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ग्रामीण कार्य विभाग के अफसरों और अभियंताओं पर केस दर्ज होने से मंत्री दीपिका पांडेय की बढे़ंगी मुश्किलें !

राजेश रजक, सरवन कुमार, संयुक्त सचिव श्री रंजन और श्री टोप्पो की कार्यशैली पर राजभवन की सीधी नजर; टेंडर घोटालों और कमिशन नेटवर्क ने खोली विभागीय भ्रष्टाचार की परतें।

रिपोर्ट: शैलेश सिंह

विभाग SC कोटा के ही अभियंता को मुख्य अभियंता बना रही है, क्या ST या सामान्य कोटा के योग्य अभियंता नहीं हैं, सवाल बड़ा है, जिसका जवाब विभाग को देना चाहिए।

झारखंड का ग्रामीण कार्य विभाग एक बार फिर भ्रष्टाचार की दलदल में बुरी तरह फंसा नजर आ रहा है। अबकी बार मामला सीधे झारखंड उच्च न्यायालय तक पहुंच गया है, जहां विभागीय सचिव के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद सचिव टी श्रीनिवासन और मंत्री दीपिका पाण्डेय सिंह तक जांच की आंच पहुंचने के संकेत मिल रहे हैं।

इस मामले में जिन अफसरों के नाम प्रमुख रूप से सामने आए हैं, उनमें राजेश रजक, सरवन कुमार और अवधेश कुमार शामिल हैं, जिनके विवादास्पद कार्यकाल और निर्णयों को लेकर उच्च न्यायालय में सवाल उठाए गए हैं।

पुराने घाव हरे, जेल में पूर्व मंत्री और मुख्य अभियंता

झारखंड के ग्रामीण कार्य विभाग की छवि पहले से ही संदिग्ध रही है। विभाग के पूर्व मंत्री आलमगीर आलम और उनके आप्त सचिव संजीव कुमार लाल आज भी जेल की सलाखों के पीछे हैं। वहीं, विभाग के पूर्व विशेष प्रमुख अभियंता और प्रभारी मुख्य अभियंता वीरेन्द्र राम पहले ही जेल की हवा खा चुके हैं।

इन सबके बीच अब सवाल उठ रहे हैं कि जब पुराने मामलों में गिरफ्तारी हो चुकी है, तो अब तक विभाग में टेंडर प्रक्रिया में भ्रष्टाचार क्यों जारी है?

200 करोड़ की निविदा घोटाले में सचिवालय स्तर पर मिलीभगत

हाल में जिस मामले ने सनसनी फैलाई है, वह है 200 करोड़ रुपये से अधिक की टेंडर में धांधली। इसमें वर्तमान अभियंता प्रमुख कार्यालय के टेंडर कमिटी सदस्य सह वित्तीय सलाहकार रंजन कुमार, संयुक्त सचिव सरवन कुमार और राजेश रजक की मिलीभगत सामने आ रही है।

सूत्रों का कहना है कि टेंडर प्रक्रिया के दौरान जानबूझकर पास संवेदकों को फेल कर दिया गया और मनचाहे संवेदकों को पास किया गया। इसके लिए मुख्य अभियंता कार्यालय के श्री टोप्पो की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है, जिन पर सीधी तौर पर टेंडर मैनेज करने का आरोप है।

टेंडर कमिटी बनी भ्रष्टाचार की नर्सरी, जेपी सिंह से लेकर आज तक जारी खेल

टेंडर कमिटी की भूमिका लंबे समय से विवादों में रही है। जेपी सिंह के कार्यकाल से लेकर आज तक, हर एक निविदा प्रक्रिया पर संदेह के बादल मंडराते रहे हैं।

कमिटी की भूमिका इतनी संदिग्ध है कि अब एक नई जनहित याचिका भी दायर किए जाने की तैयारी है, जिसमें पिछले दो वर्षों में हुए सभी टेंडरों की जांच और टेंडर कमिटी के सदस्यों की आय से अधिक संपत्ति की जांच की मांग की जाएगी।

माफिया-अभियंता गठजोड़ ने दर्ज याचिका को दबाने के लिए शुरू की कोशिशें

विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो उच्च न्यायालय में केस दर्ज करने वाले को मैनेज करने के लिए माफिया और भ्रष्ट अभियंताओं की एक टीम सक्रिय हो चुकी है। इनका उद्देश्य केवल एक है – सच को अदालत में सामने आने से रोकना।

यह एक खतरनाक संकेत है कि अब भ्रष्टाचार का सिंडिकेट इतना मजबूत हो चुका है कि न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है।

विकास योजनाओं पर पड़ा असर, सालों से लटकी पड़ी हैं निविदाएं

ग्रामीण विकास का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि भ्रष्टाचार की इस दलदल में योजनाओं की रफ्तार थम गई है।

  • कई निविदाएं एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी निष्पादित नहीं की गई हैं।
  • कुछ निविदाओं की तकनीकी बोली खोली गई है, लेकिन वित्तीय बोली अब तक लंबित है।
  • कई कार्यों में जानबूझकर देरी की जा रही है ताकि मोलभाव और कमीशन की गुंजाइश बढ़ाई जा सके।

ग्रामीणों की उम्मीदों को कुचल रहा टेंडर घोटाला

झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, पुल-पुलिया, सिंचाई आदि योजनाओं के जरिए विकास की आशा लगाए लोग आज भ्रष्ट अफसरों और माफिया नेटवर्क की करतूतों से ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

सरकारें बदलती हैं, मंत्री आते-जाते हैं, लेकिन विभाग के अंदर बैठे भ्रष्टाचार के एजेंट अपनी जड़ें और गहरी करते जा रहे हैं।

एनजीओ ने शुरू की पड़ताल, कोर्ट में पेश होगी विस्फोटक रिपोर्ट

एक गैर सरकारी संगठन ने पिछले दो वर्षों की सभी निविदाओं का ब्योरा एकत्रित करना शुरू कर दिया है। इनकी योजना है कि:

  • प्रत्येक निविदा की समयसीमा, निष्पादन स्थिति, टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया जाए।

इस पहल से यह तय है कि विभाग की परतें अब तेजी से खुलेंगी और जिन लोगों ने सरकारी धन को अपना कारोबार बना लिया है, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग जोर पकड़ेगी।

मुख्यमंत्री और जांच एजेंसियों की चुप्पी सवालों के घेरे में

यह गंभीर सवाल है कि जब ईडी, सीबीआई, और एंटी करप्शन ब्यूरो के पास ग्रामीण कार्य विभाग से जुड़े पुराने घोटालों के मामले पहले से हैं, तो अब तक इस नये घोटाले पर स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लिया गया?

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और ग्रामीण विकास मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए कि वे विभाग में व्याप्त इस खुलेआम लूट को कब रोकेंगे?

निष्कर्ष:

अब कार्रवाई नहीं तो जनता जवाब मांगेगी

अगर अब भी सरकार और न्यायिक व्यवस्था ने इसे गंभीरता से नहीं लिया, तो यह सिर्फ एक विभाग की नहीं, पूरे प्रशासन तंत्र की साख पर सवाल बन जाएगा।

ग्रामीण विकास विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार, टेंडर घोटाले और माफिया गठजोड़ की इस परत-दर-परत कहानी को देखकर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अगर समय रहते कड़ा निर्णय और निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो झारखंड में विकास के नाम पर केवल घोटाले ही दर्ज रह जाएंगे।

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