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सारंडा में खामोशी का तूफ़ान

टाटा स्टील, विजय–टू खदान की लीज समाप्ति से हज़ारों की रोज़ी-रोटी पर संकट!

रिपोर्ट – शैलेश सिंह

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम ज़िले के घने सारंडा जंगल में स्थित टाटा स्टील की विजय–टू आयरन ओर माइंस की लीज 17 अगस्त को समाप्त हो रही है। यह तारीख नज़दीक आते-आते पूरे क्षेत्र में बेचैनी, डर और अनिश्चितता की धुंध फैल चुकी है। कंपनी प्रबंधन से लेकर खदान में काम करने वाले मज़दूर, वाहन मालिक, चालक, हेल्पर, वेंडर और आसपास के दुकानदार—सबके चेहरों पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं।

अंदाज़ा है कि सीधे तौर पर डेढ़ हज़ार से ज़्यादा लोगों का रोज़गार इस खदान से जुड़ा हुआ है, जबकि परोक्ष रूप से यह संख्या चार–पांच हज़ार तक पहुँचती है। यदि लीज न बढ़ी और खदान का संचालन ठप हुआ, तो यह सिर्फ एक उद्योग बंद होने की कहानी नहीं होगी—बल्कि सारंडा और लोहांचल क्षेत्र के लिए यह आर्थिक आपदा साबित होगी।

खदान के बंद होने की आहट

सूत्र बताते हैं कि टाटा स्टील प्रबंधन लीज अवधि बढ़ाने के लिए राज्य सरकार के साथ लगातार बातचीत कर रहा है, लेकिन अभी तक कोई ठोस सफलता नहीं मिली है। वन विभाग ने भी खदान में प्रवेश करने वाले सभी वाहनों की फॉरेस्ट परमिशन 17 अगस्त तक ही सीमित रखी है। यानी अगर उस दिन तक नवीनीकरण नहीं हुआ, तो न सिर्फ खदान के गेट बंद होंगे बल्कि उससे जुड़े सैकड़ों ट्रक और डंपर भी हमेशा के लिए खड़े हो जाएंगे।

600 वाहन और हज़ारों पेट की भूख

खदान के भीतर और बाहर मिलाकर इस समय करीब 600 छोटे-बड़े वाहन माल ढुलाई में लगे हैं। इनमें अधिकांश बैंक लोन पर खरीदे गए हैं। ट्रक मालिक अनिल सिंह कहते हैं,

“हमने बैंक से कर्ज लेकर हाईवा खरीदा था, हर महीने 40 हज़ार की किस्त चुकानी होती है। अगर खदान बंद हुई तो गाड़ी खड़ी हो जाएगी और बैंक वाले सीधा ज़ब्ती पर उतरेंगे।”

इन वाहनों पर काम करने वाले चालक, हेल्पर और मेकैनिक, साथ ही उनसे जुड़े टायर-पार्ट्स की दुकानें, पेट्रोल पंप, ढाबे, होटल—सबकी रोज़ी पर ताला लग जाएगा।

वेंडर कंपनियों की कड़ी मार

विजय–टू खदान में टाटा स्टील के साथ दर्जनों वेंडर कंपनियां काम करती हैं। इनमें बीएस माइनिंग के करीब 300, क्रेशर के 150, श्री साईं कंपनी के 150, और अन्य वेंडरों के कुल 800 से ज़्यादा मजदूर शामिल हैं। ये सभी संविदा पर काम करते हैं और उनके लिए यह रोज़गार ही एकमात्र आय का साधन है। मजदूर कहते हैं,

“हम सालों से यही काम कर रहे हैं। अगर ये खदान बंद हुई तो हमें गाँव लौटकर खेती करनी पड़ेगी, लेकिन खेती से पेट नहीं भरता।”

स्थाई कर्मचारियों में भी अनिश्चितता

भले ही टाटा स्टील के स्थाई कर्मचारी अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थिति में हैं, लेकिन उन्हें भी चिंता है कि अगर लीज नवीनीकरण में देरी हुई तो उत्पादन में ठहराव आ जाएगा और उसके असर से उनका भविष्य भी प्रभावित होगा।

