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छऊ नृत्य में समाहित है योग की आत्मा: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर छऊ गुरु तपन पटनायक ने दी अनूठी प्रस्तुति

“वन अर्थ, वन हेल्थ” थीम पर आधारित कार्यक्रम में छऊ नृत्य के माध्यम से योग के अष्टांग स्वरूप की जीवंत व्याख्या


सरायकेला, जून 2025।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025 के अवसर पर राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के पूर्व निदेशक एवं संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात छऊ गुरु तपन कुमार पटनायक ने छऊ नृत्य और योग के गूढ़ संबंध को एक अनुपम सांस्कृतिक प्रस्तुति के माध्यम से दर्शाया। “Yoga for One Earth, One Health” की वैश्विक थीम को सार्थक करते हुए उन्होंने स्थानीय कलाकारों के साथ मिलकर छऊ नृत्य की विविध मुद्राओं में योग के अष्टांग स्वरूप को सजीव किया।

यह आयोजन न केवल एक सांस्कृतिक प्रदर्शन था, बल्कि योग के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं को छऊ नृत्य के माध्यम से रेखांकित करने का एक आध्यात्मिक प्रयास भी था। कार्यक्रम के दौरान छऊ गुरु पटनायक ने कहा – “छऊ नृत्य केवल शारीरिक प्रदर्शन नहीं, यह योग की आत्मा को नृत्य में समाहित करने की विधा है।”

छऊ: योग से प्रेरित शिव का तांडव रूप

छऊ नृत्य की जड़ें भारतीय पौराणिक परंपरा में गहराई से जुड़ी हैं। इसे शिव के तांडव रूप से प्रेरित माना जाता है। शिव स्वयं योगीश्वर हैं – योग के आदि स्रोत। इसी आधार पर छऊ नृत्य को न केवल एक कलात्मक विधा, बल्कि योग के सजीव रूपांतरण के रूप में भी देखा जाता है।

छऊ गुरु तपन पटनायक ने स्पष्ट किया कि –

“छऊ नृत्य में निहित है ‘अष्टांग योग’ के सभी अंग – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। जो छऊ नर्तक है, वह अनायास ही योग के सभी आयामों का अभ्यास करता है।”


अष्टांग योग और छऊ नृत्य का अंतर्संबंध

योग के आठ अंगों को यदि गहराई से देखा जाए, तो वे छऊ नृत्य की तकनीक और भाव भंगिमा में सहज रूप से समाहित हैं:

  • यम (नैतिक आचरण) – छऊ नर्तक में संयम, अहिंसा और अपरिग्रह जैसे गुण आवश्यक हैं।
  • नियम (व्यक्तिगत अनुशासन) – प्रतिदिन का अभ्यास, ईश्वर के प्रति समर्पण और तप ही नर्तक की आत्मा होते हैं।
  • आसन (शारीरिक मुद्राएं) – छऊ नृत्य की हर मुद्रा एक योगिक आसन है; संतुलन और लचीलापन दोनों जरूरी हैं।
  • प्राणायाम (श्वास पर नियंत्रण) – नृत्य के दौरान सांस की गति पर नियंत्रण और तालमेल अनिवार्य है।
  • प्रत्याहार (इंद्रियों पर नियंत्रण) – मंच पर भाव की गहराई में उतरने के लिए इंद्रियों का संयम आवश्यक है।
  • धारणा (एकाग्रता) – छऊ में मुद्राओं और कथा के भावों पर गहन ध्यान देना पड़ता है।
  • ध्यान (एक लक्ष्य पर मन का केंद्रित होना) – संगीत, ताल, अभिनय और शारीरिक संयोजन को ध्यानपूर्वक एक साथ साधना होता है।
  • समाधि (ध्यान की पराकाष्ठा) – जब नर्तक मंच पर पूरी तरह शिव के भाव में विलीन हो जाता है, वहीं छऊ की योगिक चरम स्थिति होती है।

अध्यनारिश्वर की प्रेरणा से जन्मा छऊ: शिव के योगमय स्वरूप की प्रस्तुति

छऊ गुरु पटनायक ने बताया कि छऊ नृत्य का आध्यात्मिक आधार अर्धनारीश्वर की अवधारणा है – जहाँ शिव और शक्ति एकाकार होते हैं। यही समरसता छऊ की शैली में भी दृष्टिगोचर होती है – सौम्यता और शक्ति का अद्भुत मिश्रण।

“शिव का तांडव, शक्ति का लास्य और योग की स्थिरता – इन तीनों का त्रिवेणी संगम है छऊ,” उन्होंने कहा।


योग, छऊ और स्वास्थ्य: “योग करें – छऊ करें – निरोग रहें”

कार्यक्रम के अंत में गुरु तपन पटनायक ने आमजन को आह्वान किया –

“आइए, हम सभी प्रतिदिन योग करें, छऊ नृत्य का अभ्यास करें और अपने तन, मन व आत्मा को स्वस्थ रखें। छऊ केवल एक सांस्कृतिक विरासत नहीं, यह स्वस्थ जीवन जीने का भी माध्यम है।”


विशिष्ट उपस्थिति और सहभागिता

इस विशेष आयोजन में गुरु पटनायक के साथ कई नामचीन छऊ कलाकार भी शामिल हुए जिनमें सुश्री कुसमी पटनायक, प्रफुल्ल नायक, ठंगरु मुखी, सुश्री लक्ष्मी प्रिया दास, सुश्री सुहाना सिंहदेव, राम महतो, सुश्री सुखमती नायक, अंबुज महतो और दशरथ महतो प्रमुख रहे।

इन सभी कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से योगिक मुद्राओं को प्रस्तुत किया और छऊ को एक जीती-जागती योगशाला के रूप में दर्शाया। दर्शकों और युवा नर्तकों में यह कार्यक्रम प्रेरणा का स्रोत बना।


छऊ-योग की संयुक्त यात्रा: सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर एक कदम

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आयोजित यह आयोजन न केवल एक सांस्कृतिक प्रदर्शन था, बल्कि इसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की पारंपरिक कलाएं – विशेषकर छऊ नृत्य – योग की आत्मा से कितनी गहराई से जुड़ी हुई हैं।

यह नृत्य मात्र शरीर की लय नहीं, बल्कि आत्मा की अनुभूति भी है। यह हमारी जड़ों से जुड़ने और एक समग्र स्वास्थ्य की दिशा में बढ़ने का माध्यम बन सकता है। ऐसे आयोजन यह संदेश देते हैं कि आधुनिक स्वास्थ्य के पैमानों में योग और छऊ जैसे पारंपरिक रूप आज भी उतने ही सार्थक हैं जितने हजारों वर्ष पूर्व थे।

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