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झारखंड की राजनीति: कुर्सी के नीचे चूल्हा, ऊपर खिचड़ी!

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दिशुम गुरु बीमार, लेकिन राजनीति एकदम तंदुरुस्त!

रिपोर्ट: शैलेश सिंह

झारखंड में सत्ता परिवर्तन की अफवाहों पर कांग्रेस समेत सबकी नजर

झारखंड के वयोवृद्ध दिशुम गुरु शिबू सोरेन की तबीयत खराब है। दिल्ली में इलाज चल रहा है, बेटे मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन पिता की सेवा में दिन-रात लगे हैं। पर सवाल यह है कि क्या केवल गुरु जी की तबीयत ही कारण है, या राजनीति की रसोई में कोई और भी डिश पक रही है?

राजनीति के शेफ बने हेमन्त सोरेन

हेमन्त बाबू, दिल्ली में बैठकर झारखंड चला रहे हैं। रांची से फाइलें दिल्ली जा रही हैं, दिल्ली से आदेश लौट रहे हैं। कुछ लोग इसे ‘दिल्ली दरबार मॉडल ऑफ गवर्नेंस’ भी कह रहे हैं।

दिल्ली वाले गेम में कौन-कौन खिलाड़ी?

विधायक-सांसद दिल्ली दर्शन के बहाने

पिछले महीने झारखंड के लगभग सारे विधायक और सांसद दिल्ली दौरे पर देखे गए। कहने को गुरु जी का हाल-चाल लेने गए, लेकिन साथ में राजनीतिक इलाज भी करा आए।

कांग्रेस पार्टी की तीसरी आंख

कांग्रेस ने दिल्ली की गलियों में खुफिया एजेंसी तक तैनात कर रखी है। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस जानती है कि भाजपा झारखंड की राजनीति में कोई भी ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’ स्टाइल ड्रामा कर सकती है।

सियासी पंडितों की भविष्यवाणी: सावन में सत्ता पलटी संभव!

जुलाई-सावन का महीना शुरू हो गया है। मंदिरों में जल चढ़ रहा है, झारखंड की राजनीति में बयानों की बौछार हो रही है। राजनीतिक पंडित कह रहे हैं— “कुछ न कुछ जरूर पक रहा है।”

आर्थिक स्थिति: खजाना खाली, सरकार बेहाल

राज्य के खजाने में झाड़ू लग चुकी है। केंद्र सरकार से मांगे गए फंड पर भी ‘कोई उत्तर नहीं’ का स्टीकर चिपका है। मईयां सम्मान योजना की राशि पर भी ग्रहण की आशंका है। यानी गांव-गांव में सरकार की योजना अधर में लटक गई है।

मुख्यमंत्री बनाम पूर्व मुख्यमंत्री: रघुवर दास भी हुए सक्रिय!

लंबे समय बाद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास अचानक दिल्ली पहुंचे। गुरु जी का हाल चाल जानने के नाम पर हेमन्त सोरेन से मुलाकात भी कर ली। लेकिन राजनीति में चाय पीना भी खबर बन जाता है, यह सब जानते हैं।

‘टी ब्रेक’ या ‘पावर ब्रेक’?

यह मुलाकात केवल चाय-नमकीन के लिए नहीं थी, इसमें राज्य की सत्ता परिवर्तन की सुगबुगाहट भी शामिल थी— ऐसा सूत्रों का कहना है।

अफसरशाही का तड़का: किसका है दिल दिल्ली में?

राज्य के कुछ वरिष्ठ भारतीय प्रशासनिक अधिकारी भी इस खेल में अप्रत्यक्ष भूमिका निभा रहे हैं। मजेदार बात यह कि वही अफसर हेमन्त सोरेन के खास भी हैं और भाजपा के साथ भी मधुर संबंध रखते हैं। यानी “दो नावों पर सवार खिलाड़ी!”

फाइलों का लंबा सफर: रांची से दिल्ली और वापसी

अब झारखंड में विकास योजनाओं की फाइल पहले दिल्ली जाती है, फिर साइन हो कर वापस आती है। कभी दिल्ली से फाइलें लौटने में 10 दिन, कभी 15 दिन।

कांग्रेस की ‘विधायक दर्शन’ स्कीम: रायशुमारी या मजबूरी?

