प्राचीन कुदरसाई शिव मंदिर में रानी अहिल्याबाई के योगदान को किया स्मरण, कहा— “सनातन धर्म की रक्षा में उनका योगदान अमर है”
सरायकेला। पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती पर देशभर में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। इसी क्रम में नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष मनोज कुमार चौधरी ने सरायकेला के प्राचीन कुदरसाई शिव मंदिर में पूजा-अर्चना कर पुण्यश्लोक रानी अहिल्याबाई को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी और उनके सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक योगदान को याद किया।
इस अवसर पर श्री चौधरी ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर एक आदर्श महिला शासक ही नहीं, बल्कि नारी सशक्तिकरण की प्रबल प्रतीक थीं। उन्होंने अपने नेतृत्व, सेवा, परोपकार और सनातन धर्म के संरक्षण के लिए जो कार्य किए, वह आज भी अनुकरणीय हैं। उन्होंने कहा—
“हमारा दुर्भाग्य है कि हमें इतिहास की किताबों में औरंगजेब, अकबर और हुमायूं जैसे आक्रांताओं की कहानियाँ पढ़ाई गईं, लेकिन रानी अहिल्याबाई जैसी वीरांगनाओं के त्याग और सेवाभाव को उपेक्षित रखा गया।”
मंदिर निर्माण और सांस्कृतिक एकता की सूत्रधार थीं अहिल्याबाई
मनोज चौधरी ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर न सिर्फ एक कुशल प्रशासक थीं, बल्कि उन्होंने भारत की सांस्कृतिक एकता को सशक्त आधार प्रदान किया। उनके तीन दशक लंबे शासनकाल में उन्होंने मंदिरों, धर्मशालाओं, सड़कों, कुओं, बावड़ियों और प्याऊ का निर्माण कर एक कल्याणकारी शासन की नींव रखी।
“उनका उद्देश्य था कि कोई भी भूखा न सोए, और इसके लिए उन्होंने अन्नक्षेत्रों की स्थापना कर लोगों की सेवा की। वे सनातन संस्कृति की एक जीवंत मूर्ति थीं, जिनकी उपेक्षा अब नहीं की जानी चाहिए।”
ज्योतिर्लिंगों और प्रमुख तीर्थस्थलों के पुनर्निर्माण की अगुआ
श्री चौधरी ने भावुक होकर बताया कि उत्तराखंड की एक अविस्मरणीय यात्रा के दौरान उन्होंने बाबा केदारनाथ और श्री बद्री विशाल जैसे तीर्थस्थलों पर रानी अहिल्याबाई के नाम के शीलापट्ट देखे। इससे उनके मन में जिज्ञासा जगी और जब उन्होंने गूगल पर खोज कर अहिल्याबाई के बारे में जानकारी प्राप्त की, तो वे चकित रह गए।
“जहां पहुंचना आज भी कठिन है, वहां तीन सौ साल पहले एक महिला शासक ने देवालयों के पुनर्निर्माण का कार्य कराया—यह अकल्पनीय है। लेकिन यही अहिल्याबाई होल्कर का साहस, श्रद्धा और दूरदर्शिता थी।”
उन्होंने बताया कि देश के प्रमुख द्वादश ज्योतिर्लिंग स्थलों—केदारनाथ, बद्रीनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, द्वारिका, ओंकारेश्वर, महाकालेश्वर आदि—के जीर्णोद्धार का श्रेय सबसे अधिक रानी अहिल्याबाई को जाता है।
सनातन धर्म की रक्षा में योगदान अमिट
पूर्व उपाध्यक्ष चौधरी ने कहा कि रानी अहिल्याबाई ने तब मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया जब मुग़ल और ब्रिटिश आक्रांताओं ने भारत की सनातन परंपरा को नष्ट करने का प्रयास किया था। उन्होंने न केवल टूटे हुए मंदिरों को पुनर्स्थापित किया, बल्कि हिन्दू धर्म की आस्था और गरिमा को फिर से जीवित किया।
“आज हिन्दू समाज उनके एहसानों तले ऋणी है। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक रीढ़ को फिर से मज़बूती दी। उनकी भक्ति और नारी शक्ति की मिसाल आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा है।”
रानी अहिल्याबाई के जीवन से सीखने की जरूरत
इस अवसर पर श्री चौधरी ने कहा कि रानी अहिल्याबाई का जीवन सेवा, त्याग, भक्ति और संकल्प की गाथा है। उन्होंने धर्म और समाज के बीच संतुलन बनाते हुए ऐसे कार्य किए जिनसे सनातन संस्कृति को पुनः जीवंतता मिली।
“रानी अहिल्याबाई का नाम केवल मंदिरों के शिलालेखों में नहीं, बल्कि मेरे हृदय में स्थायी रूप से अंकित हो गया है। उनका योगदान अविस्मरणीय और अमर है।”
अंत में रानी अहिल्याबाई को समर्पित की श्रद्धांजलि
मनोज चौधरी ने अंत में पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर को हृदय की गहराइयों से नमन करते हुए कहा कि—
“आज हम जो मंदिरों में आराधना कर पा रहे हैं, वह रानी अहिल्याबाई जैसे परोपकारी और परम शिवभक्तों के ही कारण संभव हो सका है। हमें उनका स्मरण करते हुए उनके पदचिन्हों पर चलने का प्रयास करना चाहिए।”