कोयना नदी उफान पर, कच्चे घरों के ढहने और पुल-पुलियों के बहने का डर, गांवों में फंसे लोग
रिपोर्ट : शैलेश सिंह ।
झारखंड के सारंडा जंगल क्षेत्र में लगातार हो रही भारी बारिश ने पिछले 15 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। उफनती नदियां, जलमग्न सड़कें और मिट्टी के घरों में घुसा पानी अब ग्रामीणों के लिए एक बड़ी आफत बन चुका है। करमपदा शिव मंदिर के समीप बह रही कोयना नदी पर बनी पुलिया अब उफान पर है और उसके ऊपर से पानी बहने लगा है। कुछ स्थानों पर नदी किनारे के घरों में पानी घुस गया है जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल है।

कोयना नदी बनी खतरा, बहदा गांव में नया पुल भी दबाव में
बहदा गांव के समीप कोयना नदी पर हाल में बना नया पुल भी अब खतरे की जद में है। नदी का जलस्तर इतनी तेजी से बढ़ा है कि पानी पुल के बिल्कुल सटे बह रहा है। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि यदि पुल कुछ और ऊँचाई पर होता, तो शायद पानी इतनी नजदीक नहीं आता। लोगों की मांग है कि आने वाले समय में ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए पुल-पुलियों की ऊंचाई बढ़ाई जाए।
आवागमन पर पूर्ण विराम, शहरों जैसे हालात ग्रामीण सड़कों के
किरीबुरु टाउनशिप के फुटबॉल मैदान एरिया की सड़कों पर भी बारिश का पानी भर चुका है। ग्रामीण क्षेत्रों की तो हालत और भी भयावह है—गांवों को जोड़ने वाले कच्चे रास्ते पूरी तरह से जलमग्न हो चुके हैं। कीचड़ और पानी के कारण अब किसी भी वाहन या पैदल चलने की संभावना शून्य हो गई है। स्कूल, अस्पताल, बाजार सब कुछ ठप हो चुका है।
“मिट्टी का घर गिरा तो कहां जाएं?”—ग्रामीणों का दर्द
गांवों में रहने वाले अधिकांश लोग अब इस चिंता में हैं कि लगातार पानी से कहीं उनके कच्चे मकान न ढह जाएं। कई घरों की दीवारों में दरारें आने लगी हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अगर इस बारिश में उनका घर गिरा तो उनके पास सिर छुपाने की भी जगह नहीं बचेगी। प्रशासन से फिलहाल किसी भी प्रकार की राहत या निरीक्षण की कोई पहल नहीं दिख रही है।
“पुल-पुलिया अगर बहा तो गांव कट जाएंगे दुनिया से”
कोयना, करमपदा, बहदा, बालिगुड़ा, जटगड़िया जैसे गांवों के ग्रामीणों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि यदि पुल-पुलिया बह गया तो पूरे गांव का संपर्क पूरी तरह से मुख्य मार्गों से कट जाएगा। लोगों को अस्पताल ले जाना, राशन लाना, या किसी भी आपात स्थिति में बाहर निकलना असंभव हो जाएगा।
बारिश का पानी घुसा घरों में, बिजली भी गुल
वर्षा का पानी कई घरों में घुस चुका है। लोगों को फर्नीचर, राशन और बिस्तर तक को ऊंचाई पर रखकर बचाना पड़ रहा है। कई जगहों पर बिजली आपूर्ति भी ठप हो गई है जिससे रातें और भी डरावनी हो रही हैं। मोबाइल नेटवर्क भी प्रभावित है, जिससे लोग बाहर के दुनिया से कट गए हैं।
प्रशासन की चुप्पी, राहत कार्य नदारद
वर्तमान हालात को देखते हुए भी अब तक ना कोई राहत शिविर की घोषणा हुई है, ना ही किसी उच्चाधिकारी ने दौरा किया है। ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के बीच हम सिर्फ एक डर के साथ जी रहे हैं—कि न जाने अगला खतरा कब सामने आ जाए।
“नदी उफान पर है, पुल टूटा तो जनजीवन थम जाएगा” – ग्रामीण मुखिया
बहदा पंचायत के एक जनप्रतिनिधि ने बताया, “हर साल बारिश होती है लेकिन इस बार हालात बेकाबू हो गए हैं। कोयना नदी जिस तरह से उफन रही है, अगर थोड़ी और बारिश हुई तो पुल बहना तय है। प्रशासन को अब हरकत में आना होगा।”
ग्रामीणों की मांगें:
- कच्चे मकानों के लिए टारपोलिन और आपातकालीन राहत
- ऊंचे और स्थायी पुल निर्माण की योजना
- सड़कों के किनारे जल निकासी व्यवस्था
- हर गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा की व्यवस्था
- प्रशासनिक टीम द्वारा मौके पर स्थलीय जांच और राहत वितरण
निष्कर्ष:
सारंडा क्षेत्र में प्रकृति ने एक बार फिर अपना रौद्र रूप दिखाया है। जंगलों से निकलता पानी, चट्टानों से टकराती नदियां और उसमें फंसे ग्रामीण अब बस एक उम्मीद की निगाह से प्रशासन की ओर देख रहे हैं। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो यह बारिश केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि मानवीय संकट बन जाएगी।
यदि आप चाहें तो इस रिपोर्ट में संबंधित गांवों के कुछ प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीणों के उद्धरण, प्रशासनिक प्रतिक्रिया, और पिछले सालों की तुलना भी जोड़ी जा सकती है।