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पचमा गांव के श्मशान घाट बाउंड्री निर्माण में खुला भ्रष्टाचार का भंडाफोड़: गुणवत्ता की अनदेखी और नियमों की उड़ाई गई धज्जियां

 

जेई की संलिप्तता और अनुभवहीन ठेकेदार को ठेका देने का आरोप, घटिया सामग्री से तैयार हो रही दीवार से जानमाल का खतरा

तरारी विधानसभा के पचमा गांव में निर्माणाधीन श्मशान घाट का हाल बेहाल

रिपोर्ट : शैलेश सिंह
भोजपुर जिले के तरारी विधानसभा अंतर्गत पचमा गांव में श्मशान घाट की बाउंड्री वॉल निर्माण को लेकर बड़ा घोटाला सामने आया है। ग्रामीणों और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इस निर्माण कार्य में तकनीकी मानकों की खुलेआम अवहेलना की जा रही है, जिससे स्पष्ट होता है कि कार्य में भारी भ्रष्टाचार हुआ है। दीवार की गुणवत्ता इतनी खराब है कि पहली ही बारिश में इसके गिरने का खतरा मंडरा रहा है।

सुशासन बाबू के राज में भ्रष्ट इंजीनियरिंग?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्हें ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाना जाता है, खुद इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से आते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि उनके शासन में, उनकी ही देखरेख में, इतना घटिया निर्माण कार्य कैसे हो रहा है? क्या संबंधित विभाग के उपायुक्त, मुख्य अभियंता, कार्यपालक अभियंता और नियुक्त जूनियर इंजीनियर (जेई) सबकी आंखें मूंद ली गई हैं या जानबूझकर अनदेखी की जा रही है?

जेई की डिग्री पर सवाल, ठेकेदार के अनुभव पर संदेह

स्थानीय लोगों ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि इस प्रोजेक्ट की निगरानी कर रहा जेई (जूनियर इंजीनियर) अनुभवहीन अथवा फर्जी डिग्री लेकर नियुक्त हुआ हो सकता है। इसके अलावा ठेका जिस संवेदक को दिया गया है, उसकी न तो पूर्व में किसी निर्माण कार्य की कोई गुणवत्ता रही है और न ही पर्याप्त अनुभव। सवाल यह भी उठता है कि ऐसे अनुभवहीन ठेकेदार को रजिस्ट्रेशन कैसे मिल गया?

12 या 10 एमएम के सरिए की जगह 8 एमएम का प्रयोग

निर्माण स्थल का निरीक्षण करने पर यह बात सामने आई कि जहां 12 या 10 एमएम के सरिए का उपयोग होना था, वहां मात्र 8 एमएम के सरिए से काम चलाया जा रहा है। प्लिंथ बीम में भी यही हल्के किस्म का सरिया डाला गया है। इससे दीवार की मजबूती पर सवाल उठते हैं। सरिया में लगाए गए रिंग्स की दूरी भी मानकों से अधिक है, जिससे दीवार की संरचना कमजोर हो जाती है। कार्य स्थल पर कार्य के प्राक्कलन व पूरी जानकारी संबंधित कोई बोर्ड या सूचना पट्ट भी नहीं लगा है।

ईंट, प्लास्टर और मिक्सचर में भारी अनियमितता

ईंटों की चिनाई और प्लास्टर कार्य में बालू और सीमेंट का अनुपात भी पूरी तरह से गलत पाया गया है। जहां सिविल इंजीनियरिंग के नियमानुसार एक तय अनुपात में मिक्सचर तैयार किया जाना चाहिए, वहां घटिया किस्म की सामग्री से काम चलाया जा रहा है। इससे दीवार न केवल कमजोर होगी, बल्कि जल्द ही दरकने और गिरने का खतरा बना रहेगा।

क्या जानबूझकर मौत का न्योता दे रहा है प्रशासन?

जिस दीवार को मृत व्यक्तियों की अंतिम विदाई के सम्मान में बनाया जाना था, वह अब लोगों की जान के लिए खतरा बनती जा रही है। सवाल यह उठता है कि क्या इतनी बड़ी लापरवाही के पीछे केवल ‘पीसी (कमीशन)’ संस्कृति जिम्मेदार है? क्या कुछ अधिकारी केवल अपना कमीशन पाने के लिए दीवार की नींव में भ्रष्टाचार की ईंटें जोड़ रहे हैं?

अगर गधे को ठेका मिलता, तो भी करता ईमानदारी से काम!

स्थानीय लोगों में गुस्सा इतना अधिक है कि उन्होंने कहा – “अगर इस काम को किसी गधे को दे दिया गया होता, तो वह भी मेहनत और ईमानदारी से कार्य करता।” इस कटाक्ष से साफ है कि जनता के बीच कार्य की गुणवत्ता को लेकर कितनी निराशा और नाराजगी है।

जिम्मेदार कौन? प्रशासन मौन क्यों?

मुख्यमंत्री से लेकर ब्लॉक स्तर तक के अधिकारी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि यह निर्माण कार्य सरकारी फंड से हो रहा है और इसकी जिम्मेदारी सीधा राज्य सरकार के अधीन है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले पर कब संज्ञान लेता है और दोषियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई करता है।

भ्रष्टाचार की बुनियाद पर टिकी यह दीवार कब गिरेगी?

शब्दश: नहीं, बल्कि वास्तविकता में यह दीवार जल्द ही गिर सकती है, यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया। और जब गिरेगी, तो उसके मलबे में केवल ईंट-पत्थर नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन की संवेदनहीनता भी दबी होगी।

निष्कर्ष:

पचमा गांव का यह मामला केवल एक निर्माण कार्य का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की बीमारियों को उजागर करता है। यदि ऐसे भ्रष्टाचार को समय रहते नहीं रोका गया, तो सरकारी योजनाओं की विश्वसनीयता और आम जनमानस का विश्वास दोनों ही खत्म हो जाएंगे।

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