बेंगलुरु में आयोजित 116वें अंतरराष्ट्रीय नृत्य महोत्सव 2025 में ओडिशी नृत्य से दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध
विशेष प्रतिनिधि, सरायकेला
बेंगलुरु में आयोजित 116वें अंतरराष्ट्रीय नृत्य महोत्सव 2025 में ओडिशी नृत्यांगना डॉ. (श्रीमती) उषा कुमारी को प्रतिष्ठित पद्मिनी नृत्य रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह महोत्सव भारतीय सांस्कृतिक विरासत और नृत्य परंपराओं के संरक्षण का अद्वितीय मंच रहा, जिसमें देशभर के कोने-कोने से आए नामचीन कलाकारों ने भाग लिया।
ओडिशी नृत्य से मोहा मन
डॉ. उषा कुमारी ने महोत्सव के मंच पर ओडिशी नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसमें उनकी भाव-भंगिमा, ताल-मुद्रा और शास्त्रीय सौंदर्य ने दर्शकों को पूर्णतः अभिभूत कर दिया। सभागार में उपस्थित नृत्य प्रेमियों और कला समीक्षकों ने उनके प्रदर्शन को ‘उत्कृष्टतम’ और ‘भावपूर्ण’ करार दिया।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार सफलता
इससे पूर्व भी डॉ. उषा कुमारी को कोलकाता में आयोजित अंतरराष्ट्रीय नृत्य महोत्सव 2024 में अंतरराष्ट्रीय गिरीधारी सम्मान 2024 से नवाजा जा चुका है। उनका यह सतत उपलब्धियों का क्रम भारतीय शास्त्रीय नृत्य को वैश्विक मंच पर नई पहचान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
गुरु आमिश दास ने दी शुभकामनाएं
डॉ. उषा की इस उपलब्धि पर उनके गुरु, सुप्रसिद्ध ओडिशी नृत्याचार्य आमिश दास ने उन्हें हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि यह सम्मान न केवल उषा जी की साधना का परिणाम है, बल्कि भारतीय संस्कृति की सशक्त अभिव्यक्ति भी है।
सामाजिक जीवन में भी सक्रिय
उल्लेखनीय है कि डॉ. उषा कुमारी, क्षेत्रीय उपनिदेशक जियाडा आदित्यपुर में पदस्थापित श्री दिनेश रंजन की पत्नी हैं। वे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शिक्षण गतिविधियों में भी सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं। उनका यह सम्मान पूरे क्षेत्र के लिए गौरव का विषय बना हुआ है।
स्थानीय और सांस्कृतिक जगत में खुशी की लहर
इस सम्मान की खबर जैसे ही फैली, स्थानीय सांस्कृतिक संस्थाओं, नृत्य प्रशिक्षण केंद्रों और कला प्रेमियों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। कई संगठनों ने इसे क्षेत्र की बेटियों की बढ़ती पहचान और सांस्कृतिक समर्पण का प्रतीक बताया है।
भविष्य की दिशा में एक प्रेरणा
डॉ. उषा कुमारी की यह उपलब्धि न केवल नृत्य क्षेत्र के नवोदित कलाकारों के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह भारतीय नारी के प्रतिभा और परिश्रम की सुंदर मिसाल भी प्रस्तुत करती है। उनकी यह यात्रा यह दर्शाती है कि समर्पण और साधना से कला को न केवल सम्मान मिलता है, बल्कि समाज को भी एक नया आयाम प्राप्त होता है।