दुर्घटना में मारे गए नाबालिग मजदूर के परिवार को इंसाफ दिलाने, विस्थापितों के पुनर्वास और स्थानीय बेरोजगारों को हक दिलाने सड़कों पर उतरा सारंडा, जनसैलाब के दबाव में झुका गुआ प्रबंधन
रिपोर्ट: शैलेश सिंह / संदीप गुप्ता
सेल की गुआ खदान में एक बार फिर जनाक्रोश फूटा। 1 जुलाई को पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के नेतृत्व में सैकड़ों विस्थापित ग्रामीण, शिक्षित-अशिक्षित बेरोजगार, सप्लाई मजदूर, विभिन्न यूनियनों के कार्यकर्ता और ग्रामीण जनता ने गुआ जनरल ऑफिस का घेराव कर दिया। मांगे थीं साफ – मुआवजा दो, नौकरी दो, विस्थापितों को बसाओ, धोखा नहीं सहेंगे!
आंदोलन की चिंगारी: नाबालिग मजदूर की मौत और प्रबंधन की बेरुखी
इस आंदोलन की नींव तब पड़ी जब पिछले माह खदान में एक निर्माणाधीन भवन के ढहने से नाबालिग ठेका मजदूर कानुराम चाम्पिया की मौत हो गई। प्रबंधन ने सार्वजनिक मंच पर 30 लाख का मुआवजा और नौकरी देने का वादा तो किया, लेकिन वास्तविकता में केवल 7.5 लाख की पहली किश्त दी गई, और बाकी बातें हवा में टाल दी गईं।
मधु कोड़ा ने इसे “गुआ प्रबंधन का शर्मनाक धोखा” बताया था। अब आंदोलन की घड़ी आ चुकी थी।
हजारों लोगों का जनसैलाब, पुलिस और CISF की भारी तैनाती
1 जुलाई की सुबह गुआ खदान के मजदूर, विस्थापित, छात्र, बेरोजगार और ग्रामीण हाथों में तख्तियां लेकर घोषणाओं और नारों के साथ पैदल मार्च करते हुए जनरल ऑफिस पहुंचे। मौके पर CISF और जिला पुलिस की भारी तैनाती रही, लेकिन जनता के उत्साह और आक्रोश के आगे प्रशासन शांत रहा।
घेराव के बीच मधु कोड़ा और प्रबंधन के बीच वार्ता, आंदोलन स्थगित
घेराव के बीच सेल गुआ प्रबंधन की ओर से प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए बुलाया गया, जिसमें गुआ के सीजीएम कमल भास्कर और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के बीच कई घंटे लंबी बातचीत हुई। आखिरकार प्रबंधन झुका और इन बिंदुओं पर सहमति बनी:
- 30 लाख रुपये का मुआवजा हर हाल में दिया जाएगा – पहली किश्त 7.5 लाख जारी, बाकी दो महीने में भुगतान।
- मृतक के आश्रित को अगस्त में सप्लाई मजदूर के रूप में रोजगार मिलेगा।
- गुआ खदान में आगामी बहाली में स्थानीय बेरोजगारों को प्राथमिकता।
- हर ठेका और एमडीओ परियोजना में 100% स्थानीय नियुक्ति की प्रतिबद्धता।
- गुआ रेलवे साइडिंग से विस्थापित हो रहे चार बस्तियों का दोबारा सर्वे और पुनर्वास योजना।
- खदान दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन।
- पेयजल और बुनियादी विकास कार्यों को CSR के तहत तेज़ किया जाएगा।
मधु कोड़ा का हमला: “अब शोषण नहीं, आर-पार की लड़ाई होगी”
वार्ता के बाद पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने साफ कहा –
“सेल गुआ प्रबंधन का रवैया उपेक्षित और धोखेबाज रहा है। अब गुआ की जनता और मजदूर एकजुट हैं, अगली बार समझौते का उल्लंघन हुआ तो आर-पार की लड़ाई होगी।”
उन्होंने कहा, “गुआ के लोग कीड़े-मकोड़े नहीं, इंसान हैं। अगर कंपनी सोचे कि जनता एक दिन जागेगी और फिर भूल जाएगी, तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी।”
आंदोलन में कौन-कौन रहा अगुआ?
इस ऐतिहासिक आंदोलन में विभिन्न यूनियनों और संगठनों ने एकजुटता दिखाई:
- हेमराज सोनार – महामंत्री, झारखंड मजदूर यूनियन
- गोविंद पाठक – अध्यक्ष, सारंडा मजदूर यूनियन
- कुल बहादुर, मुकेश लाल, समीर पाठक – भारतीय मजदूर संघ
- रमेश गोप – सीटू
- राजेश कोड़ा – अध्यक्ष, सप्लाई मजदूर संघ
- लालबाबु गोस्वामी – क्रांतिकारी इस्पात मजदूर संघ
- विश्वजीत तांती – बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन
- देवकी कुमारी – जिला परिषद सदस्य
- चांदमनी लागुरी, पदमीनी लागुरी – पंचायत मुखिया
- कैलाश दास, गुवा दुकानदार संघ, ग्राम मानकी-मुंडा, युवा बेरोजगार संघ, आसपास के सैकड़ों ग्रामीण
प्रबंधन की ओर से सीजीएम कमल भास्कर, महाप्रबंधक अर्णब डे, महाप्रबंधक अमित तिर्की उपस्थित रहे।
निष्कर्ष: एकता की ताकत से झुका प्रबंधन
गुआ की धरती एक बार फिर गवाह बनी उस जनप्रतिरोध की, जो अन्याय, शोषण और उपेक्षा के खिलाफ सच्चे नेतृत्व और जनएकता से फूटा। मधु कोड़ा की अगुवाई में हुए इस आंदोलन ने न सिर्फ प्रबंधन को झुकाया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि –
अब विस्थापन, बेरोजगारी और मुआवजे के नाम पर छल नहीं चलेगा।