फाइलेरिया – एक खतरनाक बीमारी
रिपोर्ट – शैलेश सिंह
फाइलेरिया, जिसे आम भाषा में हाथी पाँव कहा जाता है, मच्छर के काटने से फैलने वाली बीमारी है। यह विकलांगता और कुरूपता पैदा करने वाली दूसरी सबसे बड़ी बीमारी है, जो केवल पैरों तक सीमित नहीं रहती बल्कि हाथ, स्तन और हाइड्रोसील को भी प्रभावित कर सकती है।
संक्रमण और लक्षण
- संक्रमण अधिकतर बचपन में होता है।
- लक्षण सामने आने में 5 से 15 साल लग जाते हैं।
- हाइड्रोसील का इलाज संभव है, लेकिन अन्य अंगों की सूजन अक्सर लाइलाज होती है।
मानवता की जरूरत, तिरस्कार नहीं
पीड़ितों को समाज से सहायता और करुणा की जरूरत है। उन्हें तिरस्कृत करना गलत है। झारखंड के करीब 4 करोड़ लोग इस बीमारी के खतरे में हैं।
बचाव है आसान
- साल में एक बार फाइलेरियारोधी दवा का सेवन।
- स्वस्थ दिखने वाला व्यक्ति भी दवा जरूर ले।
- अपवाद: 2 साल से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती महिलाएं और गंभीर रूप से बीमार लोग।
दवा सेवन के नियम
- स्वास्थ्य कार्यकर्ता के सामने ही दवा खाएं।
- एक बार में सभी दवाएं लें।
- खाली पेट दवा न खाएं।
- हल्के प्रतिकूल प्रभाव जैसे सिरदर्द, चक्कर, उल्टी, बुखार या दस्त हो सकते हैं—यह इस बात का संकेत है कि शरीर के अंदर के कीड़े मर रहे हैं।
अभियान का शुभारंभ
भारत सरकार के निर्देशानुसार जिला स्वास्थ्य विभाग ने पूरे जिले में फाइलेरिया की दवा खिलाने का अभियान शुरू किया।
स्थानीय नेताओं की भागीदारी
- पार्वती कीड़ों (मुखिया, किरीबुरू पश्चिमी पंचायत) ने अभियान का उद्घाटन किया और दवा खाकर लोगों को प्रेरित किया।
- मुन्नी देवगम (मुखिया, छोटानागरा) ने अपने पंचायत में अभियान की शुरुआत की।
- इस मौके पर सुमन मुंडू (उप मुखिया, किरीबुरू), जोया खान, नेहा हेंब्रम (एएनएम), और कानू राम देवगम (मुंडा, जाजोगुटू) भी मौजूद रहे।
लक्ष्य – फाइलेरिया मुक्त झारखंड
स्वास्थ्य विभाग को उम्मीद है कि लोगों की जागरूकता और सक्रिय भागीदारी से आने वाले वर्षों में झारखंड को फाइलेरिया मुक्त बनाया जा सकेगा।