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देशाऊली-जाहेरस्थान और सरना स्थलों के संरक्षण हेतु “हो” समाज की अहम बैठक सम्पन्न

 

972 गाँवों के लिए 18.59 करोड़ के वार्षिक पूजन सामग्री बजट का प्रस्ताव

रिपोर्ट: शैलेश सिंह
आदिवासी आस्था, संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण एवं विकास को लेकर “हो” समाज एकजुट हो रहा है। झारखंड सरकार के आदिवासी कल्याण आयुक्त, राँची द्वारा भेजे गए निर्देश-पत्र के आलोक में पश्चिमी सिंहभूम जिला के हरिगुटू स्थित कला एवं संस्कृति भवन में आदिवासी “हो” समाज महासभा की एक विशेष बैठक सम्पन्न हुई। बैठक की अध्यक्षता महासभा के केंद्रीय उपाध्यक्ष श्री बामिया बारी ने की।

सरकारी निर्देशों पर किया गया विस्तृत विचार-विमर्श

इस विशेष बैठक में जिला उपायुक्त कार्यालय, कल्याण शाखा और आईटीडीए परियोजना निदेशक द्वारा भेजे गए पत्रों पर विस्तार से रायशुमारी की गई। पत्रों में आदिवासी आस्था स्थलों—देशाऊली-जाहेरस्थान और सरना स्थलों—के संरक्षण और विकास के तहत पूजन सामग्री क्रय और सूची उपलब्ध कराने की आवश्यकता जताई गई थी। बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि अगस्त 2024 से अब तक दो बार सरकार की ओर से आदिवासी “हो” समाज महासभा को पत्र भेजे जा चुके हैं, जिनमें अनुमानित खर्च-बजट प्रस्तुत करने की बात कही गई थी।

पारंपरिक त्योहारों के लिए तय हुआ 76,520 रुपए का वार्षिक पूजन बजट

बैठक में मौजूद विभिन्न गाँवों के दियुरियों से भी राय ली गई और आम सहमति से यह प्रस्ताव पारित हुआ कि “हो” समाज के प्रमुख पारंपरिक त्योहार—मगे पर्व, बा पर्व, हेरोः पर्व और जोमनामा पर्व—के लिए प्रति पर्व 19,130 रुपये की लागत से कुल 76,520 रुपये वार्षिक पूजन सामग्री बजट निर्धारित किया जाएगा। इस पहल के तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रत्येक गाँव में पारंपरिक विधि-विधान के अनुसार सामंजस्यपूर्ण ढंग से पर्व-त्योहार मनाया जा सके।

972 गाँवों के लिए 18.59 करोड़ रुपये का प्रस्तावित बजट

महासभा द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव में कुल 972 गाँवों के लिए पूजन सामग्री की आवश्यकता को चिन्हित किया गया, जिसके लिए 18,59,04,360 रुपये का वार्षिक बजट अनुमानित किया गया है। इस प्रस्ताव को विभागीय प्रक्रिया के तहत जिला प्रशासन और राज्य सरकार को भेजे जाने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया।

सामाजिक नियंत्रण और अनुशासन पर भी चर्चा

बैठक में केवल बजट और सामग्री ही नहीं, बल्कि आदिवासी “हो” समाज की परंपराओं, सांस्कृतिक एकरूपता और विधिक अनुशासन को बनाये रखने हेतु सामाजिक संस्था की भूमिका पर भी गहन चर्चा की गई। यह सुनिश्चित करने पर बल दिया गया कि पारंपरिक पर्व-त्योहारों के आयोजन में सामाजिक समरसता बनी रहे और प्रत्येक गाँव एक तय प्रणाली के अनुसार इन त्योहारों को मनाए।

महासभा के कई वरिष्ठ पदाधिकारी रहे उपस्थित

इस महत्वपूर्ण बैठक में “हो” समाज महासभा की राष्ट्रीय कमिटी के महासचिव श्री सोमा कोड़ा, शिक्षा सचिव श्री विपिन तामसोय, युवा महासभा के राष्ट्रीय महासचिव श्री गब्बरसिंह हेम्ब्रम, सरायकेला-खरसाँवा जिला उपाध्यक्ष श्री सुखराम सोय, अनुमंडल कोषाध्यक्ष श्री विशु रघु, पश्चिमी सिंहभूम के कोषाध्यक्ष श्री सत्यव्रत बिरूवा समेत कई अन्य प्रमुख पदाधिकारी—विश्वजीत बिरूवा, पवन बिरूवा, सुरेश पिंगुवा, थॉमस बिरूवा, पाईकिराय हेम्ब्रम और योगेश्वर पिंगुवा—मौजूद थे।

सारांश

यह बैठक आदिवासी “हो” समाज की सांस्कृतिक अस्मिता के संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है। सरकार और समाज के बीच सहयोग की भावना को और प्रबल करने हेतु उठाए गए इस सामूहिक निर्णय से न केवल पारंपरिक स्थल संरक्षित होंगे, बल्कि “हो” समाज की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूती मिलेगी। बैठक के माध्यम से यह संदेश भी स्पष्ट हुआ कि आदिवासी समाज अपनी परंपराओं के संरक्षण हेतु संगठित और प्रतिबद्ध है।

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