एक अखबार में प्रकाशित खबर में तथ्यात्मक त्रुटियां; सेंचुरी की घोषणा से खनन क्षेत्र पर कोई प्रभाव नहीं- डा0 राकेश कुमार
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
सरंडा वन क्षेत्र को वन्यप्राणी सेंचुरी घोषित करने की दिशा में राज्य सरकार की पहल पर अब विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं, लेकिन वन्यप्राणियों के विशेषज्ञ वैज्ञानिक डा0 राकेश कुमार का मानना है कि कुछ मीडिया में इसका विरोध खनन कंपनियों के इशारे पर भ्रामक तथ्यों के आधार पर किया जा रहा है। एक दैनिक अखबार में प्रकाशित समाचार को लेकर स्वयं उनका, विशेषज्ञों और वन्यजीव संरक्षकों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे एक नकारात्मक कथा करार दिया है, जिसका उद्देश्य सारंडा सेंचुरी की योजना को पटरी से उतारना है। उन्होंने समाचार में प्रस्तुत तथ्यों को पूरी तरह अप्रमाणित और गुमराह करने वाला बताया है। डा0 राकेश कुमार अनुसार तथ्यों के आइने में देखें कि वास्तव में क्या है सच्चाई:
1. झारखंड में लौह अयस्क का कुल भंडार 4.71 अरब टन, अकेले सरंडा में 4 अरब टन का दावा गलत
भारतीय खान ब्यूरो (IBM) के 1 अप्रैल 2000 के आंकड़ों के अनुसार पूरे झारखंड राज्य में लौह अयस्क का कुल अनुमानित भंडार 4.71 बिलियन टन (अरब टन) है। अतः यह दावा कि अकेले सरंडा वन क्षेत्र में 4 बिलियन टन लौह अयस्क है, पूरी तरह से भ्रामक है। क्योंकि राज्य में अन्य क्षेत्रों जैसे चाईबासा वन प्रमंडल में भी खनिज भंडार स्थित हैं।
2. मात्र 128.321 वर्ग किमी क्षेत्र ही चिह्नित है खनन के लिए
खनिज नीति एवं सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM) के अनुसार, सरंडा वन क्षेत्र में कुल 128.321 वर्ग किमी क्षेत्र को खनन क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है, जिसमें से 106.7052 वर्ग किमी क्षेत्र माइनिंग जोन-1 और 21.6159 वर्ग किमी माइनिंग जोन-2 में आता है। अतः पूरा वन क्षेत्र खनन के लिए नहीं खोला गया है।
3. प्रस्तावित सेंचुरी का खनन क्षेत्रों पर कोई प्रभाव नहीं
माइनिंग जोन I और II पर प्रस्तावित सेंचुरी की सीमाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। घाटकुरी, करमपदा और अंकुवा रिजर्व फॉरेस्ट जैसे क्षेत्रों में स्थित खनन पट्टों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि सेंचुरी की परिधि को सावधानीपूर्वक खनन क्षेत्रों से दूर रखा गया है।
4. केवल 22 खनन पट्टों को ही संचालन की मंजूरी, 4 पट्टे सिर्फ आधारभूत संरचना के लिए
MPSM रिपोर्ट के अनुसार, सरंडा में कुल 26 पट्टों में से केवल 22 पट्टों को खनन संचालन की स्वीकृति दी गई थी। शेष 4 पट्टों को केवल सेल (सेल – किरीबुरु और मेघाहातुबुरु) की आधारभूत संरचना के निर्माण के लिए आवंटित किया गया था। इनमें से भी 3 खनन पट्टे आज तक विकसित नहीं किए गए।
5. गैर-कैप्टिव खदानों के बंद होने से उत्पादन पर कोई बड़ा असर नहीं
1 अप्रैल 2020 से गैर-कैप्टिव खदानों के बंद होने के बावजूद, वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2022-23 के बीच राज्य में लौह अयस्क का औसत वार्षिक उत्पादन मात्र 23.084 मिलियन टन रहा, जो कि 1 अप्रैल 2000 से पूर्व के 24.224 मिलियन टन से बहुत कम अंतर दर्शाता है। इससे साफ होता है कि बंदी से उत्पादन पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ा।
6. खनन कंपनियों द्वारा अयस्क भंडार की अतिरंजना
पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एमपीएसपी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि खनन कंपनियों द्वारा 2418.029 मिलियन टन लौह अयस्क का जो अनुमान प्रस्तुत किया गया था, वह अतिरंजित है। जबकि भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) की टीम ने यह आंकड़ा 2157.695 मिलियन टन बताया है जो कि 199.54 वर्ग किमी भूमि में फैला है। वहीं भारतीय खनिज वर्षपुस्तिका 2013 के अनुसार, पश्चिमी सिंहभूम जिले में लौह अयस्क का कुल भंडार 2304 मिलियन टन है (प्रमाणित – 1840, संभावित – 464 एमटी)।
7. उत्पादन क्षमता बढ़ाने हेतु वैज्ञानिक खनन और आधारभूत संरचना की जरूरत
MPSM रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि यदि राज्य सरकार वैज्ञानिक खनन के लिए बंद खदानों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करे और कन्वेयर सिस्टम, रेलवे साइडिंग आदि जैसे ढांचागत विकास कार्य करे तो उत्पादन क्षमता को 100 मिलियन टन प्रति वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
8. इको-सेंसिटिव ज़ोन को लेकर भ्रम फैलाया गया
प्रकाशित समाचार में यह दावा किया गया है कि सेंचुरी से 10 किमी की दूरी तक खनन नहीं हो सकेगा, जो कि पूरी तरह से गलत है। मौजूदा कानूनों और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) की दूरी शून्य मीटर तक हो सकती है। हालांकि, न्यायालय के आदेशानुसार सेंचुरी की सीमा से 1 किमी के भीतर खनन की अनुमति नहीं होगी। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित सरंडा सेंचुरी की सीमा को खनन क्षेत्र से न्यूनतम 1 किमी दूर रखा गया है।
9. संरक्षण रिजर्व घोषित होने पर खनन अधिकार समाप्त नहीं होते
प्राकृतिक संरक्षण की दिशा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि सेंचुरी या संरक्षण रिजर्व घोषित होने से क्षेत्र में पहले से दिए गए खनन अधिकार या रियायतें समाप्त नहीं होतीं। अतः खनन गतिविधियों पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
निष्कर्ष:
सरंडा वन क्षेत्र को वन्यप्राणी सेंचुरी घोषित करने की योजना एक सतत विकास मॉडल को सामने रखती है, जो न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा करेगी, बल्कि खनिज दोहन को भी नियंत्रित, वैज्ञानिक और टिकाऊ बनाएगी। इसे लेकर फैलाए जा रहे भ्रम और अतिरंजित दावों को तथ्यों से काटा जा सकता है। सरकार और समाज को चाहिए कि वे इस सकारात्मक पहल को समर्थन दें, जिससे आदिवासी आजीविका, जैव विविधता और खनिज नीति – तीनों का संतुलन कायम रह सके।