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खरसावां में मनाई गई लाको बोदरा जी की पुण्यतिथि हो समाज ने लिया संकल्प– हो भाषा और सांस्कृतिक विरासत को बनाएंगे जीवंत

खरसावां: आदिवासी हो समाज महासभा, खरसावां के प्रांगण में रविवार को हो समाज के महान साहित्यकार एवं भाषा संरक्षक लाको बोदरा जी की पुण्यतिथि श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई गई। इस अवसर पर समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े लोगों ने उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की, अगरबत्ती जलाकर विधिवत पूजा-अर्चना की और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।

कार्यक्रम की शुरुआत लाको बोदरा जी के चित्र पर माल्यार्पण से हुई। उपस्थित वक्ताओं ने उनके जीवन, विचार और योगदान को याद करते हुए कहा कि लाको बोदरा न केवल हो भाषा के पहले लिपिकार थे, बल्कि उन्होंने आदिवासी अस्मिता को मजबूत आधार भी दिया।

हो भाषा के प्रचार-प्रसार का लिया संकल्प

इस अवसर पर उपस्थित सभी लोगों ने सामूहिक रूप से यह संकल्प लिया कि हो भाषा के पठन-पाठन और प्रचार-प्रसार को गांव-गांव तक ले जाना अब हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। लाको बोदरा के सपनों को साकार करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

वक्ताओं ने दी प्रेरणादायक बातें

कार्यक्रम में प्रखंड अध्यक्ष रामलाल हेंब्रम, समाजसेवी सूरज सोय, शिक्षक सिद्धेश्वर कुदादा, उदय सोय, चांदमनी बोदरा, रानी पाडिया, सुरजामाटी सोय, आशा तीयु, मालती सुंडी, रघु हासदा, अमर सिंह गागराई, लक्ष्मण सोय सहित अन्य गणमान्य लोगों ने अपने विचार रखे।

सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि हो समाज के नवयुवकों को अपनी मातृभाषा से जुड़ना चाहिए। भाषा ही संस्कृति की आत्मा है, और लाको बोदरा जी ने जो बीज बोया था, उसे अब पेड़ बनाकर आनेवाली पीढ़ी को सौंपना है।

छात्र-छात्राओं की रही भागीदारी

इस अवसर पर हो भाषा पढ़ने वाले कई विद्यार्थी भी कार्यक्रम में शामिल हुए, जिन्होंने अपने विचारों और गीतों के माध्यम से लाको बोदरा को श्रद्धांजलि दी और यह दर्शाया कि नई पीढ़ी भी अपने भाषा-संस्कृति के संरक्षण को लेकर गंभीर है।

कार्यक्रम का उद्देश्य और सफलता

कार्यक्रम को सफल बनाने में समाज के सभी वर्गों की सक्रिय भागीदारी रही। अंत में सभी ने यह आशा और विश्वास जताया कि हो समाज की एकता, भाषा, संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने का यह अभियान निरंतर आगे बढ़ेगा।

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