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जगन्नाथपुर से विशेष रिपोर्ट

“पेड़ बचाओ रे, जंगल बचाओ रे…” जैसे जोशीले नारों की गूंज के बीच जगन्नाथपुर के साप्ताहिक बाजार में शुक्रवार को एक प्रभावशाली नुक्कड़ नाटक का मंचन किया गया। चाईबासा की जानी-मानी नाट्य एवं सामाजिक संस्था सृष्टि चाईबासा द्वारा प्रस्तुत इस नाटक “जंगल रहेगा तो हम रहेंगे” ने दर्शकों को न सिर्फ रोमांचित किया बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सोचने को भी मजबूर कर दिया। इस कार्यक्रम में चाईबासा वन प्रमंडल का विशेष सहयोग रहा।

नाटक के ज़रिए दिया गया पर्यावरणीय चेतना का संदेश

इस नाटक का लेखन और निर्देशन संस्था के प्रमुख प्रकाश कुमार गुप्ता ने किया था। उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर यह संदेश दिया कि जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि जीवनदायिनी व्यवस्था का आधार है। नाटक में बताया गया कि आदिवासी संस्कृति की जड़ें जंगल, नदियों और पर्वतों में हैं, लेकिन आधुनिकता और लालच की दौड़ में यह संबंध कमजोर होता जा रहा है।

जंगल में लगने वाली आग और पेड़ों की कटाई पर कड़ा प्रहार

नाटक की एक प्रमुख झलक में यह दिखाया गया कि किस तरह महुआ चुनने के लिए लगाई गई आग जंगलों को भारी नुकसान पहुँचा रही है। यह आग केवल सूखे पत्तों को ही नहीं जलाती, बल्कि हरी-भरी हरियाली, जीव-जंतु और जैव विविधता को भी निगल जाती है। नतीजतन हाथी, भालू जैसे जंगली जानवर भोजन और आश्रय की तलाश में गांवों की ओर रुख करते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ जाती हैं।

जंगलों का संरक्षण ही प्राकृतिक संतुलन का आधार

नाटक में यह भी स्पष्ट किया गया कि जंगल बचे रहेंगे तभी जीवन की गुणवत्ता बचेगी। इससे हमें न केवल जड़ी-बूटियाँ, फल-फूल और रोज़गार मिलेगा, बल्कि वर्षा चक्र भी सामान्य रहेगा और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं पर अंकुश लगेगा। ऑक्सीजन की आपूर्ति, जैव विविधता और पारिस्थितिकी संतुलन – ये सभी जंगलों पर निर्भर हैं।

“आग से खेलना, जंगल के जीवन से खेलना है”

एक खास दृश्य में कलाकारों ने यह दिखाया कि जंगल में छोटी-सी चिंगारी भी भयावह आग में बदल सकती है, जिससे सालों पुराना जंगल खत्म हो सकता है। ग्रामीणों से अपील की गई कि जंगल में माचिस, लाइटर या अन्य ज्वलनशील वस्तुएं साथ न ले जाएं। यह एक छोटी-सी सतर्कता बड़ी आपदा को टाल सकती है।

जीवंत अभिनय ने छू लिया दिल

इस नाटक में प्रकाश कुमार गुप्ता के साथ बसंत करवा, शिवलाल शर्मा, बसंती देवगम, आसना और बुधराम कोया जैसे कलाकारों ने अपनी शानदार प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीत लिया। उनके अभिनय ने न केवल विषय की गंभीरता को दर्शाया बल्कि संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का भाव भी जागृत किया।

दर्शकों ने की भरपूर सराहना, लिया संकल्प

कार्यक्रम के अंत में दर्शकों ने कलाकारों के प्रयास की सराहना की और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में व्यक्तिगत योगदान देने का संकल्प लिया। मौके पर उपस्थित वन विभाग के रेंजर जितेंद्र प्रसाद सिंह, वनकर्मी अमित कुमार महतो, उदित गागराई, जयश्री, रविंद्र, महेश्वर और लक्ष्मी समेत अन्य अधिकारियों ने आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सांस्कृतिक प्रस्तुति के बहाने सामाजिक संदेश

यह नुक्कड़ नाटक सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं था, बल्कि वर्तमान पर्यावरणीय संकट पर एक जरूरी हस्तक्षेप भी था। यह प्रस्तुति आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणादायक दस्तावेज़ बन सकती है – यह याद दिलाते हुए कि “जंगल रहेगा, तो हम रहेंगे” केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन है।

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