रथयात्रा के बाद मंगलवार को पारंपरिक आस्था और महिला शक्ति की अद्भुत छवि
सरायकेला/गुवा।
रथयात्रा के बाद मंगलवार को सरायकेला के गुंडिचा मंदिर (मौसीबाड़ी) और गुवा के कुसुम घाट स्थित शिव मंदिर प्रांगण में मां विपदतारिणी पूजा का भव्य आयोजन हुआ। इस अवसर पर हजारों की संख्या में सुहागिन महिलाएं पारंपरिक वस्त्र धारण कर, हाथों में पूजा सामग्री लिए मंदिरों में उमड़ पड़ीं। हर ओर भक्ति, आस्था और सांस्कृतिक समरसता की भावनाएं स्पष्ट झलक रही थीं।
मां विपदतारिणी – संकट हरने वाली देवी का रूप
मां विपदतारिणी को मां दुर्गा का एक संकटमोचक रूप माना जाता है। यह पूजा खासकर विवाहित महिलाएं अपने पति, संतान और परिवार की रक्षा, सुख-शांति और समृद्धि की कामना के लिए करती हैं। यह पर्व हर साल रथयात्रा के बाद आने वाले मंगलवार को मनाया जाता है और इसे व्रत, पूजन और रक्षा सूत्र बांधने की परंपराओं से संपन्न किया जाता है।
पूजा का विधिविधान: आस्था और परंपरा का संगम
सरायकेला गुंडिचा मंदिर में पूजा का विधिवत आयोजन पुरोहित ब्रह्मानंद महापात्र सानो आचार्य के नेतृत्व में किया गया। उन्होंने बताया कि यह पूजा परिवार पर आने वाली हर विपत्ति से सुरक्षा प्रदान करती है। वहीं गुवा के कुसुम घाट शिव मंदिर परिसर में भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी रही।
महिलाओं ने नए वस्त्र पहनकर 13 प्रकार के फल, फूल, मिठाई और अन्य पूजन सामग्री के साथ मां को अर्पित किया। पूजन के पश्चात महिलाओं ने दूर्वा घास से रक्षा सूत्र बनाकर अपने परिवार के सदस्यों को बांधा। धार्मिक मान्यता है कि यह रक्षा सूत्र जीवन की प्रत्येक आपदा से रक्षा करता है।
महिला शक्ति और संस्कृति की अभिव्यक्ति
सुबह से ही सरायकेला और गुवा के बाजारों में फलों, पूजन सामग्री और मिठाइयों की खरीदारी के लिए भीड़ लगी रही। मंदिर परिसर में महिलाओं की कतारें और मंत्रोच्चार के बीच सजीव होता आस्था का दृश्य श्रद्धा और ऊर्जा से परिपूर्ण रहा। पूजा संपन्न होने के बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाया और प्रसाद वितरण कर पुनः घर लौट गईं।
प्रशासनिक प्रबंध और मेला समिति की सक्रियता
विपदतारिणी पूजा को सफल बनाने के लिए प्रशासन एवं मेला समिति की ओर से विशेष व्यवस्था की गई थी। मेला समिति के अध्यक्ष मनोज चौधरी, छोटेलाल साहू, गोविंद साहू, विकास प्रजापति, अमित रथ समेत बड़ी संख्या में समिति के सदस्य सक्रिय रूप से उपस्थित रहे।
निष्कर्ष
सरायकेला और गुवा की यह पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय नारी शक्ति की पारंपरिक आस्था, सामाजिक समर्पण और परिवार के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। मां विपदतारिणी की पूजा ने यह साबित किया कि जब श्रद्धा और संस्कृति मिलती है, तो समाज में सकारात्मक ऊर्जा और नैतिकता का संचार होता है।