बंद खदान, बेरोजगारी, वनाधिकार और बिजली संकट जैसे मुद्दों पर जनता बेहाल, संवादहीनता से आक्रोशित गांव
रिपोर्ट : शैलेश सिंह ।
“सांसद जोबा माझी को टॉर्च लेकर ढूंढना पड़ रहा है!” — यह कटाक्ष अब जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र की आम जनता की ज़ुबान पर आम हो चला है। कारण स्पष्ट है — एक साल पहले बड़ी उम्मीदों से चुनी गई सांसद जोबा माझी जनता के बीच से गायब हैं। यह तीखा आरोप भाजपा के जगन्नाथपुर प्रखंड अध्यक्ष राई भूमिज ने अपने एक तीखे प्रेस बयान में लगाते हुए सांसद के एक साल के कार्यकाल को “नकारा, खोखला और जनविरोधी” करार दिया है।

सिर्फ विजय जुलूस में दिखीं सांसद, फिर जनता से संवाद खत्म!
राई भूमिज ने बयान में कहा कि सांसद जोबा माझी को जनता सिर्फ एक बार लोकसभा चुनाव में जीत के बाद विजय जुलूस के दौरान देख पाई, उसके बाद वे नदारद हैं।
“न सिर्फ आम नागरिक, बल्कि खुद उनकी पार्टी झामुमो के कार्यकर्ता तक परेशान हैं। सांसद से संपर्क असंभव हो चुका है। उनके वादे, घोषणाएं और भाषण अब बीते कल की बात बन चुके हैं।” – राई भूमिज

बड़े-बड़े वादे, धरातल पर शून्य
लोकसभा चुनाव के दौरान सांसद जोबा माझी ने आदिवासी बहुल क्षेत्र में जिस अंदाज़ में घोषणाओं की बौछार की थी, उससे ऐसा लगा था मानो चांद-तारे तोड़कर जनता को थाली में परोस दिए जाएंगे। वादों में शामिल थे:
- वनाधिकार पट्टा दिलाना
- बंद पड़ी खदानों को पुनः चालू कराना
- स्थानीय युवाओं को रोजगार देना
- आवास योजनाओं में पारदर्शिता लाना
- हर गांव में सड़क, बिजली, पानी की व्यवस्था कराना
लेकिन आज एक साल बाद भी हालात जस के तस हैं, बल्कि और बदतर हो चुके हैं।
बंद खदान, बेरोजगारी और पलायन: जमीनी हकीकत डरावनी
झारखंड के इस खनिज संपदा से भरपूर क्षेत्र में आज भी बंद पड़ी खदानें सड़ रहीं हैं, और हजारों की संख्या में स्थानीय मजदूर, युवा और आदिवासी बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। लोगों को जीविका के लिए दूरदराज के शहरों और राज्यों की ओर पलायन करना पड़ रहा है, जबकि सांसद ने चुनावी मंच से ‘स्थानीय को प्राथमिकता’ का नारा बुलंद किया था। गुआ के सैकड़ों परिवार विस्थापन का दंश झेल रहे हैं लेकिन सांसद उनकी समस्यायों पर मरहम लगाने आज तक नहीं पहुंची।
बिजली संकट: खराब ट्रांसफार्मर बदलने को भी सांसद का नाम नहीं
गांव-गांव में बिजली की बदहाली साफ नजर आती है। कई स्थानों पर महीनों से ट्रांसफार्मर जले पड़े हैं, लेकिन उन्हें बदलवाने के लिए न सांसद से संपर्क संभव है और न ही उनका प्रतिनिधि कहीं दिखता है।
“अब गांव वाले खुद काफी परेशान होकर बिजली विभाग कार्यालय का कई दिन चक्कर लगा ट्रांसफारमर बदलवा रहे हैं। सांसद का फोन तक नहीं लगता।”
वनाधिकार की फाइलें धूल खा रहीं, पट्टा अब भी सपना
वन अधिकार कानून के तहत आदिवासी परिवारों को मिलने वाला पट्टा आज भी कागजों में कैद है। चुनाव के समय इस मुद्दे को लेकर जोबा माझी ने तीखे वादे किए थे, परंतु आज तक एक भी ठोस पहल नहीं हुई। लोगों को अब लगने लगा है कि यह महज चुनावी शिगूफा था।
जन संवाद पूरी तरह खत्म, लोगों को ठगे जाने का अहसास
राई भूमिज के अनुसार,
“अब तो हालत यह है कि गांवों में लोग कहते हैं – सांसद से अच्छी तो पूर्व सांसद भाजपा नेत्री गीता कोड़ा थीं, जो सांसद रहते हुए और सांसद पद से हटने के बाद भी हर समय जनता के लिए उपलब्ध थीं। जोबा माझी को तो अब पार्टी के अपने कार्यकर्ता तक नहीं खोज पा रहे हैं।”
भाजपा ने दी चेतावनी, उठेगी आवाज
भाजपा प्रखंड अध्यक्ष ने चेतावनी दी है कि यदि आने वाले समय में सांसद जनता से संवाद नहीं स्थापित करतीं, और वादों को लेकर जवाबदेह नहीं बनतीं, तो भाजपा जनांदोलन खड़ा करेगी और क्षेत्र की जनता को साथ लेकर उन्हें जनदर्शन में खड़ा किया जाएगा।
निष्कर्ष:
जनप्रतिनिधि और जनता के बीच संवाद ही लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन जब सांसद खुद को जनता से काट लेती हैं, तो लोकतंत्र भी खोखला हो जाता है। जोबा माझी की एक साल की चुप्पी, वादों से गद्दारी और समस्याओं से बेपरवाही ने आज पूरे जगन्नाथपुर क्षेत्र को गुस्से और हताशा के भंवर में डाल दिया है।
अब सवाल ये नहीं कि जोबा माझी कहां हैं — सवाल ये है कि वे जनता के लिए कब जागेंगी? वरना जनता अगली बार सिर्फ टॉर्च नहीं, बल्ब और लालटेन लेकर भी उन्हें खोजती रह जाएगी… बिन नतीजे के।