आदिवासी “हो” समाज युवा महासभा ने गितिकिन्दु में चलाया अभियान, युवाओं से अपनी संस्कृति बचाने की अपील
रिपोर्ट: शैलेश सिंह
बोल-बम, दुर्गापूजा, दीवाली और सरस्वती पूजा जैसे आयोजनों के बहाने “हो” समाज में फैलते धार्मिक भटकाव और हिन्दूकरण के प्रयासों के खिलाफ आदिवासी “हो” समाज युवा महासभा ने गितिकिन्दु मुण्डा टोला में सामाजिक जागरूकता अभियान चलाया। इस अभियान का उद्देश्य युवाओं को यह समझाना था कि कैसे बाहरी धार्मिक प्रभावों के कारण उनकी पारंपरिक आदिवासी भाषा, संस्कृति और सामाजिक ढांचे पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
“अपनी संस्कृति बचाओ, दिखावे से दूर रहो” — इपिल सामड
अभियान का नेतृत्व महासभा के जगन्नाथपुर अनुमंडल अध्यक्ष बलराम लागुरी ने किया, जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष इपिल सामड ने उपस्थित ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि गांव-गांव में बाहरी धर्मों की अवैध घुसपैठ से आदिवासी समाज की मूल संस्कृति खतरे में है। उन्होंने कहा, “अगर हम नहीं जागे, तो आने वाले वर्षों में हमारी संस्कृति और पहचान खत्म हो जाएगी।” उन्होंने ग्रामीणों से अपील की कि वे हिन्दुत्व के विस्तार को रोकने के लिए “हो” समाज महासभा से जुड़ें और संगठित हों।
“धार्मिक आयोजनों से भावनात्मक नहीं, सतर्कता से जुड़ें” — गब्बरसिंह हेम्ब्रम
राष्ट्रीय महासचिव गब्बरसिंह हेम्ब्रम ने युवाओं को समझाया कि वे दुर्गापूजा, दीवाली, सरस्वती पूजा और गौशाला जैसे आयोजनों में आदिवासी समाज के प्रतिनिधि के तौर पर आमंत्रित नहीं होते, फिर भी वे उसमें पूरी आस्था और धन खर्च करते हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रवृत्ति के कारण विवाह, जन्म और मृत्यु जैसे पारंपरिक आदिवासी संस्कार भी अब हिन्दू रीति से किए जा रहे हैं, जो एक प्रकार से संस्कृति पर सीधा हमला है।
“सम्मान दें, पर अपनाएं नहीं” — युवाओं को स्पष्ट संदेश
हेम्ब्रम ने युवाओं से स्पष्ट शब्दों में कहा, “आप चाहे तो इन पर्वों को सम्मान दे सकते हैं, लेकिन उनकी धार्मिक प्रक्रिया में शामिल होकर अपनी संस्कृति से दूरी न बढ़ाएं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नई पीढ़ी को अपनी आदिवासी परंपरा और विरासत से जोड़ने का कार्य जरूरी है और इसमें सबको “हो” समाज युवा महासभा का साथ देना चाहिए।
ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी
इस अवसर पर बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे, जिनमें मुण्डा सुखदेव लागुरी, डाकुवा पराय अंगरिया, महासभा के सदस्य सुरेश पिंगुवा, मजूरा हेम्ब्रम, रंजीत लागुरी, सिकंदर बोदरा, जामदार पिंगुवा, देवेंद्र सिंह लागुरी, बलदेव लागुरी, बुधराम पुरती, गोरा लागुरी, लखन अंगारिया, लंकेश लागुरी, गुलाब चंद्र पुरती, जापान सिंह लागुरी, राहुल लागुरी, रेन्सो लागुरी, बुधराम अंगारिया, जयपाल लागुरी, विजय लागुरी, मूल्या लागुरी और माना लागुरी प्रमुख रूप से शामिल थे।
सांस्कृतिक पहचान के लिए सजगता जरूरी
अभियान के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की गई कि आज जब आदिवासी संस्कृति पर धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक प्रभावों का दबाव बढ़ रहा है, तब जरूरी है कि “हो” समाज के लोग संगठित होकर अपने अस्तित्व और परंपरा की रक्षा करें। यह केवल एक सांस्कृतिक संघर्ष नहीं, बल्कि अपनी पहचान और आत्मसम्मान की लड़ाई है।