टूटा इंसुलेटर, भीगी ज़मीन और झुलस गई ज़िंदगी – प्रशासन बना रहा मूक दर्शक। गांव की रात बनी मातम की सुबह
रिपोर्ट: शैलेश सिंह
सारंडा के गंगदा पंचायत अंतर्गत लेम्ब्रे गांव में गुरुवार की रात दर्द और लाचारी का मंजर देखने को मिला, जब बिजली खंभे से फैले करंट की चपेट में आकर ग्रामीणों की 12 भेड़ें तड़प-तड़प कर मर गईं। यह घटना बिजली विभाग की आपराधिक लापरवाही का नतीजा है, जिसने गांव के गरीब पशुपालकों की आजीविका पर गहरी चोट की है।
टूटा इंसुलेटर बना मौत का ज़रिया
गांव के निवासी देवेन्द्र चाम्पिया ने बताया कि दर्जनों बकरी- भेड़ें रोज़ की तरह बिजली खंभे के पास आराम कर रही थीं। लेकिन रात लगभग 10.30 बजे बिजली चालू किया गया जिससे उसी खंभे पर लगे इंसुलेटर का टूट जाना जानलेवा साबित हुआ। बारिश और तेज़ आंधी के चलते भीगी ज़मीन पर फैला करंट भेड़ों के लिए मौत बन गया। एक-एक कर 12 भेड़ों की मौके पर ही झुलसकर मौत हो गई।
फोन किया… पर कोई जवाब नहीं मिला!
घटना के तुरंत बाद ग्रामीणों ने बिजली विभाग, स्थानीय लाइनमैन और मनोहरपुर बीडीओ को फोन कर बिजली काटने की गुहार लगाई, ताकि और नुकसान न हो। लेकिन अफ़सोस की बात ये रही कि कोई भी फोन नहीं उठा। कुछ अधिकारियों के मोबाइल सीधे ‘स्विच ऑफ’ मिले, जिससे ग्रामीणों का गुस्सा और भी भड़क गया।
प्रशासन का रवैया – संवेदनहीन और गैरजिम्मेदार
ग्रामीणों का कहना है कि वे बार-बार शिकायत करने के बावजूद बिजली विभाग की आंखें नहीं खुल रही हैं। बारिश के मौसम में जर्जर बिजली खंभे और तार मौत बनकर मंडरा रहे हैं, और विभाग सोया हुआ है। घटना के बाद भी कोई अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा, न ही प्रशासन की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई।
आर्थिक नुकसान की भरपाई कौन करेगा?
लेम्ब्रे गांव जैसे पिछड़े इलाकों में भेड़-बकरी पालन ही लोगों का मुख्य रोजगार है। एक भेड़ की कीमत औसतन 5 से 7 हज़ार रुपये होती है। ऐसे में 12 भेड़ों की मौत से परिवारों पर 60 से 70 हज़ार रुपये का सीधा नुकसान हुआ है। ग्रामीणों ने प्रशासन से मुआवज़े की मांग की है और चेतावनी दी है कि यदि उचित कार्रवाई नहीं हुई तो वे विरोध प्रदर्शन करेंगे।
‘सिस्टम फेल’ होने की खुली मिसाल
यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि सरकारी मशीनरी की नाकामी की खुली बानगी है। जर्जर बिजली व्यवस्था, टूटे इंसुलेटर, संवेदनहीन प्रशासन और गैर-जवाबदेह अधिकारियों ने एक छोटे से गांव की पीड़ा को बढ़ा दिया है।
क्या अब जागेगा प्रशासन?
ग्रामीणों ने चेताया है कि अगर इस बार बिजली विभाग और प्रशासन ने मुआवजा नहीं दिया और दोषियों पर कार्रवाई नहीं की गई, तो गांववाले सड़क पर उतरेंगे। उनका साफ कहना है कि सरकार और विभाग जब तक गांव की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक इस तरह की मौतें होती रहेंगी।
मांगें साफ हैं – मुआवजा दो, जिम्मेदारों को बर्खास्त करो
मवेशियों की मौत का मुआवजा तत्काल दिया जाए।
जर्जर बिजली खंभों और तारों को तत्काल बदला जाए।
टूटे इंसुलेटर और पुराने उपकरणों की जांच की जाए।
घटना के वक्त फोन नहीं उठाने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
ग्रामीणों का सवाल – क्या जानवरों की जान की कोई कीमत नहीं?
सवाल यह है कि क्या गांवों में रहने वालों की जान, उनके मवेशियों की जान और उनकी मेहनत से कमाई गई रोज़ी-रोटी की कोई कीमत नहीं? यह मामला केवल 12 भेड़ों की मौत का नहीं है, यह मामला सरकारी सिस्टम के मर चुके ज़मीर का है।
सरकार को जवाब देना होगा
अब वक्त आ गया है कि झारखंड सरकार, बिजली विभाग और जिला प्रशासन जवाबदेही तय करें। केवल आश्वासन नहीं, ठोस कार्रवाई चाहिए। नहीं तो लेम्ब्रे जैसी त्रासदी कहीं और, किसी और गांव में फिर दोहराई जाएगी – और फिर सवाल वही होगा: ‘कब जागेगा प्रशासन?’