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प्रखंड विकास पदाधिकारी पर पारंपरिक जनसंविधान की अनदेखी का आरोप

 

जनप्रतिनिधियों को दरकिनार कर कुकडू़ में सामाजिक अंकेक्षण और जनमनुषवाधिकार कार्यक्रम संचालित करने पर उठे सवाल

सारायकेला-खरसावां,
प्रखंड विकास पदाधिकारी एवं प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी, कुकडू़ पर पारंपरिक ग्राम प्रणाली और जनप्रतिनिधियों की भावना की अवहेलना कर प्रखंड  स्तरीय मनरेगा अंकेक्षण सह जनसुनवाई कार्यक्रम (जनमनुषवाधिकार) के संचालन का आरोप लगाया गया है। यह आरोप जिला परिषद उपाध्यक्ष श्रीमती मधुश्री महतो ने पत्र के माध्यम से झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग को भेजे अपने अभ्यावेदन में लगाया है।

पारंपरिक व्यवस्था को दरकिनार कर चयनित हुए प्रतिनिधि?

प्राप्त जानकारी के अनुसार दिनांक 13 मई 2025 को पंचायत स्तर पर प्रस्तावित सामाजिक अंकेक्षण एवं जनमनुषवाधिकार शिविर के लिए 8 जन/मूर्ति प्रतिनिधियों के स्थान पर केवल 4 को ही चयनित किया गया है। यह चयन ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव के निर्देश (संख्या-2681, दिनांक 29.05.2017) और जिला स्तरीय समिति की पारंपरिक सहमति के विपरीत बताया जा रहा है।

ग्राम सभा व जनसंविधान की उपेक्षा

पत्र में उल्लेख है कि ग्राम सभा की परंपरागत सहमति के बिना ही सामाजिक अंकेक्षण शिविर आयोजित किया जा रहा है, जिससे जनता और जनप्रतिनिधियों में रोष व्याप्त है। श्रीमती महतो ने स्पष्ट किया है कि प्रखंड विकास पदाधिकारी, कुकडू़ द्वारा पूर्व में भी पारंपरिक ग्राम प्रधानों को नजरअंदाज किया गया है।

जिला परिषद उपाध्यक्ष की मांग

श्रीमती मधुश्री महतो ने इस पत्र के माध्यम से निम्नलिखित मांगें की हैं:

पारंपरिक जनसंविधान की अनदेखी को लेकर संबंधित पदाधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की जाए।

चयन प्रक्रिया को पुनः पारदर्शी और ग्रामसभा आधारित बनाकर शिविर आयोजन को स्थगित किया जाए।

जनप्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए ताकि सरकार की योजनाएं धरातल पर प्रभावी रूप से लागू हो सकें।

प्रशासनिक पत्राचार की प्रतियां भेजी गईं

यह पत्र ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड सरकार के प्रधान सचिव, विशेष सचिव, एवं प्रमुख कार्यक्रम पदाधिकारी को प्रेषित किया गया है। साथ ही प्रखंड विकास पदाधिकारी, कुकडू़ को भी इसकी प्रतिलिपि भेजी गई है।

स्थानीय प्रतिनिधित्व बनाम सरकारी आदेश — टकराव की स्थिति

इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में स्थानीय प्रतिनिधित्व को उचित सम्मान दिया जा रहा है या नहीं? क्या पारंपरिक ग्राम प्रणालियाँ केवल औपचारिकता भर बन कर रह गई हैं?

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