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संथाली भाषा को डिजिटल मंच मिला: पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन ने एसेका की वेबसाइट का किया उद्घाटन

 

ओलचिकी लिपि को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम, शैक्षणिक संस्थानों को डिजिटल माध्यम से जोड़ा जाएगा

विशेष संवाददाता ।
इंटरनेट और डिजिटल युग में अब संथाली भाषा भी तकनीक के सहारे नई उड़ान भरने को तैयार है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ आदिवासी नेता चम्पाई सोरेन ने रविवार को एसेका (A.S.E.C.A) द्वारा विकसित संथाली भाषा एवं ओलचिकी लिपि पर आधारित एक नई वेबसाइट www.aseca.org.in का शुभारंभ किया। इस पहल का उद्देश्य संथाली भाषा को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाना और इसे डिजिटल शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुँचाना है।

संथाली भाषा और ओलचिकी लिपि को तकनीकी आधार

संथाली भाषा के लिए काम कर रही संस्था एसेका (आदिवासी सोशियो-एजुकेशन एंड कल्चर एसोसिएशन) ने यह वेबसाइट ऐसे समय में लॉन्च की है जब डिजिटल शिक्षा की पहुँच तेजी से बढ़ रही है। वेबसाइट पर ओलचिकी लिपि में साहित्य, पाठ्यपुस्तकें और शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी, जो छात्रों, शोधकर्ताओं और शिक्षकों के लिए अत्यंत उपयोगी होगी।

संस्था का लक्ष्य है कि भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में स्थित संथाली भाषी समुदायों को इस डिजिटल मंच से जोड़ा जाए।

चम्पाई सोरेन ने बताया भाषा संरक्षण का ‘डिजिटल पथ’

इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने कहा—

“इंटरनेट के इस युग में नई तकनीक का उपयोग कर हम नई पीढ़ी को अपनी भाषा और संस्कृति से जोड़ सकते हैं। ओलचिकी लिपि के माध्यम से संथाली भाषा को संरक्षित और संवर्धित करने का सपना पंडित रघुनाथ मुर्मू ने देखा था, यह वेबसाइट उसी सपने की आधुनिक अभिव्यक्ति है।”

उन्होंने यह भी स्मरण दिलाया कि उनके मुख्यमंत्री काल में संथाली समेत अन्य आदिवासी भाषाओं में प्राथमिक शिक्षा का प्रस्ताव उनकी कैबिनेट से पारित हुआ था, जो राज्य की शिक्षा नीति में ऐतिहासिक पहल थी।

ओलचिकी लिपि: वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली लिपि

ओलचिकी लिपि को लेकर चम्पाई सोरेन ने कहा कि यह एक वैज्ञानिक लिपि है, जो भाषा सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाती है। उन्होंने इसे जनजातीय भाषाओं के लिए एक आधुनिक उपकरण बताया जिससे मातृभाषा में पढ़ाई को एक नई दिशा मिल सकती है।

वीर सिदो-कान्हू के वंशज का ऐतिहासिक दृष्टिकोण

इस मौके पर उपस्थित वीर सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू ने इस पहल को “ऐतिहासिक” करार दिया। उन्होंने कहा कि

“एसेका की यह पहल न केवल संथाली भाषा की गरिमा को बढ़ाएगी, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान दिलाने में मदद करेगी। डिजिटल युग में भाषा और संस्कृति को तकनीक के साथ जोड़ना समय की आवश्यकता है।”

संस्था की योजना और दृष्टिकोण

एसेका के प्रमुख जीतराय मुर्मू ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बताया कि संस्था का उद्देश्य संथाली भाषा को मानक प्रारूप में विकसित कर शैक्षणिक संस्थानों तक पहुँचाना है। उन्होंने कहा—

“हम भारत, नेपाल और बांग्लादेश के कई हिस्सों में संथाली भाषा की शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं। अब वेबसाइट के माध्यम से और अधिक संस्थानों को जोड़ना संभव होगा।”

वेबसाइट पर ऑनलाइन पाठ्यक्रम, डिजिटल पुस्तकालय और शिक्षण संसाधन जैसी सुविधाएं होंगी, जिससे छात्रों और शिक्षकों को गुणवत्तापूर्ण सामग्री उपलब्ध कराई जा सकेगी।

क्या है एसेका?

एसेका (A.S.E.C.A – आदिवासी सोशियो-एजुकेशन एंड कल्चर एसोसिएशन) की स्थापना ओलचिकी लिपि के आविष्कारक पंडित रघुनाथ मुर्मू ने की थी। यह संगठन आदिवासी समुदाय के सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक विकास के लिए कार्य करता है।

संस्था का उद्देश्य संथाली भाषा, संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करना, शिक्षा के माध्यम से समुदाय को सशक्त बनाना और वैश्विक स्तर पर जनजातीय समाज की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करना है।

भविष्य की दिशा: डिजिटल और समावेशी

संथाली भाषा को डिजिटल मंच देने की यह पहल एक बड़ा संकेत है कि जनजातीय भाषाएं अब तकनीक के सहारे वैश्विक संवाद का हिस्सा बन सकती हैं। यह वेबसाइट न केवल एक सूचना संसाधन है, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन का डिजिटल विस्तार भी है।

संभवतः आने वाले समय में संथाली जैसी भाषाओं में ऑनलाइन शिक्षा, मोबाइल एप्लिकेशन, डिजिटल क्लासरूम और वीडियो कंटेंट के माध्यम से आदिवासी छात्रों के लिए शिक्षा और अवसरों के नए द्वार खुलेंगे।

निष्कर्ष: तकनीक के साथ संस्कृति की यात्रा

संथाली भाषा की यह डिजिटल यात्रा केवल एक वेबसाइट लॉन्च नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक चेतना और आधुनिकता के संगम की एक सशक्त मिसाल है। यह पहल दर्शाती है कि यदि इच्छा हो और दिशा स्पष्ट हो, तो भाषा और संस्कृति को तकनीक के साथ जोड़कर आने वाली पीढ़ियों को एक समृद्ध विरासत सौंपी जा सकती है।

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