ट्रैफिक जाम ने रोका काफिला, कार्यकर्ता की बाइक से तय की 7 किमी की दूरी, भावुक दिखे अर्जुन मुंडा
रामगढ़/सरायकेला।
झारखंड के आदिवासी चेतना के पुरोधा, दिशोम गुरु शिबू सोरेन की अंतिम यात्रा में भाग लेने के लिए जब रविवार को जनसैलाब उमड़ पड़ा, तो ट्रैफिक जाम ने भी नेताओं के काफिलों को रोक दिया। लेकिन गुरुजी के अंतिम दर्शन के लिए दृढ़ संकल्पित पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने काफिला छोड़ किसी कार्यकर्ता से बाइक ली और करीब 7 किलोमीटर की कठिन दूरी बाइक से तय कर नेमरा गांव पहुंचे।
झारखंड की राजनीति के दो मजबूत चेहरे—पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो—दिशोम गुरु की शव यात्रा में शामिल होने के लिए जब रांची से नेमरा रवाना हुए, तो रास्ते में भारी भीड़ और जाम ने उनके काफिले को रोक दिया। ऐसे में दोनों नेताओं ने निर्णय लिया कि वे किसी कार्यकर्ता की मोटरसाइकिल से ही गांव तक की दूरी तय करेंगे।
गांव में उमड़ा जनसैलाब, आंखें हुईं नम
नेमरा गांव में जैसे ही अर्जुन मुंडा और सुदेश महतो बाइक से पहुंचे, वहां पहले से मौजूद हजारों लोगों की आंखें नम थीं। श्रद्धांजलि सभा में भाग लेने के बाद अर्जुन मुंडा ने गुरुजी के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की और उनकी पत्नी एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर सांत्वना प्रकट की।
इस दौरान अर्जुन मुंडा भावुक हो उठे। अपने राजनीतिक गुरु को अंतिम विदाई देते हुए उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उन्होंने कहा,
“गुरुजी का पूरा जीवन सामाजिक न्याय, आदिवासी अधिकारों और जनहित को समर्पित था।”
“हमने संघर्ष सीखा उनसे” — अर्जुन मुंडा
गहरे दुःख के साथ अर्जुन मुंडा ने कहा:
“महाजनी शोषण के खिलाफ आंदोलन से लेकर झारखंड राज्य के गठन तक, गुरुजी जनता के बीच रहे। उन्होंने हमें सिखाया कि संघर्ष के दौरान भी जनहित और समाज के नेतृत्व को कैसे निभाया जाता है। मुझे गर्व है कि मुझे उनके साथ कार्य करने का मौका मिला।”
उन्होंने आगे कहा,
“आज वे हमारे बीच नहीं हैं, यह केवल एक युग का अंत नहीं, बल्कि आदिवासी राजनीति और सामाजिक चेतना के एक सशक्त अध्याय का समापन है। उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी।”
राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठ कर दी अंतिम विदाई
जहां एक ओर झारखंड की राजनीति में अर्जुन मुंडा और सुदेश महतो भाजपा और आजसू पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहीं दिशोम गुरु जीवन भर झामुमो के प्रतीक बने रहे। लेकिन अंतिम यात्रा के इस दृश्य ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि राजनीतिक मतभेदों से कहीं बड़ा होता है वैचारिक और आत्मीय जुड़ाव।
गांव के लोगों और कार्यकर्ताओं ने भी इस समर्पण भाव को सलाम किया। लोगों ने कहा कि अर्जुन मुंडा और सुदेश महतो का बाइक से पहुंचना यह दर्शाता है कि गुरुजी के प्रति सम्मान और श्रद्धा किसी पद या प्रोटोकॉल की मोहताज नहीं।