दीपिका पाण्डेय के कार्यकाल में विकास योजनाएं ठप, संवेदक परेशान, अभियंताओं की मनमानी चरम पर
रिपोर्ट : शैलेश सिंह ।
झारखंड में ग्रामीण विकास और ग्रामीण कार्य विभाग की हालत इन दिनों बदहाल है। विभाग से कार्यकारी एजेंसियों को आवंटन नहीं मिलने के कारण विकास कार्य पूरी तरह से ठप पड़ गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) और राज्य योजना दोनों में ही फंड का अभाव इतना गहरा हो गया है कि संवेदकों (ठेकेदारों) को भुगतान तक नहीं मिल रहा है, जिसके चलते आधे-अधूरे निर्माण कार्यों की फेहरिस्त दिन-ब-दिन लंबी होती जा रही है।
PMGSY में फंड शून्य, राज्य फंड में ऊंट के मुंह में जीरा
PMGSY के तहत काम करने वाले संवेदकों का भुगतान कई महीनों से रुका हुआ है। वहीं राज्य योजना फंड की हालत भी कुछ बेहतर नहीं है। संवेदक बताते हैं कि “राज्य फंड में तो हाल ये है कि एक प्रखंड में मुश्किल से 2-3 योजनाओं का पैसा आता है, जिसे हम ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ कहते हैं।”
सरकार के इस गैर-जिम्मेदार रवैये के कारण संवेदकों के कामकाज पर असर पड़ा है। निर्माण कार्य अधर में लटके हैं, जबकि योजना की मियाद खत्म होती जा रही है।
दीपिका पाण्डेय की कार्यशैली पर उठे सवाल
सूत्रों के अनुसार ग्रामीण विकास, ग्रामीण कार्य और पंचायती राज विभाग की मंत्री दीपिका पाण्डेय अपने कार्यकाल में विभागीय तंत्र को सुचारू रूप से चला पाने में असफल रही हैं।
- पंचायती राज विभाग में फंड की हालत इतनी खराब है कि विभाग पूरी तरह पंगु हो गया है।
- जो भी सीमित राशि आ रही है, वह स्वास्थ्य विभाग की 15वें वित्त आयोग की योजनाओं के तहत आ रही है।
पूर्ववर्ती मंत्री इरफान अंसारी के कार्यकाल में जो योजनाएं स्वीकृत की गई थीं, वही आज ज़मीन पर दिखाई दे रही हैं, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उन योजनाओं का भी निष्पादन वर्तमान सरकार नहीं करा पा रही है।
छह माह बीते, लेकिन फाइलें नहीं चलीं
दीपिका पाण्डेय के मंत्री बनने के छह महीने गुजर चुके हैं, लेकिन इरफान अंसारी के समय में निविदित योजनाओं का निष्पादन शुरू नहीं हुआ। विभागीय सचिवों की चुप्पी इस बात की ओर इशारा करती है कि मंत्री और शीर्ष अधिकारियों के बीच तालमेल की भारी कमी है।
विकास योजनाओं की गति ठहर गई है और मंत्रालय का पूरा फोकस ‘ट्रांसफर-पोस्टिंग’ पर केंद्रित हो गया है।
कांग्रेस का ग्रामीण विकास एजेंडा दम तोड़ता दिख रहा
कांग्रेस का मुख्य चुनावी एजेंडा ग्रामीण विकास होता है। मगर विडंबना यह है कि कांग्रेस के पास ग्रामीण विकास मंत्रालय होते हुए भी झारखंड में ग्रामीण बुनियादी ढांचे की हालत दयनीय हो गई है।
- सड़क निर्माण अधर में है
- पुलों का निर्माण आधा अधूरा पड़ा है
- ग्रामीण रोजगार, जलापूर्ति और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएं अलिखित ठहराव में हैं
चाईबासा प्रमंडल: अभियंताओं की मनमानी, संवेदकों की परेशानी
चाईबासा प्रमंडल, खासकर नोवामुंडी उपमंडल में अभियंताओं की मनमानी चरम पर है।
- विपत्र (मेसर बिल) समय पर नहीं बनाया जा रहा है
- छोटे और कमजोर संवेदकों को ब्लैकमेल किया जा रहा है
- विभागीय दबाव के चलते संवेदकों को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है
सूत्रों की मानें तो नोवामुंडी अवर प्रमंडल में पदस्थापित अभियंता राजकुमार बेग के खिलाफ कई गोपनीय शिकायतें विभागीय सचिव तक पहुंचाई गई हैं। प्रमुख आरोप यही है कि वे समय पर विपत्र नहीं बनाते और चुनिंदा ठेकेदारों को ही भुगतान कराया जाता है।
“बीस फीसदी आवंटन भी नहीं मिल रहा”
विभागीय सूत्रों के अनुसार, ग्रामीण कार्य विभाग को जितना आवंटन मिलना चाहिए, उसकी बीस फीसदी राशि भी नहीं आ रही।
- इस कारण केवल दबंग और सिफारिशी संवेदकों को भुगतान हो रहा है
- छोटे संवेदक हाशिए पर चले गए हैं
इस माहौल में भ्रष्टाचार, सिफारिश, और भेदभाव ने कामकाज की पारदर्शिता को निगल लिया है।
क्या हेमंत सरकार पार्ट 2 में विकास पिछड़ रहा है?
हेमंत सोरेन सरकार के दूसरे कार्यकाल में विकास की रफ्तार कछुआ चाल पर आ गई है। ग्रामीण कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग को गंभीरता से नहीं लेने का नतीजा यह है कि
- गांवों की सड़कें अधूरी हैं
- पुल निर्माण अटका है
- रोजगार सृजन ठप पड़ा है
- संवेदकों का बकाया भुगतान लटका है
आखिर कब जागेगा प्रशासन?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की चुप्पी, मंत्री का मौन, और सचिवालय की निष्क्रियता — ये सब मिलकर झारखंड को विकास से दूर धकेल रहे हैं। अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में ग्रामीणों की मूलभूत सुविधाओं का संकट और भी गहराएगा।
अब समय आ गया है कि राज्य सरकार तत्काल हस्तक्षेप करे, फंड जारी करे, और विकास की जमीनी हकीकत को गंभीरता से ले। वरना ‘विकास’ सिर्फ भाषणों तक सीमित रह जाएगा।