हर दिन करोड़ों का राजस्व, फिर भी सड़क भगवान भरोसे—नेता आते-जाते हैं, लेकिन समाधान कोई नहीं
विशेष रिपोर्ट: शैलेश सिंह
“मंत्री जी उतर जाएंगे, सड़क पर मत चढ़ाइए कार!”
झारखंड के नये-नये मंत्री ने अपने ड्राइवर से हंसते हुए कहा—”बड़ाजामदा-नोवामुंडी रोड पर आज कार हम खुद चलाएंगे !” ड्राइवर ने झट से जवाब दिया—”मंत्री महोदय, आज हम कार से उतर जाएंगे।…जरा चला कर तो देखिए…आपकी आत्मा हिल जाएगी। मंत्री महोदय ये कार है, सरकार अथवा आपकी मंत्रालय नही जो भगवान भरोसे इस सड़क पर चल जाएगी।”
यह संवाद केवल एक मजाक नहीं, बल्कि लौहांचल की असल तस्वीर बयान करता है। बड़ाजामदा-बराईबुरु-नोवामुंडी मुख्य सड़क मार्ग, जिसे क्षेत्र की लाइफलाइन कहा जाता है, आज गड्ढों का गढ़ बन चुका है।
“लोहा तो लाद रहे हैं, लेकिन सड़क के हाल पर ताला”
यह वही सड़क है जिससे प्रतिदिन हजारों टन लौह अयस्क लदा मालवाहक वाहन, यात्री गाड़ियां, एंबुलेंस, स्कूल बसें और निजी वाहन गुजरते हैं। राज्य सरकार को अयस्क ढुलाई और रोड टैक्स के रूप में करोड़ों की कमाई हो रही है। लेकिन सड़क के मरम्मत के नाम पर स्थिति वही ढाक के तीन पात।
सरकार के राजस्व विभाग की तिजोरी भर रही है, मगर आम जनता हर दिन जान जोखिम में डालकर चल रही है।
“गड्ढों में समाई उम्मीदें, पुल बने मौत के जाल”
सबसे भयावह स्थिति कुछ विशेष स्थानों की है:
- हाथी चौक पास कारो नदी पर बना पुल
- बोकना सत्संग आश्रम के समीप पुल
- टाटा स्टील की बोलना प्लॉट समीप पुल
- बड़ाजामदा रेलवे क्रॉसिंग
- बड़बील जाने वाला मोड़
- राम मंदिर से लेकर भट्ठीसाई पेट्रोल पंप तक
- नोवामुंडी तक की तमाम पुलिया के पास
यहां सड़क का हाल ऐसा है कि मानो तालाब में गाड़ी चला रहे हों। कहीं टायर फंसता है, कहीं एक्सल टूटता है। छोटे वाहन तो अकसर गड्ढों में इस कदर धंस जाते हैं कि लगता है अब गाड़ी नहीं, जिंदगी ही निकालनी पड़ेगी।
“वीआईपी भी हिल जाते हैं, फिर भी कोई हल नहीं!”
मजेदार विडंबना यह है कि इस सड़क से
- मंत्री
- पूर्व मुख्यमंत्री
- सांसद
- विधायक
- पुलिस-प्रशासन के उच्चाधिकारी
- न्यायपालिका से जुड़े बड़े अधिकारी
लगातार गुजरते हैं। सभी अपनी गाड़ियों के झटके झेलते हैं, गड्ढों में फंसते हैं, लेकिन किसी की भी आत्मा नहीं कांपती।
“कहावत बनी हकीकत—सरकारी सड़क भगवान भरोसे!”
यह हाल देखकर एक पुरानी कहावत याद आती है—“सरकारी काम में न समय की पाबंदी, न जिम्मेदारी।” यहां तो सड़क भी भगवान भरोसे छोड़ दी गई है।
“रोड नहीं, रोलरकोस्टर: झारखंड के लौहांचल की हालत देखिए”
स्थानीय लोगों का कहना है:
- “हर साल चुनाव आते हैं, वादे होते हैं, लेकिन सड़क पर वही गड्ढे रहते हैं।”
- “एंबुलेंस तक इस सड़क पर चलने से डरती है।”
- “गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों की जान सांसत में है।”

“विकास के नाम पर गड्ढों का खेल!”
जहां एक तरफ झारखंड सरकार औद्योगिक विकास की बात करती है, वहीं इस मुख्य सड़क की हालत पर कोई ध्यान नहीं।
“बोलते हैं गड्ढे—हम भी झारखंड की पहचान हैं!”
लोगों में यह भी चर्चा होती है कि अगर इन गड्ढों को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया जाए तो झारखंड में ‘गड्ढा दर्शन’ नामक नया टूरिज्म शुरू हो सकता है।
“सड़क बनेगी या फिर गड्ढों में ही खो जाएगी बात?”
अब सवाल यही है कि
- क्या सरकार इन गड्ढों को भरने के लिए गंभीर होगी?
- क्या मंत्री, सांसद, विधायक सिर्फ गाड़ी में झटका खाने के बाद भी चुप रहेंगे?
- या फिर जनता को खुद सड़क पर उतर कर आंदोलन करना पड़ेगा?
“आखिरी बात: सड़क सुधार नहीं तो वोट बहिष्कार!”
स्थानीय नागरिक संगठनों ने चेतावनी दी है— “अगर इस सड़क का जल्द समाधान नहीं निकला, तो आने वाले चुनाव में हम सड़क पर उतरेंगे और वोट का बहिष्कार करेंगे।”