झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन और ग्राम सभा के सामूहिक प्रयासों से बदली रायसिंहदिरी की तस्वीर, विधायक और टीएसी सदस्य हुए शामिल
कुचाई (सारायकेला-खरसावां), 18 जून 2025।
कुचाई प्रखंड के सुदूरवर्ती और जंगलों से घिरे मौजा रायसिंहदिरी में आज 12वाँ वनाधिकार स्थापना दिवस बड़े ही उत्साह, गरिमा और जनसंघर्ष की स्मृतियों के साथ मनाया गया। यह बस्ती समुद्र तल से लगभग 2000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, जिसमें 13 टोले, 225 परिवार और 760 से अधिक जनसंख्या निवास करती है। कुल 4139.62 एकड़ क्षेत्रफल वाले इस गाँव में लगभग 641.33 एकड़ वन भूमि पर स्थानीय वनाश्रितों का परंपरागत और वैधानिक दावा है।
🌳 परंपरा और प्रकृति का सम्मान: पूजा और प्रतीक पत्थर की पुनः स्थापना
कार्यक्रम की शुरुआत में ग्रामवासियों ने एक 10 फीट ऊँचे प्रतीक पत्थर को स्थापित किया। पहले 2013 में यह पत्थर गाड़ा गया था, लेकिन उसके टूटने को अशुभ मानते हुए नये पत्थर की पुनः स्थापना की गई। पहान सागर मुंडा और पाण्डु मुंडा ने परंपरागत वन देवता, नागे-चांडी और एराओं को साक्षी मानते हुए पूजा अर्चना की। यह पत्थर ग्राम की सामूहिक स्मृति, संघर्ष और प्रकृति से रिश्ते का प्रतीक माना गया।
🌿 रायसिंहदिरी: जंगल बचाओ आंदोलन की एक आदर्श मिसाल
रायसिंहदिरी में आज का आयोजन केवल एक वार्षिक समारोह नहीं, बल्कि झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन (JJBA) और ICFG जैसे संगठनों के दो दशकों से अधिक समय के संघर्ष और समुदाय के नेतृत्व में विकास का साक्ष्य रहा। यह कार्यक्रम एक्सपोजर विजिट का हिस्सा था, जिसमें झारखंड भर के जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरण प्रेमी और शोधार्थी शामिल हुए।
👥 विशिष्ट अतिथि और भागीदारी
इस अवसर पर कई जनप्रतिनिधियों और संगठनों की उपस्थिति रही:
- दशरथ गागराई, विधायक और टीएसी सदस्य
- विक्शल कोंगाड़ी, विधायक, कोलेबिरा
- अखौरी प्रवास, FES
- सोहनलाल कुम्हार, JJBA
- राजेश कुमार महतो, JJBA, बोकारो
- सूरजमनी भगत, गर्ल स्टार, बुढ़मू
- एलेक्स टोप्पो, राँची
- मोतिलाल बेसरा, ग्राम सभा मंच, बोकारो
- मानसिंह मुंडा, सांसद प्रतिनिधि
- प्रकाश भारती, JJBA
- हीरालाल मुर्मू, ग्राम सभा मंच, रामगढ़
- बाबलू मुर्मू, सरायकेला-खरसावां
- कुन्दन गुप्ता, ICFG
- मीरा, महाराष्ट्र
- 56 अन्य प्रतिनिधि, हजारीबाग
- ग्राम के 150 स्थानीय अतिथि और ग्रामीण
रायसिंहदिरी में 12वाँ वनाधिकार स्थापना दिवस उत्सवपूर्वक सम्पन्न: जंगल, अधिकार और विकास की मिसाल बनी यह पहाड़ी बस्ती
🛤️ विकास की नई पहचान: रायसिंहदिरी के उपलब्धियाँ
ग्राम सभा के सचिव सागर गागराई और पाण्डु मुण्डा ने बताया कि कैसे यह गांव बेचिरागी (गैर-मान्यता प्राप्त) से राजस्व ग्राम बना। आज यहां:
- 145 वनाश्रितों को व्यक्तिगत वनाधिकार प्रमाण-पत्र,
- सामुदायिक वनाधिकार प्रमाण-पत्र,
- पक्की सड़क, बिजली, विद्यालय, आंगनबाड़ी, पीडीएस,
- 100 आबुआ आवास,
- 14 चुआं निर्माण,
- हल्दी की प्रोसेसिंग यूनिट,
- बैंक लोन की सुविधा,
- जीटीडीएस से भूमि समतलीकरण योजना,
- मतदाता सूची में नाम,
- वृद्धा पेंशन,
- बाढ़ से सुरक्षा हेतु तालाब निर्माण,
जैसी बुनियादी सुविधाएं आज उपलब्ध हैं।
🗣️ नेताओं और प्रतिनिधियों की प्रतिक्रियाएं
- दशरथ गागराई ने कहा कि झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन ने इस गांव को बदलने में मुख्य भूमिका निभाई है। उन्होंने आश्वस्त किया कि वे आगामी विधानसभा सत्र में ग्राम सभा को वन प्रबंधन अधिकार प्रमाण-पत्र दिलाने की मांग को उठाएंगे।
- विक्शल कोंगाड़ी ने रायसिंहदिरी की तुलना “सेकेंड कश्मीर” से करते हुए कहा कि यह गाँव जंगल संरक्षण और अधिकारों की दृष्टि से पूरे राज्य के लिए प्रेरणा है। उन्होंने वनाधिकार के मुद्दे को टीएसी में रखने का वचन दिया।
- अखौरी प्रवास ने कहा कि रायसिंहदिरी के वनाश्रितों ने न केवल जंगल को बचाया बल्कि उसका सदुपयोग और पुनरुत्थान भी किया।
- सूरजमनी भगत ने रायसिंहदिरी की महिलाओं की हल्दी खेती और जीविकोपार्जन की सराहना की।
- राजेश कुमार महतो ने कहा कि इस गाँव से पूरे झारखंड को सीख लेनी चाहिए और वनाधिकार कानून के तहत सभी प्रमाण-पत्र विधिसम्मत ढंग से जारी किए जाने चाहिए।
- सोहनलाल कुम्हार ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब तक राज्य में जितने सामुदायिक वनाधिकार पत्र दिए गए हैं वे अधूरे और गैर-कानूनी तरीके से जारी हुए हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक ग्राम सभा को दो प्रमाण-पत्र (उपयोग और प्रबंधन) मिलना चाहिए।
🌿 रायसिंहदिरी: जंगल और अधिकार के समन्वय की अनूठी मिसाल
15 वर्षों पूर्व यह गाँव जंगलविहीन स्थिति में था, लेकिन आज यह क्षेत्र घने जंगलों से आच्छादित है। स्थानीय ग्रामीणों की जिम्मेदारी और जंगल से आत्मिक संबंध ने इसे संभव बनाया। यह गाँव आज झारखंड में वनाधिकार के साथ पर्यावरणीय संतुलन का आदर्श मॉडल बन गया है।
कार्यक्रम में अन्य उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में: कारु मुंडा, दामू मुंडा, भरत सिंह मुंडा, मंगल सिंह मुंडा, मुन्ना सोय, राहुल सोय, कुण्डिया सोय, प्रेम कुमार महतो, और अन्य कई स्थानीय प्रतिनिधि शामिल थे।
रायसिंहदिरी की गूंज अब केवल पहाड़ों तक सीमित नहीं, यह अब पूरे झारखंड के जन-अधिकार आंदोलन की आवाज़ बन चुकी है।