पुरी की तर्ज पर सरायकेला-खरसावां में रथ भंगिनी अनुष्ठान संपन्न, हेरा पंचमी पर उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
रिपोर्ट : सरायकेला/खरसावां संवाददाता ।
रथयात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी के अवसर पर सरायकेला-खरसावां जिले के गुंडिचा मंदिरों में ओड़िशा के पुरी की परंपरा के अनुसार ‘रथ भंगिनी’ अनुष्ठान श्रद्धा और भक्ति के साथ संपन्न हुआ। मंगलवार की देर शाम माँ लक्ष्मी की पालकी शोभायात्रा के साथ गुंडिचा मंदिर पहुँची, जहाँ नाराज लक्ष्मी ने प्रभु जगन्नाथ के रथ ‘नंदिघोष’ को आंशिक रूप से तोड़ दिया।

यह धार्मिक परंपरा पुरी की तर्ज पर हर वर्ष निभायी जाती है, जिसमें यह दर्शाया जाता है कि कैसे पांच दिन बीत जाने के बाद भी प्रभु जगन्नाथ अपने श्रीमंदिर नहीं लौटते, जिससे क्रोधित होकर देवी लक्ष्मी स्वयं गुंडिचा मंदिर पहुँचती हैं और पति की उपेक्षा से आहत होकर उनके रथ का एक हिस्सा तोड़ देती हैं।
भक्तों ने देखा मां लक्ष्मी का रौद्र रूप
गुंडिचा मंदिर परिसर में मंगलवार रात भक्तों का भारी जमावड़ा लगा रहा। भजन-कीर्तन करते हुए श्रद्धालुओं ने माता लक्ष्मी की शोभायात्रा में भाग लिया। पालकी में सवार माता की मूर्ति को जब प्रभु जगन्नाथ के रथ नंदिघोष के पास लाया गया, तब पुजारियों ने पारंपरिक रीति से रथ का एक हिस्सा आंशिक रूप से तोड़ा, जिसे ‘रथ भंगिनी’ की रस्म कहा जाता है।

धार्मिक कथा के अनुसार क्या है मान्यता?
मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं और पांच दिन बाद भी वापसी नहीं करते। यह देखकर उनकी पत्नी, देवी लक्ष्मी, अत्यंत क्रोधित हो जाती हैं और उन्हें मनाने स्वयं गुंडिचा मंदिर पहुँचती हैं। वहाँ पहुँचकर रथ ‘नंदिघोष’ की एक लकड़ी निकालकर उसका पहिया आंशिक रूप से तोड़ देती हैं, जिससे उनके क्रोध और विरह की अभिव्यक्ति होती है।

पति-पत्नी संवाद का प्रतीकात्मक मंचन
पारंपरिक पुजारियों के अनुसार, यह अनुष्ठान प्रतीकात्मक तौर पर भगवान जगन्नाथ और देवी लक्ष्मी के बीच संवाद को दर्शाता है। पुजारियों के माध्यम से संवाद का मंचन होता है, जिसमें लक्ष्मी अपने पति के व्यवहार से व्यथित होकर शिकायतें करती हैं और अंततः रथ तोड़ने के बाद अपने मंदिर लौट जाती हैं। यह घटना धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

अनुष्ठान के बाद शुरू होती है वापसी यात्रा की तैयारी
रथ भंगिनी की रस्म पूरी होते ही भगवान जगन्नाथ की वापसी यात्रा की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। इसे ‘दक्षिणामुख’ की परंपरा कहा जाता है, जब रथ मंदिर की ओर लौटने के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुड़ते हैं। यही से ‘बहुदा यात्रा’ की शुरुआत मानी जाती है, जो प्रभु के वापसी मार्ग का संकेत देती है।
हरिभंजा और खरसावां में भी निभाई गई परंपरा
सिर्फ़ सरायकेला ही नहीं, बल्कि खरसावां और हरिभंजा के गुंडिचा मंदिरों में भी रथ भंगिनी अनुष्ठान पूरे श्रद्धा भाव से मनाया गया। विभिन्न स्थानों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई, जिन्होंने इस पारंपरिक अनुष्ठान में भाग लेकर रथ यात्रा के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को आत्मसात किया।
आस्था और परंपरा का अनोखा संगम
यह परंपरा दर्शाती है कि रथ यात्रा सिर्फ भगवान जगन्नाथ के विहार का पर्व नहीं, बल्कि दांपत्य जीवन के भावनात्मक पक्ष और सामाजिक मूल्यों की भी अभिव्यक्ति है। माँ लक्ष्मी का रथ तोड़ना केवल क्रोध नहीं, अपितु प्रतीकात्मक रूप से एक संवाद का माध्यम है जो श्रद्धालुओं को अपने रिश्तों में संतुलन और समझ की प्रेरणा देता है।
भावनाओं का उत्सव बना रथ भंगिनी
रथ यात्रा के इस पड़ाव ‘हेरा पंचमी’ पर आयोजित रथ भंगिनी अनुष्ठान केवल धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि स्थानीय संस्कृति, लोक परंपरा और सामाजिक चेतना का भी जीवंत प्रमाण बन चुका है। हर साल की तरह इस बार भी श्रद्धालु इस परंपरा को साक्षात देखने के लिए उमड़ पड़े और प्रभु से जुड़ने का अवसर पाया।
संक्षेप में:
- हेरा पंचमी के अवसर पर माँ लक्ष्मी ने गुस्से में प्रभु जगन्नाथ का रथ नंदिघोष तोड़ा।
- सरायकेला, खरसावां और हरिभंजा में पारंपरिक रथ भंगिनी अनुष्ठान श्रद्धा के साथ सम्पन्न।
- भक्तों की भारी भीड़, भजन-कीर्तन व जयघोष से गूंजा गुंडिचा मंदिर परिसर।
- धार्मिक मान्यता: पांच दिन बाद भी न लौटने पर पत्नी लक्ष्मी का पति जगन्नाथ से नाराज होकर रथ तोड़ना।
- अनुष्ठान के बाद शुरू होती है भगवान जगन्नाथ की वापसी यात्रा की तैयारी।