झारखंड मैट्रिक परीक्षा में जिले का 24वां स्थान, आदिवासी हो समाज युवा महासभा ने जताई गंभीर चिंता
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
झारखंड मैट्रिक बोर्ड परीक्षा 2025 में पश्चिमी सिंहभूम जिला राज्यभर में 24वें स्थान पर आया है। इस निराशाजनक प्रदर्शन पर आदिवासी हो समाज युवा महासभा के पूर्व अनुमंडल अध्यक्ष मंजीत कोड़ा ने गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने एक प्रेस बयान जारी कर जिले की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं और इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों की नीयत पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं।
DMFT फंड का दुरुपयोग – ‘बिल्डिंग बन रही हैं, बहाली नहीं’
श्री कोड़ा ने कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के नाम पर जिले में DMFT (District Mineral Foundation Trust) मद से करोड़ों रुपये उपलब्ध हैं, लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल वास्तविक सुधार की जगह केवल बिल्डिंग निर्माण पर किया जा रहा है।
“हमारे जिला के माननीय लोग सिर्फ बिल्डिंग पर बिल्डिंग बनाकर शिक्षा और स्वास्थ्य सुधारना चाहते हैं। उन्हें शिक्षक और डॉक्टर की बहाली से कोई मतलब नहीं, क्योंकि इसमें कमीशन नहीं मिलता। सड़क, पुल-पुलिया और भवन निर्माण में ही उनका पूरा ध्यान है, जहां मोटा कमीशन तय होता है,” – मंजीत कोड़ा
शिक्षकों की भारी कमी, एक शिक्षक वाले स्कूलों का सच
कोड़ा ने बताया कि जिले के कई स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। कुछ स्कूल तो मात्र एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। इन शिक्षकों पर बच्चों को पढ़ाने की बजाय सरकारी गाइडलाइन के अनुसार मिड-डे मील, अभिलेख संधारण और अन्य गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ डाला जाता है।
“ऐसे में स्कूलों में पढ़ाई हाशिए पर है और प्रशासन आंख मूंदे बैठा है। शिक्षा की जगह कागज़ी कार्यों और खाना वितरण की ज़िम्मेदारी प्राथमिकता बन गई है। फिर ऐसे हालात में बेहतर रिजल्ट की उम्मीद कैसे की जा सकती है?” – मंजीत कोड़ा
पश्चिमी सिंहभूम की शिक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल
पश्चिमी सिंहभूम जिला जहां एक ओर खनिज संपदा से भरपूर है, वहीं दूसरी ओर इसकी शिक्षा व्यवस्था लगातार गर्त में जा रही है। राज्य के 24वें स्थान पर आना दर्शाता है कि जिले में बच्चों को न तो गुणवत्ता वाली शिक्षा मिल पा रही है और न ही प्रशासन इसे लेकर गंभीर है।
श्री कोड़ा ने कहा कि सरकार की नीतियों और नियत पर भी सवाल उठने लाजमी हैं। उन्होंने कहा कि यह केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य का सवाल है।
‘नीतियों में बदलाव और बहाली ही है समाधान’
मंजीत कोड़ा ने मांग की है कि सरकार और जिला प्रशासन को चाहिए कि DMFT फंड का उपयोग केवल भौतिक संरचनाओं पर नहीं बल्कि मानव संसाधनों के विकास पर भी करे। जब तक स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं होंगे और स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर नहीं होंगे, तब तक विकास अधूरा ही रहेगा।
उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए जरूरी है कि प्राथमिकता के तौर पर शिक्षकों की बहाली की जाए, स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं और शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किया जाए।
बच्चों का भविष्य दांव पर
कोड़ा ने यह भी कहा कि जब स्कूलों में शिक्षक नहीं होंगे और जो होंगे उन्हें भी पढ़ाई छोड़कर अन्य कामों में लगा दिया जाएगा, तो छात्रों का भविष्य स्वाभाविक रूप से अंधकारमय होगा।
“जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को अब आत्ममंथन करने की जरूरत है कि आखिर वे किस दिशा में जिले को ले जा रहे हैं। अगर अभी भी बदलाव नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भी बदतर हो जाएगी।”
समापन में एक चेतावनी
अपने प्रेस बयान के अंत में मंजीत कोड़ा ने चेतावनी दी कि यदि जिला प्रशासन ने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले समय में आदिवासी समाज और युवा वर्ग आंदोलन के रास्ते पर भी उतर सकता है।
निष्कर्ष:
पश्चिमी सिंहभूम जैसे आदिवासी बहुल और खनिज-सम्पन्न जिले का झारखंड मैट्रिक परीक्षा में 24वें स्थान पर आना एक गंभीर चिंता का विषय है। मंजीत कोड़ा का यह बयान केवल आलोचना नहीं बल्कि एक चेतावनी है कि अगर ज़मीनी स्तर पर शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो आने वाली पीढ़ी केवल खनिज संपदा के दोहन की साक्षी बनकर रह जाएगी।