कांग्रेस पार्टी झारखंड के अपने विधायकों को दिल्ली बुला रही है। हर दूसरे दिन मीटिंग, हर तीसरे दिन सलाह। कहते हैं, रायशुमारी के नाम पर असल में संख्या गिनी जा रही है कि कहीं कोई बिकने वाला तो नहीं?

कांग्रेस की चिंता: ‘आपरेशन लोटस’ का डर

कांग्रेस को डर है कि भाजपा ‘आपरेशन लोटस’ चला सकती है। इसलिए हर विधायक की लोकेशन ट्रैकिंग चालू है।

गुरु जी स्वस्थ होंगे या राजनीति बीमार?

सवाल उठ रहा है— क्या गुरु जी के स्वस्थ होने तक ही यह सब चलेगा, या उसके बाद कोई बड़ा धमाका होगा? क्या सचमुच झारखंड में सत्ता परिवर्तन की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है?

दिल्ली की गलियों से रांची के चौक-चौराहों तक अफवाहों का बाज़ार गर्म

जनता: कान खड़े, आंखें चौकन्नी

झारखंड की जनता भी सब देख-सुन रही है। चाय की दुकान से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह चर्चा है कि “क्या सच में सरकार गिरने वाली है?”

नेताओं की इंद्रियां सक्रिय:

सूंघने से सुनने तक नेता जी लोग अपनी इंद्रियों को पूरी तरह से एक्टिव मोड में डाल चुके हैं। कौन कब, कहां, किससे मिल रहा है, किसने किसे फोन किया— सब पर नजर।

अमित शाह का झारखंड प्रेम: इत्तेफाक या संकेत?

हाल ही में राजधानी रांची में नॉर्थ ईस्ट डेवलेपमेंट पर बैठक हुई। उसमें गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए। वहां हेमन्त सोरेन के अभिनंदन का तरीका भी चर्चा का विषय बन गया।

पॉलिटिकल एनालिस्ट्स के सवाल:

क्या ये केवल सरकारी कार्यक्रम था या फिर सत्ता परिवर्तन का ‘ट्रेलर’?

एक और बात: अधिकारी राज की भी आशंका!

राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के दिल्ली से लगातार संवाद हो रहे हैं। अफसरशाही इस वक्त खुद भी असमंजस में है— किसका साथ दें? मुख्यमंत्री हेमन्त या भविष्य के संभावित मुख्यमंत्री?

आर्थिक संकट की आड़ में सत्ता का खेल!

झारखंड सरकार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि छोटे-छोटे विकास कार्य भी ठप पड़ गए हैं। इस हालात में मुख्यमंत्री के लिए दिल्ली में बैठ कर सरकार चलाना खुद में चुनौती है।

केन्द्र बनाम राज्य: ‘कोई फंड नहीं बाबा!’

केंद्र से कोई फंड नहीं आ रहा, राज्य में कोई योजना पूरी नहीं हो पा रही। सबकुछ ठप!

भाजपा की रणनीति: शांति के पानी में हलचल!

भाजपा झारखंड में चुपचाप बैठ कर शिकार की रणनीति बना रही है। ज्यादा शोर नहीं कर रही, लेकिन अंदर ही अंदर पूरे गणित लगा रही है।

सूत्रों का कहना: “भाजपा का स्टाइल ही यही है। अचानक से सरकार बदलवा देना। कर्नाटक, मध्य प्रदेश में हो चुका है, झारखंड क्यों नहीं?”

निष्कर्ष: जुलाई झारखंड के लिए निर्णायक?

राजनीतिक सूत्र मानते हैं कि जुलाई महीना झारखंड की राजनीति में निर्णायक साबित हो सकता है।

‘दिल्ली में बैठा सीएम, रांची में खाली कुर्सी!’

ये सिलसिला कब तक चलेगा? क्या दिल्ली में बैठ कर झारखंड की सरकार चलाई जा सकती है?

आखिरी सवाल: झारखंड में ‘पॉलिटिकल मानसून’ कब बरसेगा?

झारखंड में सत्ता परिवर्तन की सुगबुगाहट हर बार गर्मी में शुरू होती है, बरसात में तेज होती है और सर्दी आते-आते या तो खबर बनती है या फिर अफवाह!

इस बार सावन का झूला सत्ता के गलियारे में झूल रहा है। देखना है— झूला टूटता है, उलटता है या झारखंड में फिर से सियासी मौसम साफ होता है।

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