मानव तस्करी के गंभीर मामले में प्रशासन की त्वरित कार्रवाई, मिथुन लोहार पर कानूनी शिकंजा कसने की तैयारी
रिपोर्ट: शैलेश सिंह / संदीप गुप्ता
जगन्नाथपुर थाना क्षेत्र के मोंगरा गांव से शुरू हुई एक दर्दनाक कहानी आखिरकार राहत की खबर लेकर आई है। अहमदाबाद की बेसन फैक्ट्री में बंधक बनाए गए सभी 9 ग्रामीण मजदूरों को प्रशासनिक कार्रवाई के बाद मुक्त करा लिया गया है। इस पूरे मामले को प्रमुखता से उठाने वाले ‘सिंहभूम हलचल’ की रिपोर्ट के बाद प्रशासन हरकत में आया और पीड़ितों की रिहाई सुनिश्चित हुई।
जागी व्यवस्था, बची जिंदगी
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता, पीएलवी दिल बहादुर थापा की सूचना और पीड़ित परिवारों की गुहार पर सक्रिय हुए जिला प्रशासन ने गुजरात पुलिस के समन्वय से अहमदाबाद की उस फैक्ट्री पर छापा मारा, जहां झारखंड के ये मजदूर पांच महीनों से बंधक बनाए गए थे। बंधुआ मजदूरी, पहचान दस्तावेजों की जब्ती और मानसिक उत्पीड़न जैसी गंभीर स्थितियों में फंसे इन सभी मजदूरों को रिहा कर उनके मूल गांव वापस भेजा गया।
परिवारों में खुशी की लहर, लेकिन सवाल भी
रिहाई की खबर मिलते ही मोंगरा और प्लॉटसाई गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। मजदूरों के परिजनों की आंखों में आंसू थे, पर इस बार राहत के। रीना गोप की बेटी ने कहा, “हमें लगने लगा था कि मां-पापा कभी नहीं लौटेंगे, लेकिन भगवान और आप लोगों की वजह से वे सुरक्षित वापस आ पाए।”
हालांकि, परिजनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अब इस पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश कर दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग तेज कर दी है।
प्रशासन ने जताई प्रतिबद्धता, शुरू होगी निगरानी प्रणाली
जिला प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में मानव तस्करी से जुड़े गिरोहों की निगरानी के लिए विशेष जांच टीम गठित करने का फैसला लिया है। बीडीओ स्तर पर पंचायतों को निर्देश दिया गया है कि वे रोजगार देने के नाम पर बाहर ले जाने वालों की पृष्ठभूमि की जांच कराएं।
बचाए गए मजदूरों की आपबीती: “हमारे पास कोई रास्ता नहीं था”
रिहा हुए मजदूरों ने लौटने के बाद जो कहानी सुनाई वह रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। मजदूरों ने बताया, “हमें एक कमरे में बंद कर दिया गया था। खाना भी तय समय पर नहीं मिलता था और मजदूरी तो कभी मिली ही नहीं। हमने कई बार निकलने की कोशिश की लेकिन पहचान पत्र नहीं होने के कारण डरते थे।”
उन्होंने बताया, “हमसे सुबह से रात तक बेसन की बोरियां भरवायी जाती थीं, बिना आराम, बिना दवा। औरतें भी सुरक्षित नहीं थीं।”
स्थानीय प्रतिनिधियों और समाजसेवियों ने जताई नाराजगी
गांव के मुखिया प्रतिनिधि और स्थानीय समाजसेवियों ने इस घटना को ‘सिस्टम की नाकामी’ बताया। उन्होंने कहा कि जब तक रोजगार के बेहतर अवसर गांवों में नहीं मिलते, ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। इसके लिए सरकार को स्थायी समाधान की दिशा में ठोस नीति बनानी होगी।
न्यायिक प्रक्रिया और पुनर्वास की पहल आवश्यक
विधिक सेवा प्राधिकरण के एक प्रतिनिधि ने कहा कि पीड़ितों को न सिर्फ कानूनी सुरक्षा बल्कि आर्थिक सहायता और पुनर्वास की भी जरूरत है। “ये सिर्फ केस फाइल करने का मामला नहीं है, बल्कि टूटे हुए भरोसे को फिर से जोड़ने का प्रयास होना चाहिए।”
निष्कर्ष: एक खबर, एक बदलाव
यह घटना इस बात का प्रमाण है कि जनसंचार माध्यम की सजगता और जनता की आवाज अगर सही मंच पर पहुंचे, तो सिस्टम भी जवाबदेह बनता है। ‘सिंहभूम हलचल’ की रिपोर्टिंग ने सिर्फ नौ लोगों की जिंदगी बचाई, बल्कि सैकड़ों ग्रामीणों को एक चेतावनी भी दी है — जागरूक बनें, सवाल करें, और रोजगार के नाम पर फंसने से बचें।