हर धर्म, हर समुदाय ने बढ़ाया एक-दूसरे की ओर हाथ, बकरीद बनी आपसी भाईचारे की मिसाल
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
सारंडा व लौहांचल के किरीबुरु, गुआ, बड़ाजामदा, नोवामुण्डी, जगन्नाथपुर, जैंतगढ़ समेत तमाम कस्बों और बस्तियों में बकरीद का पर्व इस वर्ष भी परंपरा, आस्था और सामाजिक एकता के अद्भुत संगम के रूप में मनाया गया। शनिवार सुबह मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पूरे श्रद्धा और अनुशासन के साथ स्थानीय मस्जिदों में ईद-उल-अजहा (बकरीद) की विशेष नमाज अदा की और एक-दूसरे को गले मिलकर पर्व की बधाई दी।

नमाज के बाद लोगों ने पारंपरिक रूप से बकरे की कुर्बानी दी, जो इस पर्व का धार्मिक एवं आध्यात्मिक केंद्र है। इस दौरान सामूहिक दुआओं में अमन, चैन, भाईचारा और समाज में शांति की कामना की गई।

जैंतगढ़, चम्पुआ और झुंपरा की ईदगाह बनीं महिला-पुरुष सहभागिता की मिसाल
इस बार पर्व के दौरान एक सुखद और प्रेरणादायक दृश्य जैंतगढ़, चम्पुआ और झुंपरा स्थित ईदगाहों में देखने को मिला, जहां पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी सामूहिक रूप से बकरीद की नमाज अदा की। महिलाओं के लिए विशेष रूप से पर्दे की व्यवस्था की गई थी, जिससे उन्हें धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए सुरक्षित और गरिमामय वातावरण में हिस्सा लेने का अवसर मिला। यह दृश्य क्षेत्र में बढ़ती सामाजिक जागरूकता और लैंगिक सहभागिता की ओर एक सकारात्मक संकेत है।

हर ओर छाया सौहार्द का माहौल
पर्व के दिन केवल मुस्लिम समुदाय ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों व समुदायों के लोगों ने भी मुस्लिम भाई-बहनों को पर्व की शुभकामनाएं दीं। मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा और अन्य सामाजिक संस्थाओं से भी पर्व पर बधाई संदेश भेजे गए। यह परंपरा इस क्षेत्र की साझा सांस्कृतिक विरासत को उजागर करती है, जहां धर्म और संस्कृति को जोड़ने वाली कड़ियाँ आज भी जीवित हैं।
पुलिस-प्रशासन रहा मुस्तैद
जिला प्रशासन और किरीबुरु में थाना प्रभारी रोहित कुमार के नेतृत्व में स्थानीय पुलिस ने पर्व के मद्देनजर सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए थे। मस्जिदों और संवेदनशील स्थलों पर पुलिस बल की तैनाती रही, वहीं सोशल मीडिया पर भी निगरानी रखी गई ताकि कोई अफवाह या भड़काऊ सामग्री सामाजिक सौहार्द को बाधित न कर सके। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने खुद क्षेत्र में भ्रमण कर शांति व्यवस्था सुनिश्चित की।

बच्चों से बुजुर्गों तक, हर चेहरा खिला
पर्व की सुबह से ही इलाकों में उत्साह का माहौल रहा। बच्चे नए कपड़ों में सजकर नमाज के लिए पहुंचे और त्योहार को लेकर उत्साहित दिखे। वहीं महिलाएं पारंपरिक व्यंजन बनाने में व्यस्त रहीं। कुर्बानी के बाद जरूरतमंदों और पड़ोसियों के बीच मांस वितरण कर सहृदयता का भी उदाहरण प्रस्तुत किया गया।
पर्व से जुड़ी मान्यताएं और संदेश
बकरीद की कुर्बानी सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह त्याग, समर्पण और समाज के कमजोर वर्गों की मदद का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि समाज में अगर हर वर्ग एक-दूसरे की तकलीफ को समझे और साथ चले, तो सामाजिक समरसता और भी मजबूत हो सकती है।
सारंडा व लौहांचल में कायम है साझा संस्कृति की मिसाल
जिन क्षेत्रों को कभी उनकी खनिज संपदा या सामाजिक चुनौतियों के लिए पहचाना जाता रहा है, वहीं अब सारंडा व लौहांचल जैसे इलाके पर्वों के माध्यम से देश को आपसी प्रेम, एकता और सामाजिक सौहार्द का सशक्त संदेश दे रहे हैं।
बकरीद पर्व ने एक बार फिर यह साबित किया कि जब दिलों में जगह हो और धर्म का आधार प्रेम और सेवा बने, तब पर्व सिर्फ उत्सव नहीं रहते, वे समाज को जोड़ने वाले सेतु बन जाते हैं।