खनन के लालच में उजड़ता जंगल, सेंचुरी से मिलेगा ग्रामीणों को रोजगार और सारंडा को नई पहचान
रिपोर्ट : शैलेश सिंह (सारंडा)
झारखंड के सबसे घने और समृद्ध साल वृक्षों से आच्छादित सारंडा जंगल को बचाने की लड़ाई एक बार फिर तेज हो गई है। पूर्व मंत्री एवं विधायक सरयू राय ने सारंडा को वन्यप्राणी अभयारण्य (सेंचुरी) घोषित करने की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि अगर यह कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाली पीढ़ियां जंगल के अस्तित्व और इसके पारिस्थितिकी तंत्र को सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी।
“साल का पेड़ सौ-सौ साल तक सड़ता नहीं”
मेघालया गेस्ट हाउस, मेघाहातुबुरु में सिंहभूम हलचल से विशेष बातचीत में विधायक सरयू राय ने कहा, “सारंडा का साल (सखुआ) जंगल एशिया में अपनी विशेषता के लिए जाना जाता है। इस जंगल के पेड़ों की खासियत है कि सौ साल खड़ा रहे, सौ साल पड़ा रहे, फिर भी नहीं सड़े। लेकिन दुर्भाग्य है कि जिस जंगल की यह अमरता है, वह इंसानी लालच की वजह से मिटता जा रहा है।”
सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है सेंचुरी का मामला
सरयू राय ने बताया कि सारंडा को सेंचुरी घोषित करने का मामला सुप्रीम कोर्ट के अधीन है और हाल ही में झारखंड सरकार के एक वरिष्ठ सचिव को माफी मांगनी पड़ी। शीर्ष अदालत ने आगामी 23 जुलाई को सरकार से प्रस्ताव लाने को कहा है। यह ऐतिहासिक अवसर है जब राज्य सरकार को इस दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए।
“खनन उतना ही हो, जितना जरूरी हो”
विधायक राय ने खनन नीति की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि लौह अयस्क का खनन देश के कल-कारखानों की जरूरत के हिसाब से सीमित होना चाहिए, न कि राजस्व के लालच में विदेशी कंपनियों को बेचने के लिए। उन्होंने कहा, “सरकारें सिर्फ पाँच साल के फायदे की सोचती हैं, लेकिन इस जंगल की पीड़ा सौ साल बाद भी खत्म नहीं होगी।”
सारंडा में सेंचुरी बनने से मिलेगा स्थायी रोजगार
उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि सारंडा को सेंचुरी घोषित कर दिया जाता है, तो इसका सबसे बड़ा फायदा स्थानीय ग्रामीणों को मिलेगा।
“यहाँ कम-से-कम छह महीने से लेकर सालभर रोजगार मिलेगा। जंगल और वनोत्पाद ग्रामीणों की भुखमरी से रक्षा करेंगे। इको डेवलपमेंट कमिटी (EDC) बनेगी, जिसका फंड सारंडा व गांवों के विकास, बेरोजगारों के रोजगार में लगेगा।”
पर्यटन से ग्रामीणों को होगा सीधा लाभ
सरयू राय का कहना है कि सेंचुरी बनने से सारंडा में वन्यप्राणी लौटेंगे, जिससे पर्यटक आयेंगे और स्थानीय लोगों को होमस्टे, गाइड, हस्तशिल्प, वन उत्पाद जैसे क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। उन्होंने कहा, “जंगल बचाओ तो आने वाली पीढ़ियां भी जीवित रहेंगी।”

“सारंडा का लौह अयस्क चीन से भी बेहतर”
सरयू राय ने खुलासा किया कि सारंडा का लौह अयस्क विश्व स्तरीय गुणवत्ता का है। चीन का अयस्क तो यहाँ के निम्न गुणवत्ता वाले फाइंस से भी गया-बीता है। चीन भारत, अफ्रीका जैसे देशों से खनिज खरीदता है ताकि भविष्य में जब वैश्विक भंडार खत्म हो जाए तो वह अपने खनिज पर मोनोपोली कर सके।
“100 रुपये के अयस्क पर 10 रुपये राजस्व में बिक रहा है जंगल”
उन्होंने आरोप लगाया कि झारखंड सरकार महज 10 रुपये प्रति 100 रुपये की खनिज राजस्व के लिए जंगल लूटवा रही है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अब सारंडा की किस्मत तय होगी। उन्होंने आशंका जताई कि “राज्य सरकार खनन कंपनियों के दबाव में सुप्रीम कोर्ट में रोडा़ अटकवा सकती है।”
22 जून को राँची में ‘सारंडा का बदलता परिदृश्य’ पर सेमिनार
सरयू राय ने जानकारी दी कि 22 जून को राँची में शाम 3 से 6 बजे तक एक महत्वपूर्ण सेमिनार आयोजित किया जाएगा, जिसका विषय होगा “सारंडा का बदलता परिदृश्य”। इसमें वन और खनन विभाग के शीर्ष अधिकारियों को भी आमंत्रित किया गया है।
डा. राकेश कुमार सिंह का समर्थन : “सेंचुरी से ग्रामीणों को ही होगा लाभ”
सारंडा में वन्यप्राणियों पर वर्षों तक शोध कर चुके पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. राकेश कुमार सिंह ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित सेंचुरी में कोई भी गांव या खनन क्षेत्र शामिल नहीं किया गया है।
“सेंचुरी क्षेत्र सिर्फ रिजर्व फॉरेस्ट के हिस्से में प्रस्तावित है, ग्रामीणों की भूमि और अधिकारों से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।”
अवैध कटाई, शिकार पर पहले से ही कानून है
डॉ. सिंह ने कहा कि जंगल कटाई, शिकार आदि पहले से ही अवैध हैं। सेंचुरी बनने से इन पर नियंत्रण और सख्ती बढ़ेगी, जिससे पारिस्थितिक तंत्र मजबूत होगा। उन्होंने कहा कि,
“इको डेवलपमेंट कमिटी (EDC) के जरिये सभी काम होंगे, जिससे स्थानीय लोगों को ही नौकरी और नेतृत्व मिलेगा।”
“खनन कंपनियां गुमराह कर रही हैं ग्रामीणों को”
डॉ. सिंह ने चेताया कि कुछ खनन कंपनियां ग्रामीणों को बरगलाने और विरोध के लिए उकसा रही हैं। ग्रामीणों को चाहिए कि वे सोच-समझकर फैसला लें, क्योंकि सेंचुरी उनके भविष्य और आने वाली पीढ़ियों के लिए वरदान साबित होगी।
निष्कर्ष : जंगल बचेगा तो जीवन बचेगा
सारंडा आज दोराहे पर खड़ा है। एक ओर है अनियंत्रित खनन, जो जंगल को बर्बाद कर रहा है। दूसरी ओर है वन्यप्राणी सेंचुरी का रास्ता, जो रोजगार, पर्यटन और पर्यावरण के संतुलन की राह खोलता है। अब फैसला सरकार और जनता दोनों को मिलकर लेना है — क्या हम जंगल के सौ साल के जीवन को पांच साल के राजस्व में बदल देंगे?