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श्रद्धा, उल्लास और परंपरा का संगम: हरिभंजा में निकली भव्य रथयात्रा

छेरा-पहंरा की रस्म से शुरू हुई रथयात्रा, जय जगन्नाथ के जयघोष से गूंज उठा हरिभंजा गांव

खरसावां, हरिभंजा।

शुक्रवार को खरसावां प्रखंड के ऐतिहासिक गांव हरिभंजा में श्रद्धा, भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिला। ओड़िशा के पुरी की तर्ज पर यहां भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया गया, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा और सुदर्शन चक्र की चतुर्था मूर्तियों को विशेष वैदिक अनुष्ठानों के साथ रथ पर सवार कर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया गया। सुबह से ही हरिभंजा गांव भक्तों के सैलाब, मंत्रोच्चारण और ढोल-नगाड़ों से गूंजता रहा।

वैदिक मंत्रों के साथ आरंभ हुआ आयोजन

“मंगलम् भगवान विष्णु, मंगलम् मधुसूदनम…” जैसे पवित्र वैदिक मंत्रों के उच्चारण और माधव माधव हरि नाम संकीर्तन के साथ रथ यात्रा की शुरुआत हुई। ग्रामीणों और दूर-दराज से पहुंचे श्रद्धालुओं ने भगवान सूर्य की पूजा कर दिन का शुभारंभ किया। इसके बाद मंदिर प्रांगण में चतुर्था मूर्ति को मंडप पर लाकर विधिवत पूजा-अर्चना, हवन और विशेष श्रृंगार किया गया। भगवान जगन्नाथ को तुलसी और फूलों की मालाएं अर्पित की गईं।

छेरा-पहंरा की रस्म में दिखी परंपरा की जीवंतता

रथ यात्रा से पहले ओड़िशा परंपरा के अनुसार छेरा-पहंरा की रस्म निभाई गई। हरिभंजा गांव के ऐतिहासिक जमींदार परिवार के सदस्य राजेश सिंहदेव ने मंदिर प्रांगण में चंदन जल का छिड़काव करते हुए और स्वर्णझाड़ू से झाड़ू लगाते हुए यह रस्म पूरी की। यह रस्म यह दर्शाती है कि प्रभु के समक्ष सभी समान हैं – राजा हो या रंक।

पोहंडी विधि से चतुर्था मूर्ति की रथ तक अगुवाई

छेरा-पहंरा के बाद, मंदिर के पुरोहित पंडित प्रदीप कुमार दाश की अगुवाई में चतुर्था मूर्तियों को पोहंडी विधि (हल्के झुलाते हुए चलना) के माध्यम से रथ तक ले जाया गया। इस दौरान पूरा वातावरण “जय जगन्नाथ” के नारों से गुंजायमान था। भक्तों की श्रद्धा और उल्लास देखते ही बन रही थी।

भक्तों के खिंचाव से आगे बढ़ा रथ

रथ को खींचने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग – सभी ने रस्सियों को पकड़कर रथ को खींचते हुए श्रीमंदिर से श्रीगुंडिचा मंदिर तक यात्रा पूरी की। यह मार्ग भक्ति, अनुशासन और आस्था का प्रतीक बना रहा।

गुंडिचा मंदिर में आरती व भोग

गुंडिचा मंदिर पहुंचने के बाद मूर्तियों को मंदिर में विराजमान किया गया। वहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की आरती उतारी गई, भोग अर्पित किया गया और प्रसाद वितरण हुआ। गांव के छोटे-बड़े सभी लोग इस अवसर पर शामिल हुए और प्रसाद ग्रहण किया।

समाज और संस्कृति के दायित्व को निभाते सिंहदेव परिवार

इस रथयात्रा आयोजन में हरिभंजा के ऐतिहासिक सिंहदेव जमींदार परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आयोजन में विद्या विनोद सिंहदेव, संजय सिंहदेव, राजेश सिंहदेव, पृथ्वीराज सिंहदेव, राणा सिंहदेव, सचिन्द्र दाश समेत अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे, जिन्होंने पारंपरिक रीति-नीति के अनुसार सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया।

आस्था, परंपरा और सामाजिक समरसता की अद्भुत मिसाल

हरिभंजा की यह रथ यात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोक आस्था, परंपरा और सामाजिक समरसता की मिसाल भी है। इस आयोजन ने यह सिद्ध किया कि आधुनिकता के दौर में भी ग्रामीण समाज अपनी सांस्कृतिक जड़ों से गहराई से जुड़ा हुआ है और नई पीढ़ी को यह परंपराएं सौंपने के लिए कृतसंकल्पित है।

निष्कर्ष:

हरिभंजा की यह रथ यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह जनसामान्य की भक्ति, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक निरंतरता का जीवंत प्रतीक बन चुकी है। वर्ष दर वर्ष इस उत्सव में बढ़ रही भागीदारी यह दर्शाती है कि भगवान जगन्नाथ की यह यात्रा सिर्फ मार्ग नहीं, बल्कि श्रद्धा और सेवा की आध्यात्मिक यात्रा है।

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