गीता कोड़ा ने कहा- शिक्षा को रोजगारपरक और भारतीय मूल्यों से जोड़ने की जरूरत
गुवा संवाददाता।
नोवामुंडी कॉलेज में मंगलवार को भारतीय ज्ञान प्रणाली की प्राचीनता और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में दो दिवसीय बहुविषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन टूकेन रिसर्च एंड डेवलपमेंट, बेंगलुरु के सहयोग से किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन मुख्य अतिथि कॉलेज की चेयरपर्सन सह पूर्व सांसद गीता कोड़ा, ओएमक्यू डिवीजन टाटा स्टील के महाप्रबंधक अतुल भटनागर और देशभर के विभिन्न शिक्षण संस्थानों से आए शिक्षाविदों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया।
इस मौके पर संगोष्ठी पर आधारित स्मारिका का विमोचन भी अतिथियों के द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक गणेश वंदना और स्वागत गीत से की गई। कॉलेज के प्रो. कुलजिंदर सिंह ने मंच संचालन करते हुए आगंतुकों का परिचय दिया जबकि प्राचार्य मनोजित विश्वास ने सभी का स्वागत किया।
शिक्षा को भारतीय मूल्यों से जोड़ने की जरूरत: गीता कोड़ा
मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में पूर्व सांसद गीता कोड़ा ने नई शिक्षा नीति 2020 की सराहना करते हुए कहा कि यह नीति व्यावसायिक और कौशल आधारित शिक्षा को बढ़ावा देती है, जिससे स्कूली शिक्षा के दौरान ही छात्रों को रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। उन्होंने कहा—
“प्राचीन भारतीय ग्रंथों और दर्शन में ज्ञान को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। पौराणिक कथाएं हमें नैतिकता और मूल्यों का पाठ पढ़ाती हैं जबकि आधुनिक विज्ञान हमें दुनिया को समझने में मदद करता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इन मूल्यों को वह स्थान नहीं मिल रहा है जिसके वे हकदार हैं।”
गीता कोड़ा ने कहा कि केवल किताबी ज्ञान और शिक्षा के व्यवसायीकरण से छात्रों में वास्तविक कौशल और मूल्य आधारित ज्ञान का विकास नहीं हो पा रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर पुरातन भारतीय ज्ञान प्रणाली को आधुनिक विज्ञान और तकनीक के साथ जोड़ दिया जाए, तो भारत विश्वगुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
गुरुकुल प्रणाली के सार को अपनाने की आवश्यकता: अतुल भटनागर
ओएमक्यू डिवीजन टाटा स्टील के महाप्रबंधक अतुल भटनागर ने अपने संबोधन में प्राचीन गुरुकुल प्रणाली की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए कहा—
“गुरुकुल एक ऐसी शिक्षा प्रणाली थी, जहां छात्र गुरु के साथ रहते थे और उनका सर्वांगीण विकास होता था। इसमें आध्यात्मिक, नैतिक और व्यावहारिक शिक्षा का अद्भुत समन्वय था।”
उन्होंने कहा कि आज के दौर में एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जरूरत है जो तकनीकी दक्षता के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की भी शिक्षा दे। यदि हम गुरुकुल प्रणाली के महत्वपूर्ण तत्वों को वर्तमान शिक्षा प्रणाली में जोड़ दें, तो विद्यार्थियों का समग्र विकास संभव हो सकता है।
शिक्षा नीति पर शिक्षाविदों ने रखे विचार
संगोष्ठी के प्रथम सत्र में कई प्रतिष्ठित शिक्षाविदों ने नई शिक्षा नीति पर अपने विचार रखे। इनमें शामिल थे—
- डा. संजीव कुमार सिंह, प्राचार्य, ज्ञानचंद जैन कॉमर्स कॉलेज, चाईबासा
- डॉ. संजय गोराई, एनईपी कोऑर्डिनेटर
- प्रो. परमानंद महतो और डॉ. संजय, बिनोवा भावे विश्वविद्यालय
- राजीव रंजन शर्मा, प्राचार्य, मारवाड़ी कॉलेज, रांची
- डॉ. मुरारी लाल वैध, निसार अहमद, प्रो. धनीराम महतो, भवानी कुमारी सहित अन्य शिक्षाविद
इन सभी ने एक स्वर में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा को रोजगारोन्मुखी, कौशल आधारित और भारतीय परंपराओं से जोड़ने की दिशा में एक सार्थक पहल है।
समापन विचार
संगोष्ठी में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा केवल डिग्री और नौकरी तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह व्यक्ति के चरित्र निर्माण, समाज सेवा और राष्ट्र के विकास का माध्यम बननी चाहिए। संगोष्ठी के माध्यम से यह संदेश स्पष्ट रूप से सामने आया कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को उसकी जड़ों से जोड़कर ही भविष्य को सुरक्षित और समृद्ध बनाया जा सकता है।