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रेलवे कर्मचारी विशकेसन गोप की दर्दनाक मौत: सिनि में डॉक्टर और एंबुलेंस की गैरमौजूदगी ने ली जान

 

काम पर जाते वक्त मालगाड़ी की चपेट में आए TM-I/Keyman, घायल अवस्था में तड़पते रहे—मौके पर न डॉक्टर था, न एंबुलेंस; आंखों के सामने टूट गई सांसें

सरायकेला- रेलवे विभाग की लापरवाही ने एक और ज़िंदगी निगल ली। गुरुवार की सुबह लगभग 6 बजे रेलवे इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत विशकेसन गोप (उम्र 58 वर्ष), मालगाड़ी की चपेट में आकर गंभीर रूप से घायल हो गए। हादसा सिनि-कांड्रा रेलखंड के KAM 275/S13-S15 UP लाइन पर हुआ। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि घायल अवस्था में तड़पते विशकेसन गोप को समय पर प्राथमिक चिकित्सा तक नहीं मिल सकी। सिनि जैसे बड़े रेल सेक्शन में न तो डॉक्टर मौजूद थे, न ही एंबुलेंस की सुविधा। परिणामस्वरूप एक ज़िम्मेदार कर्मचारी की जान चली गई।

काम पर निकलते ही काल ने घेरा

मोहितपुर पंचायत के सोहनपूर गांव निवासी विशकेसन गोप रेलवे इंजीनियरिंग विभाग में TM-I/Keyman पद पर कार्यरत थे (PF No. 50706172507, B.U. 0704/386)। वे SS/P.WAY/SINI के अधीन कार्यरत थे। गुरुवार की सुबह जब वे नियमित ड्यूटी के लिए रवाना हुए, तब उन्हें यह अंदाज़ा भी नहीं था कि आज का दिन उनके जीवन का आखिरी दिन साबित होगा।

हादसा उस वक्त हुआ जब विशकेसन गोप सिनि से कांड्रा की ओर UP लाइन पर कार्य स्थल पर पहुंचे ही थे। वहीं, एक मालगाड़ी ने उन्हें चपेट में ले लिया।

‘डॉक्टर के पास ले चलो’—पर कोई सुनने वाला नहीं था

घायल अवस्था में विशकेसन गोप काफी देर तक मदद की गुहार लगाते रहे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वे बार-बार कहते रहे—”डॉक्टर के पास ले चलो, बचा लो।” लेकिन सिनि जैसे महत्वपूर्ण रेल सेक्शन में स्वास्थ्य सुविधाओं का पूर्ण अभाव रहा। मौके पर न कोई डॉक्टर पहुंचा, न एंबुलेंस आई। अंततः वे दम तोड़ बैठे।

एक साथी कर्मचारी ने कहा, “मैंने अपनी आंखों के सामने उसे मरते देखा। कुछ नहीं कर सका। क्या इतने बड़े रेलवे स्टेशन पर डॉक्टर और एंबुलेंस तक की व्यवस्था नहीं हो सकती?”

रेलवे प्रशासन पर उठे सवाल

इस दुर्घटना ने रेलवे विभाग की स्वास्थ्य और सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। कर्मचारी वर्षों से शिकायत करते आ रहे हैं कि सिनि जैसी जगहों पर चिकित्सा व्यवस्था नाम मात्र की है। हादसे के बाद कर्मचारी आक्रोशित हैं और उन्होंने विभाग से जवाबदेही की मांग की है।

परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़

विशकेसन गोप अपने पीछे दो पुत्र और एक पुत्री को छोड़ गए हैं। उनके परिवार पर यह त्रासदी कहर बनकर टूटी है। एक ओर कमाऊ सदस्य का असमय जाना, दूसरी ओर विभागीय लापरवाही ने परिजनों का भरोसा तोड़ दिया है।

क्या सिर्फ मुआवज़े से मिटेगा गुनाह?

रेलवे विभाग की परंपरा रही है कि दुर्घटना के बाद मुआवज़े की घोषणा कर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है। लेकिन क्या जान की कीमत सिर्फ पैसों से तय की जा सकती है? क्या विशकेसन गोप की जान समय पर डॉक्टर और एंबुलेंस मिलने से बचाई नहीं जा सकती थी?

कर्मचारियों की चेतावनी—यदि सुविधाएं नहीं मिलीं, होगा आंदोलन

घटना के बाद कर्मचारियों में उबाल है। वे मांग कर रहे हैं कि सिनि स्टेशन पर स्थायी चिकित्सक, एंबुलेंस और प्राथमिक उपचार केंद्र की तत्काल व्यवस्था की जाए। अगर विभाग ने गंभीरता नहीं दिखाई तो रेलवे कर्मचारी यूनियन आंदोलन की राह पकड़ सकती है।

यह एक व्यक्ति की मौत नहीं, सिस्टम की असफलता है

विशकेसन गोप की मौत एक अकेली दुर्घटना नहीं, बल्कि रेलवे की ढीली सुरक्षा व्यवस्था और कर्मचारी कल्याण के प्रति घोर उपेक्षा का परिणाम है। यह सवाल उठता है कि देश की धड़कन कहे जाने वाले रेलवे में जमीनी कर्मचारियों की जान की कोई कीमत नहीं?

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