लड्डू प्रसाद लूटने को उमड़े श्रद्धालु, रथ खींचकर धन्य हुए भक्त
खरसावां।
शनिवार की शाम खरसावां में प्रभु श्रीजगन्नाथ की पारंपरिक बाहुड़ा रथ यात्रा अपार श्रद्धा, उल्लास और धार्मिक विधि-विधान के साथ सम्पन्न हो गई। गुंडिचा मंदिर (मौसीबाड़ी) में आठ दिवसीय प्रवास के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर वापस लौटे।
गुंडिचा मंदिर से रथ यात्रा का शुभारंभ
शाम करीब पांच बजे मुख्य पुरोहितों द्वारा प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं को विधिवत मंत्रोच्चार के साथ गुंडिचा मंदिर से बाहर निकाला गया और रथ पर प्रतिष्ठापित किया गया। इसके पश्चात सैकड़ों श्रद्धालुओं ने रथ की रस्सी थामकर भक्तिभाव से उसे श्रीमंदिर तक खींचा।
प्रसाद पाने की होड़, लड्डू के लिए श्रद्धालु दिखे आतुर
रथयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद स्वरूप लड्डू फेंके गए, जिसे पाने के लिए भक्तों में विशेष उत्साह देखा गया। हर कोई रथ खींचकर और प्रसाद प्राप्त कर स्वयं को धन्य समझ रहा था। वातावरण “जय जगन्नाथ” के जयघोष से गूंज उठा।
रथ यात्रा का आध्यात्मिक भाव :
‘बाहुड़ा यात्रा’ को भगवान जगन्नाथ की घर वापसी यात्रा कहा जाता है, जिसमें वह अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर लौटते हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक और पारिवारिक रिश्तों की गहराई को भी दर्शाती है।
विशिष्ट अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति
इस अवसर पर खरसावां राजघराने के राजा गोपाल नारायण सिंहदेव, राजपुरोहित अंबुजाख्य आचार्य तथा राकेश दाश समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। उन्होंने धार्मिक विधियों में भाग लेते हुए आयोजन को गरिमा प्रदान की।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी गूंजा ‘जय जगन्नाथ’
खरसावां के अलावा दलाईकेला, जोजोकुड़मा, पोटोबेडा, संतारी तथा कुचाई प्रखंड के बंदोलौहर, चाकड़ी और पोंडाकाटा गांवों में भी बाहुड़ा रथ यात्रा शांतिपूर्वक और परंपरागत ढंग से सम्पन्न हुई। इन सभी स्थानों पर भी भगवान जगन्नाथ की चतुर्था मूर्ति रथ पर विराजमान होकर श्रीमंदिर की ओर वापस लौटी।