बैंक कर्ज का बोझ और आर्थिक डूब

खदान के बंद होने का असर सिर्फ रोजगार तक सीमित नहीं रहेगा।

  • वाहनों के लोन की EMI रुकने पर बैंक रिकवरी की कार्रवाई तेज होगी।
  • ग्रामीणों की कर्ज चुकाने की क्षमता खत्म होगी, जिससे पूरे इलाके में वित्तीय असंतुलन बढ़ेगा।
  • छोटे कारोबारी दुकान बंद करने को मजबूर होंगे।

बेरोज़गारी का जंगल पर असर

सारंडा, जिसे एशिया का सबसे बड़ा सल वृक्षों का जंगल कहा जाता है, पहले ही अवैध लकड़ी कटाई और खनिज तस्करी के दबाव में है। रोजगार खत्म होने पर बेरोजगार लोग मजबूरी में लकड़ी तस्करी या चोरी की ओर मुड़ सकते हैं। ग्राम मुंडा कानूराम देवगम कहते हैं,

“जब पेट खाली होता है तो आदमी कोई भी काम कर लेता है। सरकार को समझना होगा कि बेरोजगारी सिर्फ जेब नहीं खाली करती, यह जंगल और समाज को भी तबाह करती है।”

पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर असर

लोहांचल और सारंडा का बड़ा हिस्सा खनन पर निर्भर है। खदान बंद होने पर—

  • परिवहन कारोबार ठप
  • स्थानीय बाजार में गिरावट
  • किराए के मकानों की मांग घटेगी
  • शिक्षा पर असर—स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या बढ़ सकती है

सरकार और कंपनी की जंग

इस समय टाटा स्टील सरकार से लीज बढ़ाने की अपील कर रही है। लेकिन पर्यावरण मंजूरी, वन कानून और खनिज लीज नवीनीकरण की जटिल प्रक्रिया ने इस मुद्दे को उलझा रखा है। स्थानीय व्यापारी मनोज कहते हैं,

“कंपनी और सरकार की बातचीत में जो देरी हो रही है, उसका खामियाज़ा हम भुगत रहे हैं। रोज़ एक-एक दिन डर में गुजर रहा है।”

अगर खदान बंद हो गई तो…

  1. डेढ़ हज़ार से ज़्यादा मजदूर बेरोजगार
  2. चार–पांच हज़ार परिवारों पर आर्थिक संकट
  3. बैंक लोन पर खरीदे गए सैकड़ों ट्रकों की ज़ब्ती
  4. स्थानीय कारोबार, दुकानें, होटल, ढाबे बंद
  5. जंगल में अवैध कटाई और तस्करी का खतरा
  6. युवा वर्ग में पलायन और अपराध की संभावना

मजदूरों की पुकार

चाय बेचने वाले दुकानदार कहते हैं,

“हमारा धंधा मज़दूरों पर ही चलता है। खदान बंद हुई तो दुकान भी बंद करनी पड़ेगी।”

एक महिला मजदूर की आंखों में आंसू हैं,

“हम बच्चों की पढ़ाई इसी मजदूरी से चलाते हैं। अगर काम बंद हुआ तो स्कूल की फीस कैसे भरेंगे?”

समाधान की राह

विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार और कंपनी को मिलकर—

  • लीज नवीनीकरण की प्रक्रिया तेज़ करनी चाहिए
  • वैकल्पिक रोजगार के लिए स्किल ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने चाहिए
  • बैंक और वित्तीय संस्थानों को कर्ज अदायगी में राहत देनी चाहिए

सारंडा का भविष्य दांव पर

विजय–टू खदान सिर्फ एक औद्योगिक परियोजना नहीं है—यह पूरे इलाके की जीविका की रीढ़ है। अगर यह रीढ़ टूट गई, तो न सिर्फ हजारों परिवार अंधेरे में चले जाएंगे बल्कि सारंडा के जंगल, समाज और अर्थव्यवस्था को भी गहरा घाव लगेगा।

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