द्रौपदी मुर्मू आदिवासी गौरव की प्रतीक, महिलाओं के अधिकार और योगदान पर हुई गंभीर चर्चा
गुवा, संवाददाता
नोवामुंडी कॉलेज में ‘आदिवासी अर्थव्यवस्था और समाज पर महिलाओं का प्रभाव’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन अब्दुल कलाम डिजिटल कक्ष में किया गया। कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मनोजित विश्वास के निर्देश पर तथा इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. सुमन चातोम्बा की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी का उद्देश्य आदिवासी महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक भूमिका और उनके योगदान को समझाना और छात्रों को इससे अवगत कराना था।
आदिवासी महिलाएं बनीं समाज की धुरी: प्राचार्य डॉ. मनोजित विश्वास
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मनोजित विश्वास ने कहा कि आदिवासी महिलाएं समाज और अर्थव्यवस्था के निर्माण में एक मजबूत आधार हैं। उन्होंने कहा कि कठिन परिस्थितियों में भी आदिवासी महिलाएं अपने परिश्रम और साहस से समाज को दिशा दे रही हैं।
उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने न केवल आदिवासी समाज को बल्कि समूचे देश को गौरवान्वित किया है। उनके संघर्ष और उपलब्धियां आज हर महिला के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
प्राचार्य ने कहा कि नोवामुंडी कॉलेज आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थित है, जहां 80% छात्राएँ आदिवासी समुदाय से हैं। ये छात्राएँ शिक्षा के साथ-साथ खेल, वाद-विवाद और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। उन्होंने बताया कि ये छात्राएँ न केवल घरेलू कार्यों में दक्ष हैं, बल्कि बाहरी दुनिया में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही हैं और रोजगार के क्षेत्र में भी आगे बढ़ रही हैं।
‘हो’ महिलाएं आर्थिक रीढ़: प्रो. सुमन चातोम्बा
इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. सुमन चातोम्बा ने आदिवासी महिलाओं, विशेषकर ‘हो’ समुदाय की महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि वे अपने श्रम, पारंपरिक ज्ञान और कौशल से न केवल अपने परिवार को सहारा देती हैं बल्कि पूरी आदिवासी अर्थव्यवस्था को गति देती हैं।
उन्होंने बताया कि जंगल उत्पाद, हस्तशिल्प, लघु उद्योग और कृषि आधारित कार्यों में महिलाएं प्रमुख भूमिका निभाती हैं, जिससे आदिवासी अर्थव्यवस्था सशक्त हो रही है।
प्रो. सुमन ने यह भी कहा कि इन महिलाओं की मेहनत के बावजूद उनके अधिकार, सम्मान और समुचित विकास के लिए अभी और प्रयासों की आवश्यकता है।
आदिवासी महिलाओं की जुझारू प्रकृति पर प्रकाश
सहायक प्राध्यापिका श्रीमती मंजू लता सिंकू ने आदिवासी महिलाओं की सामाजिक स्थिति, जीवन संघर्ष और उनके समर्पण को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद ये महिलाएं समाज की सेवा में निरंतर संलग्न रहती हैं। यही उनकी संस्कृति और प्रकृति का परिचायक है।
छात्र-छात्राओं ने रखा अपना दृष्टिकोण
संगोष्ठी में छात्र-छात्राओं ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया और विषय पर अपने विचार रखे। सुदर्शन लागुरी, गीता कुमारी, कृपा लागुरी, प्रीति कुमारी, कविता लागुरी, सूरज जेराई, भारती हेस्सा, अनीश पुरती, अंकिता गोप, रोशनी पुरती, पुष्पा चातर, मंजू पुरती आदि ने आदिवासी महिलाओं के समाज में योगदान, चुनौतियों और संभावनाओं पर आधारित विचार प्रस्तुत कर संगोष्ठी को ज्ञानवर्धक बनाया।
शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी
कार्यक्रम में प्रो. परमानंद महतो, साबिद हुसैन, दिवाकर गोप, धनिराम महतो, संतोष पाठक, कुलजिन्दर सिंह, डॉ. क्रांति प्रकाश, सुमन चातोम्बा, हीरा चातोम्बा, मंजूलता सिंकु, शांति पुरती सहित कॉलेज के अन्य शिक्षक-शिक्षिकाओं की उपस्थिति रही।
कार्यक्रम संचालन और समापन
संगोष्ठी का संचालन प्रो. सुमन चातोम्बा ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन साबिद हुसैन द्वारा प्रस्तुत किया गया।