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अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस सादगी और सम्मान के साथ मनाया गया

आदिवासी संयुक्त मंच, किरीबुरू–मेघाहातुबुरु के तत्वाधान में विशेष कार्यक्रम

रिपोर्ट – शैलेश सिंह


श्रद्धांजलि और मौन से कार्यक्रम की शुरुआत

मेघाहातुबुरु सामुदायिक भवन में शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस का आयोजन आदिवासी संयुक्त मंच, किरीबुरू–मेघाहातुबुरु के तत्वाधान में सादगी और गरिमा के साथ किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत महान आदिवासी नेता दिसुम गुरु शिबू सोरेन की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर और दो मिनट का मौन धारण कर हुई। मौन के बाद अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर समारोह का औपचारिक उद्घाटन किया।


“हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं” – सावित्री सवैया

समारोह में किरीबुरू थाना की महिला पुलिस पदाधिकारी एएसआई सावित्री सवैया ने कहा—

“हमें गर्व है कि हम आदिवासी हैं। हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता और हमारी परंपराएं हमारी सबसे बड़ी पूंजी हैं। हमें सभी को मिलकर समाज का विकास करना है, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से जुड़ी रहें।”

उन्होंने जोर दिया कि शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर समाज को आगे आकर काम करना होगा।


“हम जनजाति नहीं, आदि काल से रहने वाले आदिवासी” – इलियास भेंगरा

समाजसेवी इलियास भेंगरा ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी समाज को ‘जनजाति’ कहकर सीमित नहीं किया जाना चाहिए।

“हम इस धरती के आदि निवासी हैं। हमारी पहचान, भाषा, संस्कृति और रीति-रिवाज हजारों वर्षों से इस धरती से जुड़े हैं। क्षेत्र में 32 आदिवासी जनजातियां हैं, जो अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं।”

उन्होंने कहा कि सरकार और समाज को मिलकर आदिवासी अधिकारों और परंपराओं की रक्षा करनी चाहिए।


स्थानीय मुखिया और गणमान्य लोगों की सहभागिता

कार्यक्रम में क्षेत्र के कई मुखिया और गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
मुखिया पार्वती कीड़ों, प्रफुल्लित ग्लोरिया टोपनो, लिप्पी मुंडा, बीर सिंह मुंडा, इलियास चामपिया, सुमन मुंडू, पूर्ण चंद्र करूवा, एलिजाबेथ पूर्ति, कुमुद हेंब्रम, और फ्रांसिस लोमगा ने अपने-अपने विचार रखते हुए आदिवासी संस्कृति की महत्ता और इसके संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया।


बच्चों में पौधों का वितरण – पर्यावरण का संदेश

समारोह में बच्चों के बीच पौधों का वितरण किया गया। आयोजकों का मानना है कि पर्यावरण संरक्षण और जलवायु संतुलन के लिए पौधारोपण आवश्यक है।
बच्चों को पौधे देकर यह संदेश दिया गया कि वे अपने जीवन में प्रकृति के महत्व को समझें और इसकी रक्षा में योगदान दें।


अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस का महत्व

हर साल 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1994 में इस दिवस को घोषित किया था, ताकि विश्व भर के आदिवासी समुदायों के अधिकार, संस्कृति और योगदान को मान्यता दी जा सके।
झारखंड में यह दिवस विशेष महत्व रखता है क्योंकि यहां आदिवासी समाज राज्य की पहचान और सांस्कृतिक धरोहर का मूल है।


स्थानीय संदर्भ – किरीबुरू और मेघाहातुबुरु में आदिवासी संस्कृति

किरीबुरू और मेघाहातुबुरु इलाका आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जहां मुंडा, हो, संथाल, उरांव, भूमिज, खड़िया समेत कई जनजातियां निवास करती हैं।
यहां की सरहुल, करमा, सोहराय जैसी पारंपरिक पर्व-त्योहार न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकजुटता के प्रतीक भी हैं।
लोहे की खदानों के बीच भी यहां की आदिवासी संस्कृति अपनी अलग पहचान बनाए हुए है, जिसे संरक्षित रखना सभी का दायित्व है।


सादगी में भी गहरी भावना

हालांकि इस बार समारोह भव्य नहीं था, लेकिन सादगी में भी एकजुटता और सांस्कृतिक गर्व की भावना साफ झलक रही थी।
अतिथियों और प्रतिभागियों का मानना था कि असली उत्सव केवल नृत्य-गान में नहीं, बल्कि अपनी पहचान को जीवित रखने के प्रयास में है।

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