कला एवं संस्कृति भवन, चाईबासा में हुई बैठक, सरकार और टीएसी से फैसले की वापसी की मांग
चाईबासा, झारखंड। आदिवासी समाज की अस्मिता, संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को बचाने की लड़ाई अब और मुखर होती जा रही है। चाईबासा के हरिगुटु स्थित कला एवं संस्कृति भवन में आदिवासी “हो” समाज महिला महासभा की केंद्रीय अध्यक्ष श्रीमति अंजू सामड की अध्यक्षता में एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में झारखंड सरकार द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामसभा की सहमति से शराब दुकानों को खोलने के फैसले के खिलाफ जोरदार विरोध दर्ज कराया गया।
टीएसी के निर्णय पर कड़ी आपत्ति, सरकार की मंशा पर उठाए सवाल
महिला महासभा की सदस्यों ने ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (TAC) के उस प्रस्ताव को आदिवासी विरोधी करार दिया, जिसके तहत आदिवासी बहुल इलाकों में शराब की दुकानों को खोलने की योजना बनाई जा रही है। सदस्यों ने कहा कि यह निर्णय आदिवासी समाज को बर्बादी की ओर धकेलने वाला है। उनका आरोप है कि सरकार आदिवासी समाज में नशे को बढ़ावा देकर उन्हें विदेशी शराब का आदी बनाना चाहती है, ताकि उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर किया जा सके।
हड़िया और महुआ जैसे पारंपरिक पेय का हो रहा है अपमान
बैठक में वक्ताओं ने खुलकर कहा कि आदिवासी समाज की परंपरा में हड़िया और महुआ जैसे पेय पदार्थों का विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है। लेकिन अब इन पारंपरिक पेयों का खुलेआम बाजारीकरण कर दिया गया है, जिससे इनका स्वरूप और सम्मान दोनों नष्ट हो रहे हैं। उन्होंने प्रशासन और समाज की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाया कि खुलेआम हड़िया भट्ठियां चल रही हैं, जिससे युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आ रही है।
नशाखोरी से सामाजिक पतन, अपराध और अंधविश्वास को मिल रही है हवा
महिला महासभा की सदस्यों ने चिंता जताई कि नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण बलात्कार, चोरी-डकैती, मारपीट, जमीनी विवाद जैसी घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। साथ ही अंधविश्वास और डायन प्रथा जैसे कुप्रथाओं को भी नशे के माध्यम से बढ़ावा मिल रहा है, जिससे कई निर्दोष लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। यह स्थिति न सिर्फ सामाजिक ताने-बाने को तोड़ रही है, बल्कि आर्थिक रूप से भी आदिवासी समाज को बर्बाद कर रही है।
शराब दुकानों की योजना के पीछे सरकार की मंशा पर उठे सवाल
बैठक में वक्ताओं ने दो टूक कहा कि राज्य सरकार की मंशा स्पष्ट है—आदिवासियों को शराब में डुबोकर उन्हें सामाजिक और राजनीतिक रूप से कमजोर करना। महिला महासभा की सदस्यों ने कहा कि सरकार एक ओर आदिवासी अधिकारों की बात करती है, तो दूसरी ओर उन्हीं क्षेत्रों में शराब की दुकानें खोलने की योजना बनाकर उन्हीं अधिकारों को कुचल रही है।
सरकार और टीएसी से फैसले को वापस लेने की मांग
“हो” समाज की महिला नेताओं ने राज्य सरकार और ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल से इस जनविरोधी फैसले को अविलंब वापस लेने की मांग की है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगर यह निर्णय वापस नहीं लिया गया, तो महिला महासभा पूरे राज्य में जनांदोलन छेड़ेगी। उनका कहना है कि आदिवासी समाज को शराबमुक्त क्षेत्र घोषित किया जाए और नशा मुक्त, शिक्षित और आदर्श समाज की दिशा में कदम उठाया जाए।
बैठक में शामिल रहीं महिला महासभा की प्रमुख पदाधिकारीगण
इस मौके पर महिला महासभा की उपाध्यक्ष नागेश्वरी जारिका, सचिव विमला हेम्ब्रम, कोषाध्यक्ष इंदु हेम्ब्रम, शिक्षा सचिव विनीता पुरती, सह-कोषाध्यक्ष रोशन रानी पाड़ेया, उप-शिक्षा सचिव विरंग पुरती तथा सदस्य प्रमिला बिरुवा, लक्ष्मी हेम्ब्रम, यशमती सिंकू, सुशीला सिंकू समेत कई महिलाएं उपस्थित रहीं। सभी ने एकजुट होकर यह संकल्प लिया कि वे किसी भी कीमत पर आदिवासी क्षेत्रों को शराब के अड्डे नहीं बनने देंगी।
नशा मुक्त समाज की ओर बढ़ते कदम
महिला महासभा ने यह भी ऐलान किया कि आने वाले दिनों में गांव-गांव जाकर शराब के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। साथ ही हड़िया और महुआ के पारंपरिक स्वरूप को सम्मान दिलाने के लिए भी सांस्कृतिक आयोजनों की श्रृंखला शुरू की जाएगी।
निष्कर्ष
आदिवासी “हो” समाज महिला महासभा की यह बैठक एक सामाजिक चेतना का प्रतीक बन गई है। जहां एक ओर राज्य सरकार अपने आर्थिक लाभ के लिए शराब नीति को आगे बढ़ा रही है, वहीं दूसरी ओर आदिवासी महिलाएं अपने समाज और संस्कृति को बचाने के लिए आगे आ रही हैं। यह संघर्ष सिर्फ शराब के खिलाफ नहीं, बल्कि एक आदर्श और आत्मनिर्भर समाज के निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम है।