कासेया पेचा, जोजोगुटु, राजाबेड़ा, बाईहातु, तेंतलीघाट सहित माइंस से सटे गांवों के लोग वर्षों से उपेक्षित, CSR दायित्व पूरा नहीं कर रही कंपनी
रिपोर्ट : शैलेश सिंह ।
सेल (SAIL) के अधीन गुवा लौह अयस्क खदान (BSL Mines) से सटे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने एक बार फिर मुआवजा और रोजगार की मांग को लेकर जिला उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में प्रभावित गांवों — कसेया पेचा, जोजोगुटु, राजाबेड़ा, बाईहातु और तेंतलीघाट — के ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि खदान के संचालन से उनके खेत, चरागाह और जलस्रोत पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं, लेकिन इसके बदले न तो उन्हें मुआवजा मिला और न ही रोजगार के अवसर।
ग्रामीणों ने उपायुक्त को सौंपे ज्ञापन में कहा है कि ये सभी गांव खदान क्षेत्र से बिल्कुल सटे हुए हैं और खनन कार्य शुरू होने से पूर्व से ही वहाँ के रैयत किसान निवास करते आ रहे हैं। जमीन के बदले व CSR (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) नीति के तहत कंपनी की जिम्मेदारी थी कि वह स्थानीय ग्रामीणों को मुआवजा और रोजगार उपलब्ध कराए, परंतु आज तक ऐसा नहीं हुआ।
लाल मिट्टी से बर्बाद हुई खेती और जलस्रोत
ज्ञापन में बताया गया है कि खदान से निकलने वाले लाल मिट्टी और अयस्क अपशिष्ट के कारण गांवों की खेती योग्य जमीन, चरागाह और जलस्रोत नष्ट हो चुके हैं। इससे ग्रामीणों की आजीविका पर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। कई बार SAIL प्रबंधन को इस बाबत लिखित शिकायत दी गई, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई।
पूर्व मुख्यमंत्री के नेतृत्व में हुई थी बैठक, नहीं हुआ पालन
ग्रामवासियों ने बताया कि दिनांक 11 फरवरी 2024 को पूर्व मुख्यमंत्री श्री मधु कोड़ा के नेतृत्व में गुवा लौह अयस्क माइंस के प्रबंधक, संयुक्त यूनियनों, जनप्रतिनिधियों और स्थानीय मानकी-मुंडाओं के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक मेघाहातुबुरु गेस्ट हाउस में आयोजित की गई थी। इस बैठक में कंपनी प्रबंधन ने 600 प्रभावित ग्रामीणों को रोजगार देने का वादा किया था। लेकिन यूनियन ने केवल अपने छह लोगों को नियुक्त कर लिया और माइंस के बगल वाले गांवों से एक भी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिला।
तीन बार दिया गया आश्वासन, पर एक भी नियुक्ति नहीं
ग्रामीणों का आरोप है कि पहले 18 ग्रामीणों को रोजगार देने का आश्वासन दिया गया, फिर 24 लोगों को, लेकिन आज तक एक भी व्यक्ति को ठेका मजदूर के रूप में भी नियुक्त नहीं किया गया। इससे स्थानीय लोगों में भारी नाराजगी है। उन्हें लगता है कि कंपनी द्वारा केवल आश्वासन देकर गुमराह किया जा रहा है, जबकि माइंस से हो रहे नुकसान का सबसे अधिक खामियाजा वही लोग भुगत रहे हैं।
CSR के नाम पर केवल दिखावा
गांव वालों ने यह भी कहा कि SAIL कंपनी CSR के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति कर रही है। न तो कोई स्थायी विकास कार्य कराया गया है और न ही शिक्षा, स्वास्थ्य, जल या रोजगार के क्षेत्र में कोई ठोस पहल की गई है। जबकि कंपनी को CSR के तहत प्रति वर्ष करोड़ों रुपये खर्च करने होते हैं।
उपायुक्त से की गई है यह प्रमुख मांगें
- मुआवजा का भुगतान – जिनकी भूमि, चरागाह या जलस्रोत बर्बाद हुए हैं उन्हें उचित मुआवजा दिया जाए।
- स्थानीय युवाओं को रोजगार – खदान से प्रभावित प्रत्येक गांव से प्राथमिकता के आधार पर रोजगार प्रदान किया जाए।
- CSR का पारदर्शी उपयोग – गांवों में बुनियादी सुविधाओं का विस्तार किया जाए और CSR की राशि सार्वजनिक की जाए।
- लाल मिट्टी का प्रबंधन – खेतों से लाल मिट्टी हटाने की व्यवस्था की जाए ताकि खेती दोबारा संभव हो सके।
प्रतिलिपि महाप्रबंधक को भी सौंपी गई यह ज्ञापन गुवा स्थित सेल महाप्रबंधक को भी प्रतिलिपि के रूप में भेजा गया है, ताकि कंपनी के उच्च अधिकारियों का ध्यान इस महत्वपूर्ण विषय पर केंद्रित किया जा सके।
ग्रामीणों की चेतावनी –
नहीं सुनी गई बात, तो होगा आंदोलन ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही उन्हें रोजगार और मुआवजा नहीं मिला, तो वे सामूहिक रूप से व्यापक आंदोलन करेंगे। साथ ही कंपनी के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाकर प्रशासनिक कार्रवाई की भी मांग करेंगे।
ज्ञापन देने वालों में प्रमुख रूप से तितलीघाट गांव के मुण्डा मनचुड़िया सिद्धु समेत अन्य मुण्डा गण, ग्रामीण प्रतिनिधि के लोग शामिल थे।