सीएम हाउस तक पहुंचा मामला, अभियंता वर्ग में गुटबाजी तेज, विकास कार्यों पर लगा ब्रेक ।
विशेष रिपोर्ट- शैलेश सिंह ।
झारखंड सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग में टेंडर प्रक्रिया और अभियंता प्रमुख की नियुक्ति को लेकर इन दिनों गहमागहमी तेज हो गई है। विभागीय अंदरूनी हलचलों में पूर्व अभियंता राजेश रजक का नाम एक बार फिर केंद्र में आ गया है। सूत्रों के मुताबिक, कोल्हान क्षेत्र के दो विधायकों द्वारा मुख्य अभियंता सरवन कुमार और मंत्री के करीबी माने जाने वाले बबलू मिश्रा के खिलाफ सीएम से की गई शिकायत के बीच, ठेकेदारों और अभियंताओं के बीच अप्रत्यक्ष संघर्ष साफ तौर पर देखा जा रहा है।
ठेकेदारों और अभियंताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई
ग्रामीण कार्य विभाग में टेंडर प्रक्रिया ठप पड़ी है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि राजेश रजक को दोबारा सिस्टम में वापस लाने के लिए लॉबी तेज हो गई है। राजेश रजक के तीन प्रमुख ठेकेदार जो खुद को ‘सिंडिकेट के दबंग ठेकेदार’ मानते हैं, अब पूर्व अभियंता प्रमुख जेपी सिंह के प्रभाव से सक्रिय हो गए हैं। ये ठेकेदार राजेश रजक की वापसी के लिए हर स्तर पर पैरवी कर रहे हैं।
सीएम हाउस तक पहुंची पैरवी, आदिवासी नेताओं को आगे किया गया
जानकारी के अनुसार, अभियंता प्रमुख कार्यालय में कार्यरत एक वरिष्ठ अभियंता श्री टोप्पो, जो राजेश रजक के करीबी माने जाते हैं, उन्होंने आदिवासी नेताओं के जरिए मुख्यमंत्री आवास तक सीधी पैरवी पहुंचा दी है। यह प्रयास राजेश रजक को पुनः पदस्थापित कराने की दिशा में देखा जा रहा है। यहां तक कि स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता मंत्री रामदास सोरेन को भी इस लॉबी के जरिए साधने की कोशिश की जा रही है।
कल्पना सोरेन तक पहुंच बनाने की कोशिश !
सूत्रों का कहना है कि रजक लॉबी की पहुंच अब मुख्यमंत्री की पत्नी कल्पना सोरेन तक बनाने की रणनीति पर चल रही है। इससे साफ है कि लॉबी की ताकत सिर्फ विभागीय सीमाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि राजनीतिक दायरे तक फैल गई है।
टेंडर से बाहर हो चुके रजक की बेचैनी समझ से परे नहीं
राजेश रजक इस समय विभागीय टेंडर प्रक्रिया से पूरी तरह बाहर हैं, लेकिन उनकी सक्रियता यह बताने के लिए काफी है कि ठेकों के आवंटन में जो ‘मज़ा’ है, वो उन्हें कहीं और नहीं मिला। विभागीय सूत्रों की मानें तो टेंडर आवंटन में मिली सुविधा और प्रभावशाली पद की ताकत को खोने का मलाल ही है, जो रजक को पुनः सिस्टम में वापसी के लिए बेचैन कर रहा है।
विभाग में दो धड़ों में बंटे अभियंता
राजेश रजक की वापसी की लॉबी शुरू होते ही अभियंता प्रमुख कार्यालय में अभियंता दो गुटों में बंट गए हैं। एक पक्ष जहां रजक की वापसी के पक्ष में लॉबिंग कर रहा है, वहीं दूसरा पक्ष इसकी पुरजोर मुखालफत में है। इससे विभागीय कामकाज पूरी तरह प्रभावित हो रहा है। अभियंता वर्ग के इस टकराव के बीच विकास कार्य पूरी तरह रुक गए हैं।
जेपी सिंह माने जा रहे गॉड फादर
पर्दे के पीछे से राजेश रजक को फिर से सत्ता में लाने की कोशिशों में पूर्व अभियंता प्रमुख जेपी सिंह की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि जेपी सिंह लंबे समय से रजक के ‘गॉड फादर’ की भूमिका में रहे हैं और मौजूदा गतिविधियों में भी उनका छिपा हुआ हाथ होने की आशंका जताई जा रही है।
विभागीय चुप्पी पर सवाल
ग्रामीण कार्य विभाग में अभियंता प्रमुख का पद फिलहाल खाली है और टेंडर प्रक्रिया ठप पड़ी है। इसके बावजूद विभागीय मंत्री और सचिव की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। क्या यह चुप्पी जानबूझकर है या फिर राजनीतिक दबाव का नतीजा? यह स्पष्ट नहीं हो सका है, लेकिन इतना जरूर है कि सरकार के भीतर गहरी खामोशी और उलझन का माहौल है।
विकास कार्य ठप, टेंडर अटका, राज्य को हो रहा नुकसान
राज्य के ग्रामीण विकास कार्यों पर इस लड़ाई का सीधा असर पड़ा है। कई जिलों में अधूरे पड़े प्रोजेक्ट्स, लंबित टेंडर और भुगतान में देरी के कारण स्थानीय विकास कार्य पूरी तरह ठप हो चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण, पुल-पुलिया और सिंचाई योजनाएं फाइलों में कैद हो गई हैं।
सीएम का हस्तक्षेप तय माना जा रहा !
स्थिति जिस मोड़ पर पहुंच चुकी है, उसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का हस्तक्षेप अब तय माना जा रहा है। राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि जल्द ही मुख्यमंत्री इस पूरे मामले की समीक्षा कर सकते हैं। संभव है कि टेंडर प्रक्रिया को पुनः गति देने के लिए अभियंता प्रमुख की नियुक्ति और विभागीय फेरबदल की घोषणा की जाए।
असली सवाल: सिस्टम व्यक्ति विशेष पर निर्भर क्यों?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी एक व्यक्ति – चाहे वह राजेश रजक हों या जेपी सिंह – के बिना कोई विभाग पूरी तरह पंगु हो सकता है? यदि ऐसा है, तो यह प्रशासनिक व्यवस्था की विफलता है। क्या विकास की गाड़ी सिर्फ ठेकेदारों और अभियंताओं के आपसी तालमेल पर टिकी है? ऐसी व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
निष्कर्ष: पारदर्शी प्रणाली की आवश्यकता
राजेश रजक की वापसी की कोशिशें और टेंडर प्रक्रिया में बंदरबांट की चर्चाएं यह स्पष्ट करती हैं कि विभागीय प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी है। यदि मुख्यमंत्री इस अवसर का उपयोग कर टेंडर प्रणाली को पारदर्शी और स्वचालित बना दें, तो न केवल लॉबिंग पर रोक लगेगी, बल्कि विभागीय भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा।