारंभिक चरण में भू-अधिकार, तकनीकी ज्ञान और संरचना निर्माण की गति में चुनौतियाँ आईं, परंतु निरंतर निगरानी और ग्राम स्तरीय बैठकें इन समस्याओं को सुलझाने में कारगर रहीं।
‘वाटरशेड से वैल्यू चेन’ की ओर
सरायकेला परियोजना झारखंड के लिए यह उदाहरण है कि किस प्रकार एक समन्वित और सामुदायिक आधारित योजना ग्रामीण परिवर्तन का आधार बन सकती है। यह परियोजना “वाटरशेड टू वैल्यू चेन” मॉडल का प्रतीक बन रही है, जहाँ केवल जल संरक्षण ही नहीं, बल्कि खेती, रोजगार और पर्यावरण संरक्षण तीनों पहलुओं पर एक साथ काम हो रहा है।
निष्कर्ष
सरायकेला-WDC-2/2021-22 परियोजना ने यह साबित कर दिया है कि समर्पण, योजना और समुदाय की सहभागिता से जलवायु संकट, गरीबी और पलायन जैसी समस्याओं को मात दी जा सकती है। आने वाले वर्षों में इस मॉडल को झारखंड के अन्य जिलों में भी अपनाने की आवश्यकता है।