परीक्षा का भय होगा कम, मिलेगा आत्म-सुधार का अवसर- प्राचार्य डॉ. आशीष कुमार ।
रिपोर्ट : शैलेश सिंह ।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने वर्ष 2026 से कक्षा 10वीं के विद्यार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक सुधार की घोषणा की है। अब छात्रों को साल में दो बार बोर्ड परीक्षा देने का अवसर मिलेगा—एक मुख्य परीक्षा और एक सुधार परीक्षा। उक्त जानकारी डॉ. अशीष कुमार प्राचार्य, केन्द्रीय विद्यालय, मेघाहातुबुरु ने देते हुये बताया की यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की अनुशंसाओं पर आधारित है और इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों पर परीक्षा का दबाव कम करना और उन्हें आत्म-सुधार का अवसर प्रदान करना है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की पृष्ठभूमि
सीबीएसई का यह निर्णय नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुच्छेद 4.37 और 4.38 पर आधारित है, जिनमें बोर्ड परीक्षाओं को अधिक लचीला, कम तनावपूर्ण और छात्र-केंद्रित बनाने की बात कही गई है।
- पैरा 4.37 के अनुसार, छात्रों को एक शैक्षणिक सत्र में दो अवसर—मुख्य और सुधार परीक्षा—प्रदान किए जाने चाहिए।
- पैरा 4.38 में यह स्पष्ट किया गया है कि बोर्ड परीक्षाएं विषयों की अधिक समझ पर आधारित हों और उन्हें मॉड्यूलर तथा सेमेस्टर आधार पर आयोजित किया जा सके।
इसके अलावा यह भी अनुशंसा की गई है कि:
- परीक्षाएं कम पाठ्यवस्तु पर आधारित हों।
- प्रश्नपत्र वस्तुनिष्ठ और वर्णनात्मक दोनों रूपों में हों।
- विषयों को मानक और उच्च स्तर पर पढ़ाने की व्यवस्था हो।
मुख्य विशेषताएं: 2026 से लागू प्रणाली
1. दो परीक्षा अवसर:
- पहली परीक्षा (मुख्य): फरवरी माह में आयोजित होगी। सभी छात्रों के लिए अनिवार्य होगी।
- दूसरी परीक्षा (सुधार): मई माह में आयोजित होगी। इसमें छात्र तीन मुख्य विषयों तक सुधार कर सकेंगे।
2. पाठ्यक्रम:
दोनों परीक्षाएं पूरे वार्षिक पाठ्यक्रम पर आधारित होंगी।
3. मूल्यांकन प्रणाली:
आंतरिक मूल्यांकन (Internal Assessment) केवल एक बार किया जाएगा और वह दोनों परीक्षाओं में समान रूप से मान्य होगा।
4. विशेष प्रावधान:
- खिलाड़ियों, विशेष आवश्यकता वाले छात्रों (CWSN) और विंटर बाउंड स्कूलों के लिए लचीलापन प्रदान किया गया है।
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- सुधार परीक्षा का उद्देश्य छात्रों को अंक बढ़ाने और बेहतर प्रदर्शन का अवसर देना है, न कि उन्हें ‘फेल’ घोषित करना।
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इस बदलाव के संभावित लाभ
1. परीक्षा का तनाव होगा कम: एक ही अवसर में अच्छे अंक लाने का दबाव खत्म होगा, जिससे छात्र अधिक आत्मविश्वास से परीक्षा दे सकेंगे।
2. आत्म-सुधार की सुविधा: छात्रों को अपने प्रदर्शन में सुधार का अवसर मिलेगा। वे गलतियों से सीख सकेंगे और अगली बार बेहतर कर सकेंगे।
3. शिक्षण प्रणाली में लचीलापन: छात्रों की व्यक्तिगत गति और समझ के अनुसार उन्हें सीखने का अवसर मिलेगा, जिससे समग्र विकास को बढ़ावा मिलेगा।
4. प्रतियोगिता का सकारात्मक प्रभाव: सुधार परीक्षा की उपलब्धता से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा, जिससे छात्रों की तैयारी और सीखने की प्रवृत्ति में वृद्धि होगी।
विद्यालयों की भूमिका
इस नई व्यवस्था के सफल क्रियान्वयन में विद्यालयों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। विद्यालयों को चाहिए कि वे:
- छात्रों को इस नई प्रणाली की जानकारी दें और उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें।
- अभिभावकों को इस बदलाव की सकारात्मकता से अवगत कराएं।
- शिक्षकों को प्रशिक्षण दें ताकि वे मूल्यांकन और पढ़ाई के नए पैटर्न के अनुसार कक्षा शिक्षण में बदलाव ला सकें।
भावी शिक्षा व्यवस्था की ओर एक सकारात्मक कदम
इस सुधारात्मक कदम से भारतीय परीक्षा प्रणाली अधिक विद्यार्थी-केंद्रित, लचीली और सक्षम बन सकेगी। छात्र केवल अंकों की दौड़ में नहीं, बल्कि ज्ञान, समझ और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ेंगे।