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कोल्हान-बड़बील की ‘जनशताब्दी’ पर मालगाड़ी का शिकंजा!

लाखों यात्रियों की एकमात्र एक्सप्रेस ट्रेन को रेलवे बना रहा ‘साजिश का शिकार’, लौह अयस्क से अरबों की कमाई, फिर भी जनता बेहाल

रिपोर्ट: शैलेश सिंह
झारखंड और ओडिशा की सीमांत जनता के धैर्य का अब अंत हो चुका है। हावड़ा-बड़बील जनशताब्दी एक्सप्रेस, जो कभी कोल्हान प्रमंडल और क्योंझर जिले की जीवनरेखा मानी जाती थी, आज रेलवे की ‘राजस्व लोलुपता’ की बलि चढ़ रही है। रेलवे अब खुलकर दिखा रहा है कि उसे जनता नहीं, केवल मालगाड़ी चाहिए, मुनाफा चाहिए, चाहे जनता सड़क पर उतर आए।

मेघाहातुबुरु निवासी सेलकर्मी बलेन्द्र शाह ने हावड़ा रेल मंडल के वरिष्ठ अधिकारियों को एक कड़ा शिकायत पत्र सौंपते हुए आरोप लगाया है कि रेलवे जानबूझकर हावड़ा-बड़बील जनशताब्दी ट्रेन को बदनाम और समाप्त करने की साजिश में जुटा है।

बलेन्द्र शाह द्वारा हाबडा़ में दर्ज कराया गया शिकायत

पांच साल से चल रही है ‘सिस्टमेटिक साजिश’

बलेन्द्र शाह ने आरोप लगाया है कि विगत पांच वर्षों से रेलवे एक सोची-समझी रणनीति के तहत इस ट्रेन को अस्थिर और अविश्वसनीय बना रहा है। या तो ट्रेन को घंटों लेट चलाया जाता है या बिना पूर्व सूचना रद्द कर दिया जाता है। यात्रियों को ना कोई जानकारी मिलती है, ना कोई समाधान। इस तरह आम जनता को धीरे-धीरे इस ट्रेन से विमुख किया जा रहा है ताकि इसे बंद करने का रास्ता आसान हो।


एकमात्र एक्सप्रेस ट्रेन भी बदहाली का शिकार

कोल्हान और क्योंझर जैसे आदिवासी बहुल, औद्योगिक और खनिज क्षेत्र के लिए जनशताब्दी एक्सप्रेस ही एकमात्र तेज़ गति वाली यात्री ट्रेन है। लेकिन इसका हाल बेहाल है।

  • कोई समय सारणी तय नहीं।
  • बार-बार रद्द।
  • प्लेटफॉर्म पर अनिश्चितता का आलम।
  • कोई वैकल्पिक ट्रेन उपलब्ध नहीं।

जहां बिहार, बंगाल और ओडिशा के अन्य इलाकों में एक-एक रूट पर दर्जनों एक्सप्रेस ट्रेनें हैं, वहीं बड़बील-हावड़ा रूट पर यही एक ट्रेन भी लगातार यात्री विरोधी रवैये का शिकार है।


रेलवे को अरबों का मुनाफा, लेकिन यात्रियों को धोखा

यह वही इलाका है जिसे देश का लौह अयस्क हृदय कहा जाता है। नोवामुंडी, गुवा, मेघाहातुबुरु, किरीबुरु, बड़बील, क्योंझर — इन क्षेत्रों से हर रोज हजारों टन लौह अयस्क मालगाड़ियों से देशभर के स्टील प्लांटों में भेजा जाता है।

रेलवे को प्रत्येक वर्ष यहां से लौह अयस्क ढुलाई से ₹5,000 करोड़ से अधिक का राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन यात्री सुविधा के नाम पर शून्य निवेश है। न स्टेशन ठीक, न समय सारणी, न टॉयलेट, न प्रतीक्षालय। यही जनशताब्दी ट्रेन जब मन हो रुक जाए, जब मन हो चल पड़े।


‘मालगाड़ी पहले, जनता बाद में’ — यही है रेलवे की नीति!

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि,

मालगाड़ियों को न रोकने की उच्चस्तरीय मौखिक हिदायत है। यही कारण है कि जनशताब्दी को रास्ते में घंटों खड़ा रखा जाता है ताकि अयस्क लदी मालगाड़ियां निकल सकें। जनशताब्दी के साथ सौतेला व्यवहार जानबूझकर हो रहा है।

इससे यह साफ होता है कि रेलवे के लिए आम जनता की सुविधा दो कौड़ी की भी अहमियत नहीं रखती। उसे चाहिए केवल ‘लोडेड रैक’ और ‘भारी भरकम मालभाड़ा’।


जनप्रतिनिधियों की चुप्पी से जनता में गुस्सा

स्थानीय जनता अब अपने सांसदों, विधायकों और जनप्रतिनिधियों से भी नाराज़ है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि जनता की इस दुर्दशा पर उनके जनप्रतिनिधि क्यों मौन हैं?

“अगर बिहार, बंगाल या दिल्ली में कोई ट्रेन दिन भर खड़ी रहे, तो क्या जनता और नेता शांत रहते? फिर कोल्हान क्यों चुप रहे?”


अब जनता कह रही – ट्रैक पर उतरने का समय आ गया है!

यात्रियों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि अब रेलवे ट्रैक पर बैठने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

“हम तब तक नहीं हटेंगे जब तक रेलवे यह लिखित में न दे कि जनशताब्दी ट्रेन अब हर दिन समय पर चलेगी, बिना रद्द हुए।”


जनता की आवाज – ‘पहले जनशताब्दी, फिर मालगाड़ी!’

  • बुजुर्गों, मरीजों को इलाज के लिए कोलकाता नहीं पहुंचने दिया जा रहा।
  • छात्रों के पेपर छूट रहे हैं।
  • मजदूर और व्यापारी आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं।
  • रोजगार की तलाश में जाने वाले युवाओं के अवसर छिन रहे हैं।

और उधर, रेलवे है कि मालगाड़ी की धड़कन पर जनता की आवाज को कुचल रहा है।


निष्कर्ष: अब और नहीं!

रेलवे को यह स्पष्ट समझना होगा कि यदि अरबों का मुनाफा इस क्षेत्र से है, तो यात्रियों को सुविधाएं देना उसकी जिम्मेदारी है, एहसान नहीं।

यदि रेलवे ने जल्द ही जनशताब्दी एक्सप्रेस को नियमित नहीं किया, तो यह आक्रोश जनांदोलन में बदल जाएगा, और रेलवे लाइनें केवल मालगाड़ी के लिए नहीं, जनता की लड़ाई के लिए भी जानी जाएंगी।

अब जनता जाग गई है – और एक सुर में कह रही है – “पहले जनशताब्दी, फिर मालगाड़ी!”

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